मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ – मुम्बई सँ वापसी उपरान्त
साहित्य प्रशंसक आ साधक मे फर्क
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साहित्यक प्रशंसक (दीवाना) आ साहित्यक साधक मे फर्क होइत छैक। हमरा ई कहय मे कनिकबो हर्ज नहि जे साहित्यक साधक बनय लेल हमरा मे धीरता, गम्भीरता आ लगनशीलताक जेहेन परमावश्यक गुण विकसित नहि भ’ सकल अछि एखन धरि। तथापि साहित्यक प्रशंसा हम एहि लेल करैत छी जे जीवनक अनुभव मे साहित्यक मार्गदर्शन अनुसार चलब हमरा नीक लगैत अछि।
हम देखलियैक जे साहित्य सँ जुदा रहिकय कोनो काज कयला सँ ओ काजक बेढ़ब भ’ गेल करैत छैक।
आइ जे समाज मे समरसता आ सौहार्द्रताक अभाव हम-अहाँ देखि रहल छी से यैह कारण – आइ अनेकों वाद द्वारा समाज संचालित होइत अछि, कइएक तरहक सिद्धान्त आ विचारक घोल-फचक्का भेला सँ आपस मे जे विश्वास आ सद्भावना हेबाक चाही से घटि गेल अछि।
जखन कि वेदविहित जीवन पद्धति मे आइयो एकटा निश्चित मार्ग निर्दिष्ट भेटैत अछि जाहि अनुसारे मानव आ मानवीयताक ह्रास कहियो नहि होयत। अराजकता आ उपद्रव सँ हम सब बचि सकैत छी।
आइयो जे बहुल्य लोक अपन जीवन नियमित ढंग सँ जियैत अछि से एहि निर्दिष्ट साहित्यक प्रभाव सँ। यदि साहित्य ई नहि कहितय जे भोरे सुति-उठि मुंह कुर्रा करब बड जरूरी छैक त जनसामान्य एकरा अनिवार्य कर्म के रूप मे स्वीकार नहि करैत। तहिना जे एहि विन्दु (मुंह साफ करबाक प्रथम कर्तव्य) केँ ध्यान नहि दैछ, ओकर जीवनचर्या मे अहाँ अन्तर स्पष्ट रूप सँ देखि सकैत छियैक। जे मुंह साफ करत ओकर विचार आ व्यवहार देख लियौक आ जे मुंह गन्दे राखत, ओकरा चाह-पान पहिने चाही, अनेकों बात…. ओकर बात-विचार देख लियौक।
कहबाक तात्पर्य हमर ई अछि जे धन्य साहित्य जे हमरा सब केँ सद्मार्गक दर्शन करबैत अछि।
साहित्य साधना मे निरन्तर लागल लोक जखन ‘वाद’ पर बेसी जोर दियए लागत त फेर ओकर साहित्य केहेन हेतैक से स्वतः बुझय योग्य बात भेल।
एकटा साधक केँ सदिखन बेसी सँ बेसी अध्ययन करब आ फेर समाजोपयोगी कथा-दृष्टान्त सब केँ साहित्यिक विधा सँ परिपूर्ण करैत प्रस्तुत करब – हमरा बुझने बड जरूरी छैक। प्रशंसक लेल ई छूट छैक जे ओ अपन अनुभव, बात, विचार आदि जे किछु समाजोपयोगी बुझत से लिखत।
आब स्वतंत्र आ निरपेक्ष पाठक पर निर्भर छैक जे ओ कोन वर्ग के स्वयं अछि आ ओकरा केकर लिखल बात बेसी सहजता सँ बुझय मे अबैत छैक। अन्ततोगत्वा पाठके निर्णय करैत अछि जे ओकर लेखक-साहित्यकार के! अहाँक सहमति-असहमति-विमति के स्वागत अछि।
हरिः हरः!!