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रामचरितमानस मोतीः मानस निर्माण केर तिथि

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

१२. मानस निर्माण केर तिथि

सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥

संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥२॥

आब हम आदरपूर्वक श्री शिवजी केँ माथ झुकाकय श्री रामचन्द्रजीक गुण केर निर्मल कथा कहैत छी। श्री हरिक चरणपर माथ रखिकय संवत्‌ १६३१ मे एहि कथा केँ आरंभ करैत छी।

एहि उक्ति सँ स्पष्ट अछि जे विक्रम संवत साल १६३१ अर्थात् १५७५ ई. मे महाकवि तुलसीदास जी रामचरितमानस केर रचना कयलनि। एहि सँ पूर्व केर मंगलाचरण संग श्रीराम केर नामक महिमागान आ पुनः रामकथाक माहात्म्य सब पर तुलसीदास जीक सम्पूर्ण विचार हमरा-अहाँ लेल पढ़य योग्य त अछिये, एक-एक विन्दु पर मनन करब आ जीवन मे ओहि मार्गचित्र पर चलब त ई जीवन निश्चित अपन उद्देश्य प्राप्ति मे सफल बनत। रामचरितमानसक रचनाकाल पर आर जे सब बात कहलनि ताहि पर सेहो गौर करूः

१. चैत्र मास केर नवमी तिथि मंगल दिन केँ श्री अयोध्याजी मे ई चरित्र प्रकाशित भेल। जाहि दिन श्री रामजीक जन्म होइत अछि, वेद कहैत अछि जे एहि दिन सब तीर्थ श्री अयोध्याजी मे चलि अबैत अछि। असुर-नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजी मे आबिकय श्री रघुनाथजीक सेवा करैत छथि। बुद्धिमान लोक जन्म केर महोत्सव मनबैत छथि आर श्री रामजीक सुन्दर कीर्ति केर गायन करैत छथि।

२. सज्जन लोकनि बहुते रास समूह ओहि दिन श्री सरयूजीक पवित्र जल मे स्नान करैत छथि आर हृदय मे सुन्दर श्याम शरीर श्री रघुनाथजी केर ध्यान कय केँ हुनकर नाम केर जप करैत छथि।

३. वेद-पुराण कहैत अछि कि श्री सरयूजी केर दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान सम्पूर्ण पाप केर हरि लैत अछि। ई नदी बड पवित्र अछि आर एकर महिमा अनन्त छैक जेकरा विमल बुद्धिवाली सरस्वतीजी सेहो नहि कहि सकैत छथि।

४. ई शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्रजीक परमधाम दयवला अछि से बात सब लोक मे प्रसिद्ध अछि। ई अत्यन्त पवित्र अछि। जगत मे अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज चारि प्रकारक अनन्त जीव अछि, एहि मे सँ जँ कोनो अयोध्याजी मे शरीर छोड़ैत अछि त ओ फेर संसार मे नहि अबैत अछि, अर्थात् जन्म-मृत्यु केर चक्कर सँ छुटिकय भगवान केर परमधाम मे निवास करैत अछि।

५. एहि अयोध्यापुरी केँ सब प्रकार सँ मनोहर, सब सिद्धि केँ दयवला आर कल्याण केर खान बुझिकय हम एहि निर्मल कथा केँ आरंभ कयलहुँ, जेकरा सुनला सँ काम, मद और दम्भ नष्ट भऽ जाइत अछि।

६. एकर नाम रामचरित मानस अछि, जे कान सँ सुनैत देरी शान्ति भेटैत अछि। मनरूपी हाथी विषयरूपी दावानल मे जरि रहल अछि, वैह जँ एहि रामचरित मानस रूपी सरोवर मे आबि जायत त सुखी भऽ जायत।

७. ई रामचरित मानस मुनि लोकनि केँ प्रिय छन्हि। एहि सुहाओन और पवित्र मानस केर शिवजी द्वारा रचना कयल गेल अछि। ई तीनू प्रकारक दोष, दुःख और दरिद्रता केँ तथा कलियुग केर कुचाइल व सब पाप केँ नाश करयवला अछि।

८. श्री महादेवजी एकरा रचिकय अपना मोन मे रखने छलाह आर सुअवसर पाबिकय पार्वतीजी सँ कहलनि। एहि सँ शिवजी एकरा अपन हृदय मे देखिकय और प्रसन्न भऽ कय एकर सुन्दर ‘रामचरित मानस’ नाम रखलनि।

९. हम वैह सुख दयवला सुहाओन रामकथा केँ कहैत छी। हे सज्जन! आदरपूर्वक मोन लगाकय एकरा सुनू।

हरिः हरः!!

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