कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
एहेन शिक्षा?
बड पैघ खानदान, कुलीनता, शिक्षा, संस्कार आ हर मामिला मे प्रतिष्ठित कहेनिहार मनोहर बाबूक चारि पुत्र आ दुइ पुत्री – छबो सन्तान केँ शिक्षा प्राप्ति लेल पूर्ण सहयोग देलनि। जेठ बेटा सुबोध त पढाई मे एतबे मेधावी भेला जे ताहि समयक पढाई केर लब्धप्रतिष्ठित पटना साइंस कालेज सँ बी.एससी. आ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय सँ एम.एससी. पास कय सिविल सर्विसेज परीक्षा सेहो पास कयलनि। बिहार सरकारक एक प्रतिष्ठान (विभाग) केर बहुत पैघ पदाधिकारी भेलाह। अन्य तीन पुत्र मे शिक्षा प्रति जेठ बेटा जेकाँ ललक आ लगन के अभाव मे साधारण पढाई मात्र पूरा कयलथि। बेटी सब त गामक बाहर गेबो नहि कयलीह आ ताहि समयक सामाजिक व्यवहार अनुसार हुनका लोकनिक विवाह करा देल गेलनि, सासुर के परिवार सम्हारबाक शिक्षा हासिल करय मे ओ लोकनि अग्रसर भ’ अपन-अपन जीवन केँ आगू बढौलीह। मैझला बेटा खेती-गृहस्थीक काज सम्हारि लेलनि, सब सँ छोट बेटा सेहो हुनकहि सहयोग मे रहि गेलाह। सैझला बेटा गाम आ परदेश के बीच व्यवसाय करबाक विधा चुनलनि, कपड़ा दुकान करथि, हाट सब पर सेहो हुनकर पसार लागल करय। चारू बेटा आ बुढ़ा पिता आ सम्पूर्ण परिजन खूब प्रसन्न रहथि। गाम सँ इलाका भरि मे एहि परिवारक एकटा अलगे सम्मान स्थापित छल। परिवार मे जखन सभक बीच मिलनसारिता सँ पैतृक विरासत प्रति जिम्मेदारीक बोध देखल जाइछ त स्वाभाविक तौर पर सभक दृष्टि एहेन परिवार केँ स्नेह भरल दृष्टि सँ देखल करैत अछि।
जेठ बाल सुबोध बाबू चूँकि पैघ पदाधिकारी रहथि, बेसीकाल ड्यूटी पर शहरे मे रहय पड़न्हि… तेँ ओ अपन परिवार केँ अपनहि संग राखथि आ बाकी ३ भाइ के परिवार गामहि के हवेलीक शोभायमान कएने रहथि। धीरे-धीरे हिनको सभक बाल-बच्चा पैघ होबय लगलनि। सुबोध बाबू केँ सेहो ५ पुत्र आ २ पुत्री भेलखिन। सभक शिक्षा दीक्षा उच्चकोटिक भेलनि। लेकिन ई की? हिनकर छोटकी बेटी एक आन जातिक युवा सँ प्रेम कय बैसलीह अपनहि कालेज मे, आ ई खबरि सुबोध बाबू केँ लगिते परिवार मे फसाद मचि गेल। भाइ, माय, पैघ बहिन सब हुनकर एहि प्रेम के विरूद्ध आ पिता मात्र अपन पुत्रीक एहि निर्णय पर न हँ आ ने न कहि कनिकाल मौन धारण कय, बेटी केँ असगरे मे बजा पुछलथि – कि अहाँ अपन निर्णय पर अडिग छी? कि अहाँ केँ एना लगैत अछि जे लड़का व ओकर परिवार अहाँ केँ नीक सँ रेख-देख करत? जँ अहाँक सम्बन्ध एहि परिवार सँ पूर्ण विच्छेदो भ’ जायत तैयो अहाँ अपन विवाहित जीवन केँ नीक सँ सम्हारि लेब?
बेटीक जवाब बहुत सुझबुझ भरल भेटलनि। ओ कहलखिन जे बाबूजी! हम स्वयं मास्टर्स डिग्री हासिल कय रहल छी। हमर विषय अंग्रेजी आ सोशियोलौजीक संग अन्तर्राष्ट्रीय कानून अछि। हम विश्व परिवेश केँ नीक सँ पढि आ बुझि रहल छी। हमर मित्र जिनका सँ हमरा विवाह करबाक अछि ओ हमरा सँ बेसी कुशाग्र आ गम्भीर अध्येता छथि। जाति हमर ब्राह्मण अछि त हुनको जाति राजपुत छन्हि, तेँ पारिवारिक संस्कार कि जातीय संस्कार मे बड बेसी अन्तर नहि बुझाइत अछि। अहाँ केँ दिक्कत नहि हुए तेँ पहिने बड़की बहिनक विवाह तय करू, बड़का भैया सभक विवाह सेहो कय दियौन… जखन हमर नम्बर आओत आ अहाँ कहब तखनहि हम सब विवाह बन्धन मे बन्हायब आ अपन गृहस्थी आगू बढायब। विद्योत्तमा बेटीक श्रीमुख सँ एतेक धीर-गम्भीर बात सुनि समझौतावादी पदाधिकारी पिता आश्वस्त भेलाह, घरक फसाद केँ शान्त करैत सब केँ बुझेलखिन जे सुकन्याक निर्णय परिवारक प्रतिकूल नहि अनुकूल बुझय जाउ, विवाहक निर्णय बाद मे लेब।
आब पिताक लचीलापन देखि माझिल भाइ सेहो अपन प्रेमकथा परिवारक सोझाँ रखलथि। हिनकर पसीन स्वजातिये के रहनि धरि बात-विचार आ संस्कार बाहरी देशक (मिथिला सँ इतर) केर रहनि। हिनको निर्णय केर विरोध मे माता जिद्द पकड़ि लेलीह, मुदा पिताक मध्यस्थता सँ हिनको मनोनुकूल संगी संग जीवन निर्वाह करबाक स्वीकृति दय देल गेल। फेर कि छल! एहि तरहें जेठ बालकक विवाह मिथिलाक एक कुलीन परिवार मे, माझिलक विवाह बाहरी देशक एक खूब पढ़ल-लिखल आ योग्य कन्याक संग, माझिलहि केर विवाह मे पसीन पड़ल एक बाहरी देशहि केर कन्याक संग सैझला सेहो विवाह करबाक निर्णय कय लेलनि। पिता हुनको प्रति स्वीकृति प्रदान कयलनि। जेठ बेटी आराधनाक विवाह सेहो एकटा समकक्षहि केर ब्राह्मण परिवारक उच्च सुशिक्षित वर संग कय देल गेल। सभक विवाह भ’ गेलाक बाद छोट बहिन आ छोट बेटाक विवाह सेहो कयल गेल। छोट बेटी अन्तर्जातीय विवाह कयलनि, परिवार ओहि विवाह मे शामिल नहि भेल लेकिन पिताक सहमति सँ ओ विवाह भेल छल तेँ दुनू केँ आशीर्वाद सब कियो देलनि, गाम-घर आ समाज सँ ई बात नुकायल गेल। छोट बेटाक विवाह सेहो किछु वर्ष बाद एकटा नीक मैथिल कन्याक संग कय देल गेलनि।
गाम के लोक आ एतेक तक कि अपन भाइयो व परिवार सँ ई सब बात नुका लेल गेल छल। सब केँ यैह बुझय मे आयल जे सुबोध बाबूक परिवार बाहरे मे रहलखिन तेँ सबटा कुटमैती बाहरे-बाहर सेट भ’ गेलनि। जे सब विवाह मे सहभागिता देबय शहर जाइत छलाह ओहो लोकनि बेसी भीतर प्रवेश करबाक हिम्मत नहि करथि, जेठ भाइ के धाख आ लाज के कारण। बस भैया जे कहि देला वैह बात सच छैक एतबे बुझल करथि। छोट बेटाक विवाह फेर गामहि-समाजक आनल कथा मुताबिक कयलनि। शिक्षाक महत्व सँ सुपरिचित एहि परिवार केर सब बेटा व बेटी अपन-अपन योग्यताबल सँ नीक-नीक पद प्राप्त कयलथि। सब कियो ए-क्लास के पदाधिकारी भेलाह। अन्तर्जातीय विवाह कयल बेटी-जमाय केँ कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय सँ आफर भेट गेलनि, ओ लोकनि लन्दन जे गेलाह से ओतहि बसि गेलाह। हुनका सभक सन्तान जे भेलनि सेहो सब लगभग माता-पिताक सिद्धान्त अनुसार अपन-अपन पसीन सँ यूके मे विवाह करय जाय गेलाह, कियो साउथ इंडियन सँ, कियो फ्रांसिसी सँ, कियो बेलायती सँ। एम्हर जे भाइ-बहिन सब बचि गेलथि, हिनको लोकनिक सन्तान माता-पिताक अनुगामी बनि येन-केन-प्रकारेण अपन-अपन जीवनसंगी ताकि-ताकिकय विवाह करय जाय गेलथि। कियो उत्तर प्रदेश कान्यकुब्ज ब्राह्मण त कियो साउथ इंडियाक अय्यर ब्राह्मण, भ’ सकैत छैक जे आरो कोनो मुदा समाज मे यैह बात आयल जे फल्लाँक बेटाक विवाह फल्लाँ ठाम फल्लाँ ब्राह्मण सँ भेलनि। चूँकि ओ सब बाहरे रहल करथि, गाम समाज सँ कोनो खास मतलब नहि राखि पाबथि… आर एहि तरहें सुबोध बाबू के परिवार विश्व भरि मे अपन पसार पसारि लेलक।
कथा केँ आब हम रोकि रहल छी। गाम-समाज मे सुबोध बाबू अपन अन्तिम समय बितेलनि। हुनका सब दिन लोक इज्जत-प्रतिष्ठा दैते रहलनि। लेकिन जाहि सुशिक्षित-सुसंस्कृत सन्तान सभ केँ स्वतंत्रता-स्वायत्तता सुबोध बाबू देलनि, ओ सब जाहि आधार पर अपन-अपन जीवनक निर्णय करय गेलाह आ आगू बढय गेलाह, आइयो संसारक अनेकों देश मे सुबोध बाबूक छीटल बिया जरूर लहलहाइते होयत… धरि गाम-समाज केँ ई सब किछु नहि पता अछि आ सुबोध बाबूक मृत्योपरान्त ओ कहियो के हंसैत-खेलाइत हवेली सुनसान पड़ल अछि, रातिक समय घरक भीतर सँ अजीब अजीब आवाज सब अबैत अछि, शायद चमगादड़ आ किछु विषधर सब बहुत दिन सँ पड़ल घर मे अपन बसेरा बना चुकल हो किछु तहिना। आगू सुबोध बाबूक प्रपौत्र-प्रपौत्री सभक विवाह हेबाक समय सेहो आबि गेल बुझू – आब त हिसाबो राखब कठिने होयत। शिक्षित परिवार आ स्वयं केँ वैश्विक परिवेश मे सर्वोपरि मानयवला मिथिलाक अधिकांश परिवारक बिया संसारक दूर देश धरि भेटत, लेकिन हिसाब राखब असम्भव अछि। अस्तु! कथाक सार पर अपन-अपन बुझाइ जरूर कमेन्ट करब ई हमर विशेष आग्रह अछि।
हरिः हरः!!