रामचरितमानस मोतीः तुलसीदासजी केर दीनता और राम भक्तिमयी कविताक महिमा

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

६. तुलसीदासजी केर दीनता और राम भक्तिमयी कविताक महिमा

 

एहि सँ पूर्व केर कुल ५ अलग-अलग शीर्षक अन्तर्गत आ प्रथम दिवसक ईश-वन्दना करैत महाकवि तुलसीदास स्वयं केँ सभक दास होयबाक भाव सँ हुनका सब केँ कृपाक खान अपने सब कियो मिलिकय छल छोड़िकय हमरा पर कृपा करू, हमरा अपन बुद्धि-बल केर भरोसा नहि अछि, तेँ हम अहाँ सब सँ विनती करैत छी कहलनि अछि। कहैत छथि जे हम श्री रघुनाथजी केर गुण सभक वर्णन करय चाहैत छी, मुदा हमर बुद्धि छोट आ श्री रामजीक चरित्र अथाह अछि, हमरा उपायक कनिकबो लेशो टा नहि सुझि रहल अछि, हमर मन आ बुद्धि कंगाल अछि, लेकिन मनोरथ राजा जे हमर श्री रामजीक गुण-गाथाक लेखन कय सकी। बुद्धि अत्यन्त नीचाँ आ चाहत अत्यन्त ऊँच पर, चाहत तऽ अमृत पाबय के अछि आ जुड़ैत खाखो नहि अछि। हे सज्जन लोकनि! हमर ढिठाई केँ क्षमा करब और हमर बाल वचन केँ मन लगाकय (प्रेमपूर्वक) सुनब। तुलसीदासजी एक महान ज्ञानी आ कवि रहितो अपन दीनता केँ आरो कतेको ढंग सँ कहलनि अछि –
 
१. जेना बालक तोतराइतो किछु बजैत अछि त ओकर माय-बाबू केँ सुनय मे नीके लगैत छैक, मुदा क्रूर, कुटिल आर खराब विचारवला लोक जे दोसरक दोखहि सब केँ भूषण रूप सँ धारण कएने रहैत अछि (अर्थात्‌ जेकरा पराया दोष टा प्यारा लगैत छैक), ओ सब त हँसबे करता।
 
२. रसगर हो कि एकदमे फीका, अपन कविता केकरा नीक नहि लगैत छैक? मुदा जे दोसरक रचना केँ सुनिकय हर्षित होइत अछि से उत्तम पुरुष जगत मे बहुत बेसी नहि भेटत।
 
३. जग भरि मे पोखरि आर नदीक समान मनुष्ये बेसी अछि जे जल पाबिकय अपनहि बाढ़ि सँ बढ़ैत अछि, यानि कि अपनहि उन्नति टा सँ प्रसन्न भेल करैत अछि। समुद्र सन त कियो एक-आध बिरले कोनो सज्जन होइछ जे चन्द्रमा केँ पूर्ण देखिकय (दोसरक उत्कर्ष देखिकय) उमड़ि पड़ैत अछि।
 
४. हमर भाग्य छोट अछि लेकिन इच्छा बहुत पैघ अछि, लेकिन हमरा एकटा विश्वास अछि जे ई सुनिकय सज्जन सब सुख पेता आ दुष्ट सब हँसी उड़ेता। दुष्ट लोकनिक हँसय मे हमर हिते होयत। मधुर कण्ठ वाली कोयल केँ कौआ तऽ कठोरे कहल करैत छैक। जेना बगुला हंस केँ आ बेंग सब पपीहा पर हँसैत छैक, तहिना मिलन मोन रखनिहार दुष्ट निर्मल वाणी पर हँसिते टा अछि। जे नहि त कविताक रसिक अछि आ न जेकरा श्री रामचन्द्रजीक चरण मे प्रेम छैक, ओकरा लेल सेहो ई कविता सुखद हास्यरस केर काज देत। पहिने त ई जनभाषाक रचना थिक, दोसर हमर बुद्धि सीधापनवला अछि, एहि द्वारा ई हँसइये योग्य अछि। हँसय मे हुनका लोकनि केँ कोनो दोष नहि!
 
५. जिनका नहि त प्रभु केर चरण मे प्रेम अछि और नहिये कोनो नीक समझे अछि, हुनका ई कथा सुनय मे फीका लागत। जिनकर श्री हरि (भगवान विष्णु) और श्री हर (भगवान शिव) केर चरण मे प्रीति अछि और जिनकर बुद्धि कुतर्क करयवला नहि अछि (जे श्री हरि-हर मे भेद करबाक या ऊँच-नीच केर कल्पना नहि करैत अछि), हुनका श्री रघुनाथजीक ई कथा मीठ लागत। सज्जनगण एहि कथा केँ अपन जी पर श्री रामजीक भक्ति सँ भूषित जानिकय सुन्दर वाणी सँ सराहना करैते सुनता।
 
६. हम नहि त कवि छी, नहि वाक्य रचने मे कुशल छी, हम तऽ सब कला तथा सब विद्या सँ रहित लोक छी। नाना प्रकार केर अक्षर, अर्थ और अलंकार, अनेक प्रकारक छंद रचना, भाव और रस सभक अपार भेद और कविता केर भाँति-भाँति केर गुण-दोष होइत छैक। एहि मे सँ काव्य सम्बन्धी एकहु बात केर ज्ञान हमरा नहि अछि, ई बात हम सादा कागज पर लिखिकय (शपथपूर्वक) सत्य-सत्य कहैत छी। हमर रचना सब गुण सँ रहित अछि, एहि मे बस जगत्प्रसिद्ध एकटा गुण छैक जेकरा विचार करैत नीक बुद्धिवाला पुरुष, जिनकर निर्मल ज्ञान छन्हि, से एकरा सुनता। एहिमे श्री रघुनाथजीक उदार नाम छैक, जे अत्यन्त पवित्र अछि, वेद-पुराणक सार अछि, कल्याणक भवन अछि और अमंगल सब केँ हरण करयवला अछि, जेकरा पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी सदिखन जपल करैत छथि।
 
७. जे नीक कवि द्वारा रचल गेल बड़ा सुन्दर कविता अछि, ओहो राम नाम के बिना शोभा नहि पबैत अछि। जेना चन्द्रमाक समान मुखवाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार सँ सुसज्जित भेलोपर वस्त्रक बिना शोभा नहि पबैछ। एकर विपरीत, कुकवि केर रचल गेल सब गुण सँ रहित कविता सेहो राम केर नाम एवं यश सँ अंकित जानिकय, बुद्धिमान लोक आदरपूर्वक कहैत और सुनैत छथि, कियैक तँ संतजन भौंराक भाँति गुण मात्र केँ ग्रहण करयवला होइत छथि।
 
८. यद्यपि हमर एहि रचना मे कविताक एकहु टा रस नहि अछि, तैयो एहि मे श्री रामजीक प्रताप प्रकट अछि। हमर मन मे यैह एकटा भरोसा अछि। भलाक संग सँ भला के बड़प्पन नहि पेलक? धुआँ सेहो अगरबत्तीक संग सँ सुगंधित भ’ कय अपन स्वाभाविक कड़ुवापन केँ छोड़ि दैत अछि।
 
९. हमर कविता अवश्य भद्दा अछि, परन्तु एहि मे जगत केर कल्याण करयवला रामकथा रूपी उत्तम वस्तुक वर्णन कयल गेल अछि। एहि सँ ईहो नीके बुझल जायत।
 
१०. श्री रघुनाथजीक कथा कल्याण करयवला और कलियुग केर पाप केँ हरण करयवला अछि। एहि भद्दा कविता रूपी नदीक चाइल पवित्र जल वाली नदी (गंगाजी) केर चाइल जेकाँ टेढ़ अछि। प्रभु श्री रघुनाथजी केर सुंदर यश केर संग सँ ई कविता सुंदर तथा सज्जन केर मन केँ भावयवला भ’ जायत।
 
११. श्मशानक अपवित्र छाउर (भस्म) सेहो श्री महादेवजीक अंग के संग सँ सुहाओन लगैत छैक और स्मरण करित देरी पवित्र करयवला होइत छैक।
 
१२. श्री रामजी केर यश केर संग सँ हमर कविता सब केँ अत्यन्त प्रिय लागत। जेना मलय पर्वत केर संग सँ काष्ठमात्र (चंदन बनिकय) वंदनीय भ’ जाइत अछि, फेर कि कोनो काठ (केर तुच्छता) केर विचारो करैत अछि? श्यामा गउ कारी भेलोपर ओकर दूध उजरे और बहुत गुणकारी होइत छैक। यैह बुझि सब कियो ओ पिबैत अछि। एहि तरहें गँवारू भाषा भेलो पर श्री सीतारामजी केर यश केँ बुद्धिमान लोक बड़ा चाव सँ गबैत और सुनैत छथि।
 
१३. मणि, माणिक और मोती केर जेहेन सुंदर छबि छैक, ओ साँप, पर्वत आर हाथी केर मस्तक पर ओतेक शोभा नह पबैछ। राजाक मुकुट और नवयुवती स्त्रीक शरीर केँ पाबिकय मात्र ई सब अधिक शोभा केँ प्राप्त होइत अछि। तहिना, बुद्धिमान लोक कहैत छथि जे सुकवि केर कविता सेहो उत्पन्न और कतहु होइत अछि आर शोभा अन्यत्र कतहु पबैत अछि। अर्थात कवि केर वाणी सँ उत्पन्न भेल कविता ओतय शोभा पबैत अछि जतय ओकर विचार, प्रचार तथा ओहि मे कथित आदर्श केर ग्रहण और अनुसरण होइत अछि।
 
१४. कवि केँ स्मरण करैत देरी ओकर भक्तिक कारण सरस्वतीजी ब्रह्मलोक केँ छोड़िकय दौड़ल आबि जाइत छथि। सरस्वतीजीक दौड़ल एबाक ओ थकावट रामचरित रूपी सरोवर मे हुनका नहेने बिना दोसर करोड़ों उपाय सँ सेहो दूर नहि कयल जा सकैछ। कवि और पण्डित अपन हृदय मे एना विचारिकय कलियुग केर पाप सभक हरनिहार श्री हरिक यश केर मात्र गान करैत छथि। संसारी मनुष्यक गुणगान करय सँ सरस्वतीजी माथा धुनैत पछताय लगैत छथि जे हम एकरा बजेला पर बेकारे एलहुँ।
 
१५. बुद्धिमान लोक सब हृदय केँ समुद्र, बुद्धि केँ सीप और सरस्वती केँ स्वाति नक्षत्र केर समान कहैत छथि। एहि मे यदि श्रेष्ठ विचार रूपी जल बरसैत अछि त मुक्ता मणि केर समान सुंदर कविता होइत अछि। ओहि कविता रूपी मुक्तामणि केँ युक्ति सँ भूर कय केँ फेर रामचरित्र रूपी सुन्दर तागा मे गाँथि सज्जन लोक अपन निर्मल हृदय मे धारण करैत छथि, जाहि सँ अत्यन्त अनुराग रूपी शोभा होइत अछि। ओ आत्यन्तिक प्रेम केँ प्राप्त होइत अछि।
 
१६. जे कराल कलियुग मे जन्मल अछि, जेकर करनी कौआक समान छैक और वेष हंस केर जेहेन, जे वेदमार्ग केँ छोड़िकय कुमार्ग पर चलैत अछि, जे कपट केर मूर्ति और कलियुग केर पापक भाँड़ थिक, जे श्री रामजीक भक्त कहाकय लोक सब केँ ठकैत अछि, जे धन (लोभ), क्रोध और काम केर गुलाम अछि और जे धींगाधींगी करयवला, धर्मध्वजी (धर्म केर झूठे ध्वजा फहराबयवला दम्भी) और कपट केर धन्धाक बोझ उठबयवला अछि, संसार केर एहेन लोक मे सबसँ पहिने हमर गिनती अछि।
 
१७. यदि हम अपन सब अवगुण केँ कहय लागब त कथा बहुत बढ़ि जायत आर हम पार नहि पायब, ताहि सँ हम बहुत कम अवगुण केर वर्णन कयलहुँ अछि। बुद्धिमान लोक कनिकबे मे सबटा बुझि जेताह। हमर विभिन्न प्रकारक विनती केँ बुझिकय, कियो एहि कथा केँ सुनिकय दोष नहि देता। एतबो पर जँ शंका करता, ओ तऽ हमरो सँ बेसी मूर्ख और बुद्धिक कंगाल हेताह।
 
१८. हम नहि त कवि छी, नहिये चतुर कहाइत छी, अपन बुद्धिक अनुसार श्री रामजीक गुण गबैत छी। कतय श्री रघुनाथजीक अपार चरित्र, कतय संसार मे आसक्त हमर बुद्धि!
 
१९. जाहि हवा सँ सुमेरु जेहेन पहाड़ उड़ि जाइत अछि, कहू त, ओकर सामने रूइया कोन गिनती मे अछि।
 
२०. श्री रामजीक असीम प्रभुता केँ बुझिकय कथा रचना मे हमर मन बहुत हिचकैत अछि – सरस्वतीजी, शेषजी, शिवजी, ब्रह्माजी, शास्त्र, वेद और पुराण – ई सब ‘नेति-नेति’ कहिकय (पार नहि पाबिकय ‘एना नहि’, ‘एना नहि’, कहैत) सदा जिनकर गुणगान कयल करैत अछि। यद्यपि प्रभु श्री रामचन्द्रजीक प्रभुता केँ सब एहने (अकथनीय) टा जनैत अछि, तथापि कहने बिना कियो नहि रहल। एहि मे वेद एहेन कारण बतेलक अछि जे भजनक प्रभाव बहुत तरह सँ कहल गेल अछि। अर्थात भगवानक महिमाक पूरा वर्णन तऽ कियो कय नहि सकैत अछि, मुदा जेकरा सँ जतेक बनि पड़लैक ओ ओतबे भगवानक गुणगान करबाक चाही, कियैक तऽ भगवानक गुणगान रूपी भजनक प्रभाव बहुते विलक्षण होइछ, एकर अनेकों प्रकार सँ शास्त्र सब मे वर्णन अछि।
 
२१. कनियो टा के भगवानक भजन मनुष्य केँ सहजहि भवसागर सँ तारि दैत अछि।
 
२२. जे परमेश्वर एक छथि, जिनकर कोनो इच्छा नहि छन्हि, जिनकर कोनो रूप आर नाम नहि अछि, जे अजन्मा, सच्चिदानन्द और परमधाम छथि और जे सबमे व्यापक एवं विश्व रूप छथि, वैह भगवान दिव्य शरीर धारण कय केँ नाना प्रकारक लीला कयलनि अछि।
 
२३. ओ लीला केवल भक्तक हित केर लेल भेल अछि, कियैक त भगवान परम कृपालु छथि और शरणागत केर बड़ा प्रेमी छथि। जिनकर भक्त पर बड़ा ममता और कृपा छन्हि, जे एक बेर जेकरा पर कृपा कय देलनि, ओकरा पर फेर कहियो क्रोध नहि कयलनि।
 
२४. ओ प्रभु श्री रघुनाथजी हेरा गेल वस्तु केँ फेर प्राप्त करबयवला, गरीब नवाज (दीनबन्धु), सरल स्वभाव, सर्वशक्तिमान और सभक स्वामी छथि। यैह बुझिकय बुद्धिमान लोक ओहि श्री हरि केर यश वर्णन कय केँ अपन वाणी केँ पवित्र और उत्तम फल (मोक्ष और दुर्लभ भगवत्प्रेम) दयवला बनबैत छथि। ओहि बल सँ (महिमा केर यथार्थ वर्णन नहि, परन्तु महान फल दयवला भजन बुझिकय भगवत्कृपा केर बल पर मात्र) हम श्री रामचन्द्रजी केर चरण मे सिर नबवैत श्री रघुनाथजी केर गुण केर कथा कहब। एहि विचार सँ (वाल्मीकि, व्यास आदि) मुनि लोकनि पहिने हरि केर कीर्ति गेने छथि। भाइ! वैह मार्ग पर चलब हमरा लेल सुगम होयत।
 
२५. जे अत्यन्त पैघ श्रेष्ठ नदी अछि, यदि राजा ओहिपर पुल बन्धा दैत अछि त अत्यन्त छोट चुटी सेहो ओहि पर चढ़िकय बिना कोनो परिश्रमहि के पार चलि जाइत अछि। तहिना मुनि लोकनिक वर्णन केर सहारे हमहुँ श्री रामचरित्र केर वर्णन सहजहि कय सकब। एहि तरहें मन केँ बल प्रदान करैत हम श्री रघुनाथजीक सोहाओन कथाक रचना करब। व्यास आदि जे अनेकों श्रेष्ठ कवि भ’ गेलाह अछि, जे सब बड़ा आदर सँ श्री हरि केर सुयश वर्णन कयलनि अछि।
 
हरिः हरः!!