आलेख
– राम चैतन्य धीरज
*एहि भूमण्डलीकरणक युग मे कविताक सीमा व्यापक भऽ गेल अछि। तेँ एहि व्यापकता मे संघर्षक आयाम केँ प्रस्तुत करब आवश्यक अछि।
*क्षेत्रीय राष्ट्रीयता आ ओकर दर्शन संस्कृति पर जाहि प्रकारक खतरा मंडरा रहल अछि, ओ हमरा सचेत करैत अछि जे जँ अंग्रेजीक बाढि मे मैथिली भसिआइत रहत तँ मैथिलीक अस्तित्वो लुप्त भऽ जा सकैत अछि।
*ग्लोवल विलेज आ आर्थिक उदारीकरणक एहि दौड़ मे जाहि प्रकारक बाजारवाद केँ प्रोत्साहित कयल जा रहल अछि ताहिसँ उत्पन्न अपसंस्कृतिक प्रभाव चारूकात देखबा मे अबैत अछि। एहि स्थिति मे सचेत होयबाक आवश्यकता छैक एवं अपन भाषा-संस्कृतिक रक्षा निमित्त डेग उठायब आवश्यक छैक।
*आइ विश्व एकटा केमरा मे बन्द अछि आ तेँ विश्व मानवताक दृष्टि प्रत्येक राष्ट्र केँ परस्पर जोड़ैत अछि।
*विश्व बाजारवादी व्यवस्थाक अपसंस्कृति व्यक्तिक आवश्यकता, दर्शन आ संस्कार पर हस्तक्षेप कऽ रहल अछि, जाहि सँ व्यक्तिक स्वाधीनता आ मुक्ति, स्वच्छन्दता मे बदलि रहल अछि। माने समस्या बनल जा रहल अछि।
*तेँ दीर्घकविताक अपन महत चिन्तनक संगहि महाकाव्यात्मकताक बोध मे उतरैत अछि।
*दीर्घ कविता मे विचार भावात्मक रूप ग्रहण कऽ चिंतन केँ आयाम दैत अछि तेँ ई शब्द कर्मे टा नहि अपितु ज्ञानो शक्तिक अनन्य स्रोत होइत अछि।
*कविता जँ रोजमर्रा सँ अधिक जीवन दर्शन आ संस्कृति सँ नहि जुड़ैत अछि तँ ओकर आयाम संकुचित भऽ जाइत अछि।
*कविता ज्ञानक स्वरूप आ प्रकार थिक, तेँ ई ज्ञाने जकाँ उर्जा आ शक्तिवर्धन करयवला चेतना होइत अछि।
*कविता शब्दबोधे टा नहि, अपितु अन्तर्मनक यात्रा होइत अछि। तेँ ई जीवन दृष्टिक प्रत्यक्ष संवाद होइत अछि।
*ओना कविताक सत्य सामाजिक अन्तर्संबंध होइत अछि मुदा परम सत्य स्वाधीनता आ मुक्तिक दिशा-निर्देश होइत अछि।
*कविता मे स्वरूप विन्यासक हेतु प्रतीक, बिम्ब आ उपमानक सहचर्य एवं संगीत मुक्त गीतात्मकताक आवश्यकता होइत अछि।
*एहि सब अर्थ मे कविता चेतना आ अभिव्यक्तिक प्रवाहमय, संवेदात्मक आ सौन्दर्यशील उपस्थापन होइत अछि।
*ओना कविता अनुभव आ भावक सघनताक संग जीवन मे उतरैत अछि, मुदा ईहो तय करैत अछि जे जीवनक सर्वश्रेष्ठ आ स्थायी धारणा कि होइत अछि।
*विश्व मे होइत संघर्षक प्रत्यक्ष भाव कविता मे उतरि घटनाक ऐतिहासिक दस्तावेज बनैत अछि, तेँ कविता विश्व व्यापकताक संग क्षेत्रीय रूपरेखा मे उतरैत अछि।
(लेखक डा. राम चैतन्य धीरजक नव प्रकाशित पोथीक शुरु एहि कविता परिचय सँ भेल अछि।)