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स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
प्रयागदास
डॉ लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव जीक लिखल बिहार लोकसंस्कृति कोश (मिथिला खण्ड) में आइ पढ़लहुँ “प्रयागदास” के कथा। कथा एहि तरहें अछिः
जनकपुर के एक विधवा छलीह। जानकी जी केँ अपन बेटी बुझि नित्य सेवा कयल करथि। हुनक एकलौता पुत्र रहनि ‘प्रयागदास’। प्रयागदास अपन माताक आस्था, विश्वास आ प्रेरणा सँ अत्यन्त बाल्यकाल सँ सीताजी केँ बहिन आ श्रीरामजी केँ बहिनोइ मानिकय उपासना कयलनि।
पुत्रवती-जुवती जग सोई। रामभक्त सुत जाकर होई॥ (मानस तुलसी)
एहि संसार मे पुत्रवती युवती वैह मानल जाइत छथि जिनकर पुत्र रामभक्त होइथ। – एहि सिद्धान्त केँ अपनेनिहाइर ओहि विधवा माता आ हुनक पुत्र प्रयागदास केर ई मार्मिक कथा थिक। अपन स्वाध्याय मे अभरल ई कथा मोन केँ छू देलक। अपने सब लेल साझा करैत हर्षान्वित छी।
मिथिला समाज मे विधवा स्त्रीक जीवन मे सामाजिक उपेक्षा कतेक बेसी होइत छलैक से हालहु धरि विद्यमान अछि। पूर्वकाल मे ई कोन स्तर के, कतेक कठोर आ निर्दयता संग, पतिक मृत्युक कारण तक मानल जायवाली होइत हेती से कल्पना कय सकैत छी। उपरोक्त विधवा जेकरा मैथिल समाज मे मसोमात सेहो कहल जाइत छैक, हुनको जीवन एहि सँ भिन्न नहि छलन्हि। दियाद-वादक उपेक्षा, परिवारक उपेक्षा आ पतिक मृत्यु भ’ गेलाक बाद संसार मे कियो अपन कहेनिहार नहि रहि जेबाक दुरावस्था, ताहि तरहक कष्टपूर्ण जीवन मे एकमात्र पुत्र केँ ओ अपन परम आस्था सँ असगर नहि होयबाक भान दैत रहैत छलीह। प्रयागदासजी केर माता अनन्य आस्था सँ अपन एकलौता बेटा सँ कहलीह – बेटा! हम सब असगर नहि छी। अहाँक परम ऐश्वर्यशालिनी बहिन सीता आ बहिनोइ श्री राम अयोध्याक राजा छथि।
प्रयागदास केर बालमन केँ ई पंक्ति ओहिना प्रभावित कयलक जेना बालक ध्रुव केँ माय सुनीति केर बात सँ प्रेरणा भेटल छल आ ओ बाल्यावस्था मे तपस्या करय लेल उद्यत् भ’ वन प्रवेश कय गेल छलाह। ध्रुव केँ पिता उत्तानपाद केर कोरा मे बेमात्र भाइ खेलाइत देखि अपनो एहिना पिताक दुलार-प्यार पेबाक लिलसा भेल छलन्हि। लेकिन कोरा मे नहि बैसेबाक क्रूर तिरस्कार आ सतमाय सुरुचि द्वारा अपमानजनक शब्द कहि दुत्कारि भगेबाक स्थिति मे माता सुनीति हुनका बुझेने छलीह जे संसार मे सभक पिता जे छथि हुनकर कोरा प्राप्त कयल जा सकैत अछि त फेर सांसारिक पिताक कोरा कोनो दुर्लभ वस्तु नहि थिकैक आ फेर बालक ध्रुव माय सुनीति सँ पुछलाह जे ओहि परमपिता केँ कोना प्राप्त कयल जा सकैछ, तदनुसार सब केँ बुझले अछि जे केना बालक ध्रुव मात्र ५ वर्षक आयु मे असगरे वनगमन करैत परमपिता केँ ताकि लेलनि। बिल्कुल तहिना प्रयागदास केर बालमन माय केर ई बात सुनिते एक दिन मोटरी-चोटरी बान्हि अयोध्या प्रस्थान कय गेलाह।
मायक बात सुनि पोटरी मे सत्तू बान्हि बहिन-बहिनोइ लेल सन्देश लय कय प्रयागदास अयोध्या पहुँचि गेलाह। अपन परिचय दय-दय कय लोक सब सँ बहिन-बहिनोइ के पता पुछैत छथि। लोक सब सँ पुछि-पुछिकय थाकि गेलाह प्रयागदास। कियो हुनका पागल बुझलक त कियो मूर्ख। थाकिकय ओ एकटा नीम गाछक छाहरि मे श्रान्त-क्लान्त-चिन्तायुक्त अवस्था मे बैसि गेलाह। तखन अनायास एकटा श्वेत हाथी पर हुनकर बहिन-बहिनोइ आबि गेलथि। बहिन सीताजी हुनका अपन गुप्तवास केर परिचय दैत हुनक बालमन केँ प्रबोध-संतोष दैत माय केँ कुशल-समाचार सँ अवगत करेबाक सन्देश देलथि। श्रीरामजी भाइ प्रयागदास संग सीताजीक एहि आचार पर हँसि पड़लाह, मुदा ओ बालक ई सब रहस्य केँ बिना बुझने हुनका लोकनिक हाथी पर अयबाक आ अद्भुत सुन्दरता आ शोभा केँ हृदय मे धारण कय केँ मिथिला आबि गेलाह। ओ अपन माय सँ सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनौलनि। गदगद भाव सँ सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनिकय पुत्र केँ धन्य मानैत ओ धर्मक धुरी माय एतबे आनन्दमग्न भ’ गेलीह जे ताहि क्षण वैह अवस्था मे साकेतवासिनी बनि गेलीह। माता सँ निवृत्ति पाबि ओ बालक अयोध्या अपन बहिनक पास आबि गेलाह।
मिथिलाक प्रसिद्ध संत आ जनकभाव सँ श्रीराम-जानकी केर सिद्ध उपासक महात्मा सूर किशोरदास केर छलाह – संत ‘प्रयागदासजी’। श्री अवध मे वास कय श्री राम-जानकीक नित्य दर्शन करैत ओ नीम वृक्ष केर छाया मे रहिकय मस्ती सँ अपन परिचय देल करथि –
“नीम गाछ तर खाट बिछेलियै, खाट के ऊपर करबा।
प्रयागदास अलमस्ता सोवै, रामलला के सरबा॥”
एहि तरहें अपन जीवन श्रीसीताराम केर भक्तिभाव मे ओतप्रोत कयने प्रयागदास निर्भीकता सँ जियैत रहलाह। जखन-जखन बहिन-बहिनोइ दर्शन दियए अबथिन, ओ खूब बात करथि, मानू सार आ बहिनोइ बीच, भाइ आ बहिन बीच बात भ’ रहल हो। कहल जाइछ जे भगवान रामजी जखन हुनका सँ वनवास केर संस्मरण सुनेलखिन आ प्रभुजी जखन वन केर वेदना सब कहलखिन त प्रयागदास हुनका दोबारा असगरे वन-विहार करय सँ मना कय देलखिन। एहि तरहक अनन्य अनुरागी भक्त केँ भगवान अपन हाथी पर बैसाकय कतय लय गेलाह, आइ धरि कियो नहि जनलक।
भक्त प्रयागदास जेहेन भाव केर प्राप्ति हमरो सब केँ हो, यैह प्रार्थना। उपरोक्त रोचक चरित्र पढ़ि-सुनि सब केँ आनन्दक प्राप्ति होयब त सुनिश्चित अछिये।
हरिः हरः!!