रामचरितमानस मोतीः राजा दशरथ केर पुत्रेष्टि यज्ञ

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ 

भगवान केर वरदान पाबि देवता लोकनि वानर रूप मे पृथ्वी पर आबि गेल छथि। ओ सब भगवानक अवतार के प्रतीक्षा मे छथि। आगू –

१. ओ समस्त वानर सब पर्वत और जंगल मे जहाँ-तहाँ अपन-अपन सुन्दर सेना बनाकय छा गेला। ई सब सुन्दर चरित्र हम कहलहुँ, आब ओ चरित्र सुनू जे बीच मे छोड़ि देने रही। अवधपुरी मे रघुकुल शिरोमणि दशरथ नाम केर राजा भेलाह, जिनकर नाम वेद मे विख्यात अछि। ओ धर्मधुरंधर, गुणक भंडार और ज्ञानी रहथि। हुनकर हृदय मे शांर्गधनुष धारण करयवला भगवानक भक्ति छलन्हि व हुनकर बुद्धि सेहो हुनकहि मे लागल रहैत छलन्हि। हुनकर कौसल्या आदि प्रिय रानी लोकनि सब पवित्र आचरण वाली छलीह। ओ सब अत्यन्त विनीत और पति के अनुकूल चलयवाली छलीह और श्री हरिक चरणकमल मे हुनका सभक दृढ़ प्रेम छलन्हि।

२. एक बेर राजाक मन मे बड़ा ग्लानि भेलनि जे हमरा पुत्र नहि अछि। राजा तुरन्ते गुरुक घर गेलाह आर हुनकर चरण मे प्रणाम अर्पित करैत विनती कयलनि। राजा अपन सब सुख-दुःख गुरु केँ सुनौलनि। गुरु वशिष्ठजी द्वारा हुनका बहुतो प्रकार सँ बुझौलनि आ कहलनि, “धीरज धरू, अहाँक चारि टा पुत्र हेता, जे तीनू लोक मे प्रसिद्ध और भक्त केर भय केँ हरयवला होयत।

३. वशिष्ठजी श्रृंगी ऋषि केँ बजौलनि आर हुनका सँ शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ करबेलनि। मुनिक भक्ति सहित आहुति देलापर अग्निदेव हाथ मे चरु (हविष्यान्न खीर) लेने प्रकट भेलाह और दशरथ सँ कहलखिन – वशिष्ठ हृदय मे जे किछु विचारने छलाह, अहाँक से सब काज सिद्ध भ’ गेल। हे राजन्‌! आब अहाँ जाउ आ ई हविष्यान्न (पायस) केँ, जिनका जेना उचित बुझी, ताहि भाग मे बाँटि दी। तदनन्तर अग्निदेव समस्त सभा केँ बुझाकय अन्तर्धान भ’ गेलाह।

४. राजा परमानंद मे मग्न भ’ गेलाह। हुनकर हृदय मे हर्ष समा नहि रहल छल। ताहि समय राजा अपन प्रिय पत्नी लोकनि केँ बजौलनि। कौसल्या आदि सब (रानी) ओतय आबि गेलीह। राजा पायस केर आधा भाग कौसल्या केँ देलनि, और शेष आधा केँ दुइ भाग कय एक भाग राजा कैकेयी केँ देलनि आ शेष जे बचल रहल तेकरा फेर दुइ भाग कय कौसल्या और कैकेयी केर हाथ पर राखिकय अर्थात्‌ हुनकर अनुमति लय कय आर एहि तरहें हुनका सभक मोन प्रसन्न कय केँ ई दुनू भाग सुमित्रा केँ देलनि।

५. एहि तरहें सब रानी गर्भवती भेलीह। ओ सब हृदय मे बहुत हर्षित भेलीह। हुनका बहुत सुख भेटलनि। जाहि दिन सँ श्री हरि (लीला मात्र सँ) गर्भ मे अयलाह, सब लोक मे सुख और सम्पत्ति छा गेल। शोभा, शील और तेज केर खान बनल सब रानी महल मे सुशोभित भेलीह। एहि तरहें किछु समय सुखपूर्वक बीतल आर ओ अवसर आबि गेल जाहि मे प्रभु केँ प्रकट हेबाक छलन्हि।