रामचरितमानस मोतीः भगवान द्वारा वरदान

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

भगवान्‌ द्वारा वरदान

 
रामचरितमानस मोती केर लेखनक क्रम मे हमरा लोकनि रावणादिक अत्याचार सँ त्रसित देवतागण व पृथ्वी द्वारा ब्रह्मा आ महेश सहित भगवान केर विनती करैत भगवान कतहु आ कखनहुँ प्रकट होयबाक अटल विश्वास पैछला अध्याय मे पढ़लहुँ। आइ पढब भगवान द्वारा हुनका सब केँ वरदान देबाक कथा।
 
१. देवतागण और पृथ्वी केँ भयभीत जानि हुनका लोकनिक स्नेहयुक्त वचन सुनिकय शोक और संदेह हरण करयवला गंभीर आकाशवाणी भेल।
 
२. हे मुनि, सिद्ध और देवता लोकनिक स्वामी लोकनि! डराउ जुनि। अहाँ सभक लेल हम मनुष्यक रूप धारण करब और उदार (पवित्र) सूर्यवंश मे अंश सहित मनुष्य रूप मे अवतार लेब। कश्यप और अदिति बड़ा भारी तप कयने रहथि। हम पहिनहि हुनका वर दय चुकल छी। वैह दशरथ और कौसल्याक रूप मे मनुष्य केर राजा भ’ कय श्री अयोध्यापुरी मे प्रकट भेला अछि। हुनकहि घर जाय हम रघुकुल मे श्रेष्ठ चारि भाइ केर रूप मे अवतार लेब। नारद केर सब वचन सेहो हम सत्य करब। आर, अपन पराशक्ति सहित अवतार लेब। हम पृथ्वीक सब भार हरण करब। हे देववृंद! अहाँ निर्भय भ’ जाउ।
 
३. आकाश मे ब्रह्म (भगवान) केर वाणी केँ कान सँ सुनिकय देवता लोकनि तुरन्त वापस अपन लोक आबि गेलाह। हुनका लोकनिक हृदय शीतल भ’ गेलनि। तखन ब्रह्माजी पृथ्वी केँ बुझौलनि। ओहो निर्भय भेलीह आर हुनकर जिह मे भरोस आबि गेलनि। देवता लोकनि केँ ई सिखाकय जे वानरक शरीर धय-धयकय अहाँ सब पृथ्वी पर जाकय भगवानक चरणक सेवा करू, ब्रह्माजी अपन लोक केँ चलि गेलाह।
 
४. सब देवता अपना-अपना लोक केँ चलि गेलाह। पृथ्वी सहित सभक मन केँ शांति भेटल। ब्रह्माजी जे किछु आज्ञा देलनि, ताहि सँ देवता बहुत प्रसन्न भेलाह और ओ सब ओहिना करय मे कनिकबो देरी नहि कयलनि।
 
५. पृथ्वी पर ओ सब वानरदेह धारण कय के आबि गेलाह। हुनका सब मे अपार बल और प्रताप छलन्हि। सब शूरवीर छलाह। पर्वत, वृक्ष और नहे हुनका सभक शस्त्र छलन्हि। ओ धीर बुद्धि वला वानर रूपी देवता भगवानक अयबाक बाट देखय लगलाह।
 
हरिः हरः!!