— आभा झा।
पुनर्विवाह: जरूरत सोच बदलै के
अपन समाज एतेक पढ़ल-लिखल भेलाक बादो पुनर्विवाह के अपन समाज में स्थापित करवा में सफलता हासिल नहिं कऽ रहल अछि।पुनर्विवाह के मतलब अछि इंसानियत के दर्शन!विधवा ‘बेचारी’ नहिं होइत छथि!ओहो एक परिपूर्ण नारी छथि,जिनका में ओ सबटा योग्यता छैन ,जे अन्य नारी में छनि।बस जरूरत अछि हुनका ‘बेचारी’ शब्द सँ बाहर निकालै के!एहि लेल सरकार नहिं समाजक सोच के बदलनाइ जरूरी और समाज में हमहुँ सब अबैत छी।जखन ‘विधुर ‘पुनर्विवाह कऽ सकैत छथि ,तऽ विधवा पुनर्विवाह कियैक नहिं कऽ सकैत छथि? आइ काल्हि अधिकांश शिक्षित व्यक्ति विधवा पुनर्विवाह के सर्वथा उचित मानैत छथि,परन्तु तइयो किछु लोक के एहि में शंका होइत छनि।आइयो अपन समाज में पुनर्विवाह मन और मस्तिष्क सँ नहिं स्वीकारल जाइत छैक। पुरूष व महिला दुनू के लेल पुनर्विवाह जरूरी छैक। बाल विवाह के अहि अत्याचार सँ उद्धार भऽ जायत। हुनका विवाहक सुख के कोनो अनुभव नहिं रहैत छनि।ओहो अपन वयस के लड़की के जेकां खेनाइ,पहिरनाइ और श्रृंगार केनाइ चाहैत छथि।विधवा अगर पुनर्विवाह चाहैत छथि तऽ हुनका स्वतंत्रता देबाक चाही कियैकि वैधव्य स्वयं हुनकर अपराध नहिं छैन।हुनकर अधिकार छीन लेनाइ सर्वथा अनैतिक अछि।कोनो व्यक्ति अथवा समाज के एना करय के अधिकार नहिं छैक। विधवा विवाह के प्रचलित भेला सँ समाजक बहुत रास अनैतिकता के उन्मूलन भऽ सकत।एहि सँ हुनका अपन कामवासना के तृप्ति के लेल अनुचित संबंध स्थापित करय के आवश्यकता नहिं पड़तनि।एहि सँ हुनको पत्नी और माँ के सुख प्राप्त हेतेन और हुनका कोनो गलत काज नहिं करय पड़तनि।एहि सँ हुनका आश्रय भेटतनि और अपन इज्जत बेच कऽ जीवन निर्वाह नहिं करय पड़तनि।सुरक्षित और गौरव के संग जीवन व्यतीत कऽ सकती।एहि तरहें पुनर्विवाह सँ समाज के अनाचार,दुराचार,गर्भपात तथा वेश्यावृत्ति के रोकै में बड्ड सहयोग भेटत।अतः नैतिक दृष्टि सँ पुनर्विवाह सर्वथा न्यायोचित अछि।पुनर्विवाह के आवश्कता- हरेक व्यक्ति एक एहेन जीवनसाथी चाहैत छथि जकरा ओ अपन सुख में बेहिचक अपन अंतर्मन के बात कहि सकैथ।एहेन संगी केवल पति-पत्नीये भऽ सकैत छथि।वृद्धावस्था में इंसान असगरे भऽ जाइत अछि।वृद्धावस्था में संग देब के दृष्टिकोण सँ सेहो पुनर्विवाह उचित छैक। विधवा स्त्री के व्यंग्य बाण ,शंका और गलतफ़हमी के दर्दनाक आघात झेलय पड़ैत छनि।एक विधवा कि सब करैत छथि?कत-कत जाइत छथि?हुनका घर में के-के अबैत छनि? एहि सभ बात के जरूरत सँ बेसी तूल दऽ कऽ हुनकर जीनाइ दुभर कऽ देल जाइत छनि।वास्तव में एक विधवा के तड़प महसूस केनाइ बहुत मुश्किल छैक। पुनर्विवाह स्त्री और पुरुष दुनू के होइन एहि लेल हमरा अहाँ के पहल करबाक चाही। अपन आस-पास या संबंधिक में एहेन महिला के न्याय भेटैन एहेन कोशिश करबाक चाही।जे कियो महिला एहेन निर्णय लैत छथि हुनकर स्वागत करबाक चाही ताकि ओहो सबहक जेकां समान जीवन जी सकैथ। खुशीक बात ई अछि कि लोक एहि विषय में धीरे-धीरे सोचय लागल छथि, चेतना जागृत भऽ रहल छैक। विधवा छथि तऽ हुनकर एहि में कि दोष।चलू बदलि डालि आब ई दकियानूसी दस्तुर। चुनैथ जीवनसाथी ओ पुनः हुए अकेलापन हुनकर सेहो दूर। जय मिथिला जय मैथिली।
आभा झा ( गाजियाबाद)