स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरिमानस मोती
देवता लोकनि द्वारा शिवजी सँ ब्याह लेल प्रार्थना करब, सप्तर्षि लोकनिक पार्वती लग जायब
प्रसंग चलि रहल अछि ‘शिव विवाह’। पूर्वक अध्याय मे कामदेव द्वारा देवता सभक कल्याण हेतु शिवजीक समाधि केँ भंग करबाक लेल कामाग्नि जागृति लेल पुष्पबाण प्रहार आ शिवजीक ध्यान भंग भेला सन्ता त्रिनेत्र सँ ताकिकय कामदेव केँ भस्म कय देबाक बात पढ़लहुँ। पुनः कामदेव केर स्त्री रति द्वारा भोलेनाथ सँ करुणामय भाव मे प्रार्थना कयला उत्तर रति केँ वरदान देल गेल जे यदुवंश मे श्रीकृष्णक पुत्र केर रूप मे ओ सदेह जन्म लेता। ताबत ओ बिना देहो के ‘अनंग’ रूप मे विद्यमान रहता। एकर बाद देवता लोकनि शिवजी समक्ष प्रस्तुत होइत छथि।
१. ब्रह्माजी देवता लोकनिक प्रतिनिधित्व करैत महादेव सँ कहलखिन – हे शंकर! समस्त देवता लोकनिक मोन मे एहेन परम उत्साह अछि जे हे नाथ! ओ सब अपन आँखि सँ अपनेक विवाह देखय चाहैत छथि। हे कामदेव केर मद केँ चूर करनिहार देव! अपने एना किछु करू जाहि सँ लोक सब एहि उत्सव केँ नयन भरिकय देखथि। हे कृपा केर सागर! कामदेव केँ भस्म कयकेँ अपने रति केँ जे वरदान देलहुँ से बहुत नीक कयलहुँ। हे नाथ! श्रेष्ठ स्वामी केर ई सहज स्वभाव होइत छन्हि जे ओ पहिने दण्ड दय पुनः कृपा करैत छथि। पार्वती अपार तप कयलनि अछि, आब हुनका अंगीकार करू।
२. ब्रह्माजीक प्रार्थना सुनिकय आर प्रभु श्री रामचन्द्रजीक वचन केँ याद कयकेँ शिवजी प्रसन्नतापूर्वक कहलखिन – ‘यैह होय!’ तखन देवता लोकनि ढोल-नगाड़ा बजाकय फूल केर वर्षा कयकेँ ‘जय हो! देवता लोकनिक स्वामी केर जय हो’ एना कहय लगलाह।
३. उचित अवसर जानिकय सप्तर्षि अयलाह और ब्रह्माजी तुरन्ते हुनका हिमाचल केर घर पठा देलनि। ओ सब पहिने ओतय गेलाह जतय पार्वतीजी छलीह आर हुनका सँ छल सँ भरल मीठ (विनोदयुक्त, आनंद पहुँचाबयवला) वचन बजलाह – नारदजीक उपदेश सँ अहाँ ताहि समय हमरा सभक बात नहि सुनलहुँ। आब त अहाँ प्रण झूठ भ’ गेल कियैक त महादेवजी कामदेवे केँ भस्म कय देलनि।
४. ई सुनिकय पार्वतीजी मुस्कुरेलीह आ बजलीह – हे विज्ञानी मुनिवर लोकनि! अपने उचिते कहलहुँ। अपनेक समझ मे शिवजी कामदेव केँ आब जरेलनि अछि, एहि सँ पहिने त ओ विकारयुक्त (कामिये) रहथि! मुदा हमर समझ सँ त शिवजी सदा सँ योगी, अजन्मा, अनिन्द्य, कामरहित और भोगहीन छथि और हम त शिवजी केँ एहिना बुझिकय मन, वचन और कर्म सँ प्रेम सहित हुनकर सेवा कयलहुँ अछि। तखन हे मुनीश्वर लोकनि! सुनू, ओ कृपानिधान भगवान हमर प्रतिज्ञा केँ सत्य करता। अपने जे ई कहलहुँ जे शिवजी द्वारा कामदेव केँ भस्म कय देल गेल, यैह अपने बड पैघ अविवेक थिक। हे तात! अग्नि केर त ई सहज स्वभावे छैक जे ओस ओकर समीप कदापि जाइये नहि सकैत अछि आर गेलापर ओ अवश्य नष्ट भ’ जायत। महादेवजी और कामदेव केर संबंध मे सेहो यैह न्याय (बात) बुझबाक चाही।
५. पार्वतीक वचन सुनिकय आर हुनकर प्रेम तथा विश्वास देखिकय मुनि हृदय मे बड़ा प्रसन्न भेलाह। ओ भवानी केँ सिर नमाकय चलि देलाह आ हिमाचलक घर पहुँचि गेलाह। ओ पर्वतराज हिमाचल केँ सबटा हाल सुनेलनि। कामदेव केँ भस्म होयबाक बात सुनिकय हिमाचल बहुत दुःखी भेलाह। फेर मुनि लोकनि रति केँ वरदान केर बात कहलखिन, से सुनिकय हिमवान् बहुत सुख मानलनि।
६. शिवजीक प्रभाव केँ मोन मे विचार कय हिमाचल श्रेष्ठ मुनि सबकेँ आदरपूर्वक बजौलनि आर हुनका सँ शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी देखबाकय वेद केर विधिक अनुसार शीघ्रहि लग्न निश्चय कराकय लिखबा लेलनि। फेर हिमाचल ओ लग्नपत्रिका सप्तर्षि लोकनि केँ दय देलनि आर चरण पकड़िकय हुनका सँ विनती कयलनि। पुनः ओ सब ओहि लग्न पत्रिका केँ ब्रह्माजी केँ देलनि। ओकरा पढ़ैत समय हुनकर हृदय मे अथाह प्रेम उमड़ि रहल छल।
७. ब्रह्माजी लग्न पढ़िकय सबकेँ सुनेलनि। से सुनिकय सब मुनि और देवता लोकनिक सारा समाज हर्षित भ’ गेलाह। आकाश सँ फूल केर वर्षा होबय लागल, बाजा बाजय लागल और दसो दिशा मे मंगल कलश सजा देल गेलैक।
हरिः हरः!!