रामचरितमानस मोतीः संत-असंत वंदना

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

 
४. संत-असंत वंदना

 

एहि सँ पहिने ब्राह्मण आ संत केँ सेहो प्रणाम अर्पित करबाक विलक्षण मोती सब अध्याय २ मे प्राप्त कय चुकल छलहुँ। पुनः दुष्ट-दुर्जन केँ प्रणाम अर्पित करबाक मोती सेहो भेटल। आर, मंगल आचरण अन्तर्गत आइ प्रस्तुत अछि दोसर अति विलक्षण मोतीक भंडार, संत आ असंत केर तुलना करैत महाकवि द्वारा प्रणाम अर्पित करबाक उदाहरण, जे हमरा सभक वास्ते अनुकरणीय अछि। अपन-अपन जीवन मे जे कोनो पुण्यक काज करबाक विचार कएने होयब, अथवा आगू करब, त एहि मंगलाचरण मुताबिक अपन काज आरम्भ करी से निवेदन। आउ देखू आजुक मोतीः
 
तुलसीदासजी कहैत छथि, “आब हम संत और असंत दुनूक चरणक वन्दना करैत छी। दुनू दुखे दयवला छथि। मुदा हुनका दुनूक देल दुःख मे अन्तर कहल गेल अछि। से अंतर ई अछि जे एक (संत) तऽ बिछुड़ैत समय प्राण हरि लैत छथि आर दोसर असंत भेटैत साथ दारुण दुःख दयवला होइत छथि।” अर्थात्‌
 
१. संत केर बिछुड़ब मरबाक समान दुःखदायी होइत अछि और असंत केर मिलन दुःखदायी होइत अछि।
 
२. दुनू (संत और असंत) जगत मे एक्के संग पैदा होइत अछि, जेना कमल आ जोंक एक्के संग एक्के माहौल (जल आ थाल-कीच मे) मे पैदा होइत अछि। आर ई एक्के संग पैदा होयवला कमल आ जोंक केर जेना गुण अलग-अलग होइत छैक – कमल दर्शन व स्पर्श सँ सुख दैत छैक, मुदा जोंक शरीर केर स्पर्श पबिते रक्त चूसय लगैत छैक, तहिना संत-असंत केर एक संग पैदा होयबाक तथ्य एहि संसार मे स्थापित अछि।
 
३. साधु अमृत केर समान मृत्युरूपी संसार सँ उबारयवाला और असाधु मदिराक समान मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करयवला होइछ। दुनूक उत्पन्न करयवला जगतरूपी अगाध समुद्र एक्के थिक।
 
४. शास्त्र मे समुद्रमन्थनहि सँ अमृत और मदिरा दुनूक उत्पत्ति कहल गेल अछि।
 
५. भ’ल आ ब’द यानि नीक आ बेजा अपन-अपन करनीक अनुसार सुन्दर यश और अपयश केर सम्पत्ति प्राप्त करैत अछि।
 
६. अमृत, चन्द्रमा, गंगाजी और साधु तथा विष, अग्नि, कलियुग केर पापक नदी यानि कर्मनाशा और हिंसा करयवला व्याध, एहि सभक गुण-अवगुण सब कियो जनैत अछि, मुदा जेकरा जे पसीन पड़ैत छैक, ओकरा वैह नीक लगैत छैक।
 
७. भ’ल हमेशा भलाइये केँ ग्रहण करैत अछि और नीच नीचते केँ ग्रहण कएने रहैत अछि। अमृतक सराहना अमर करय मे होइत छैक और विष केँ मारय मे।
 
८. दुष्ट सब केर पाप व अवगुण केर आर साधु लोकनिक गुण केर कथा – दुनू अपार आ अथाह समुद्र थिक। एतय गोटेक गुण और दोष टा केर वर्णन कयल गेल अछि, कियैक तँ बिना बुझने ओकर ग्रहण या त्याग नहि भ’ सकैत अछि।
 
९. भ’ल कि ब’द सबटा ब्रह्मा केर पैदा कयल छियनि। मुदा गुण आ दोष केर विचार कय वेद द्वारा दुनू केँ अलग-अलग कय देल गेल अछि। वेद, इतिहास और पुराण कहैत अछि कि ब्रह्मा केर ई सृष्टि गुण-अवगुण सँ सनायल अवस्था मे अछि।
 
१०. दुःख-सुख, पाप-पुण्य, दिन-राति, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, दानव-देवता, ऊँच-नीच, अमृत-विष, सुजीवन (सुंदर जीवन)-मृत्यु, माया-ब्रह्म, जीव-ईश्वर, सम्पत्ति-दरिद्रता, रंक-राजा, काशी-मगध, गंगा-कर्मनाशा, मारवाड़-मालवा, ब्राह्मण-कसाई, स्वर्ग-नरक, अनुराग-वैराग्य – ई सब पदार्थ ब्रह्माक सृष्टि मे छन्हि।वेद-शास्त्र द्वारा एहि सबहक गुण-दोष केर विभाग कय देल गेल अछि।
 
११. विधाता एहि जड़-चेतन विश्व केँ गुण-दोषमय रचलनि अछि, मुदा संतरूपी हंस दोषरूपी जल केँ छोड़िकय गुणरूपी दूध टा केँ ग्रहण करैत छथि।
 
१२. विधाता जखन एहि तरहक हंस सन विवेक दैत छथि तखन दोष केँ छोड़िकय मन गुण मे अनुरक्त होइत अछि।
 
१३. काल, स्वभाव आर कर्म केर प्रबलता सँ भला लोक (साधु) सेहो मायाक वश मे रहिकय यदा-कदा भलाई सँ चूकि गेल करैत अछि।
 
१४. भगवान केर भक्त जेना ओहि चूक केँ सुधारि लैत छथि और दुःख-दोष केँ मेटाकय निर्मल यश दैत छथि, तेनाही दुष्ट सेहो कहियो-काल उत्तम संग पाबिकय भलाई के काज करैत अछि, मुदा ओकर कहियो भंग नहि होयवला मलिन स्वभाव नहि मेटाइत छैक।
 
१५. जे भेषधारी ठग होइछ, ओकरो नीक (साधु सनक) भेष बनायल देखिकय भेष केर प्रताप सँ ई जग पूजैत अछि, मुदा एक न एक दिन ओकर असलियत उजागर भ’ जाइत छैक, अंत धरि ओकर कपट नहि चलि पबैत छैक। जेना कालनेमि, रावण और राहु केर हाल भेलैक तहिना।
 
१६. खराब भेष बनैयो लेलापर साधु लोकनिक सम्माने भेल करैत छन्हि। जेना जाम्बवान्‌ और हनुमान्‌जी केर भेलनि।
 
१७. खराब संग सँ हानि और नीक संग सँ लाभ होइत छैक, से बात लोक और वेद मे प्रसिद्ध छैक सब लोक एहि बात केँ जनैत अछि।
 
१८. पवन (हवा) केर संग सँ धूरा आकाश पर चढ़ि जाइत अछि और वैह नीच (नीचाँ दिश बहयवाली) जल केर संग पाबि थाल (कीचड़) मे मिलि जाइत अछि।
 
१९. साधु लोकनिक घर केर तोता-मैना राम-राम सुमिरैत अछि और असाधु लोकनिक घर केर तोता-मैना चुनि-चुनिकय गारिये टा दैत अछि।
 
२०. कुसंग केर कारण धुआँ कारिख कहाइत अछि, वैह धुआँ (सुसंग सँ) सुन्दर रोशनाई बनिकय पुराण लिखय के काज मे अबैत अछि। और, वैह धुआँ जल, अग्नि और पवन केर संग सँ बादल बनिकय जगत केँ जीवन दयवला बरखा बनि जाइत अछि।
 
२१. ग्रह, औषधि, जल, वायु और वस्त्र – ई सब सेहो कुसंग और सुसंग पाबिकय संसार मे खराब और नीक पदार्थ बनि जाइत अछि। चतुर एवं विचारशील पुरुष मात्र एहि बात केँ जानि पबैत छथि।
 
२२. महीनाक दुनू पखवाड़ा मे इजोरिया और अन्हरिया समान रूप सँ रहैत अछि, मुदा विधाता एलर नाम मे भेद कय देने छथि, एकटाक नाम नाम शुक्ल और दोसर के नाम कृष्ण राखि देलनि। एकटा केँ चन्द्रमा केँ बढ़ाबय वला और दोसर केँ ओकरा घटाबय वला बुझिकय जगकेर लोक द्वारा एकटा केँ सुयश और दोसर केँ अपयश दय देल गेल अछि।
 
हरिः हरः!!