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किछु तँ लोक सब कहतय – लोकक त काज छय कहनाय

प्रेरणास्पद प्रसंग

– प्रवीण नारायण चौधरी

सहिये कहलनि अछि धर्मनाथ जी – लोक अहाँक बारे मे नीक सुनैत अछि त शक-सन्देहक दृष्टि सँ अहाँक चरित्र-चित्रण करब आरम्भ कय दैछ आ जँ बेजा (खराब) सुनैत अछि त तुरन्त ओहि पर यकीन (विश्वास) कय लैत अछि। ई अवस्था लोक-संसार मे अवश्य छैक। लेकिन एहि लेल अपन संसार केँ बर्बादीक दिशा मे कथमपि नहि लय जाउ। सावधान होउ।

लोक कि करैत छथि ताहि सँ बहुत ऊपर होइत छैक जे ‘हम स्वयं कि करैत छी’। लोक हमरा सम्बन्ध मे अपन-अपन दृष्टि-विचार अनुरूप किछु कहता, एकरा हम बिल्कुल नहि रोकि सकैत छी, लेकिन लोकक दृष्टि-विचार मे हमरा प्रति हेय दृष्टि (खराब विचार) केँ अपन कर्मठता सँ सदा-सदा के लेल बदलि सकैत छी। एहि तरहक अन्तर्भाव मे जँ हम सब जियब त निश्चित सफल सेहो बनब आ लोकक दृष्टि आ विचार सेहो हमरा प्रति नीके होयत तेहेन आत्मविश्वास हासिल करब।

मोहन बच्चा छल आ ओकरा चाह पिबय के आदति बापक दुलार मे लागि गेलैक। बाप जखन पूरा कप चाह पीबि लेथि आ अन्तिम १-२ घोंट बचि जाइक त मोहन केँ ओहि कप दिश टकटकी दृष्टि देखैत दुलार सँ दय देल करथि। लेकिन मोहन लेल ई २ घोंट चाह धीरे-धीरे भरि कप चाह पिबय दिश अग्रसर कय देलकैक। ओहि एक कप चाह लेल ओ चोरी करब सेहो सीखि गेल। चवन्नी मे चाह आबय। ओ अठन्नी के इन्तजाम मे लागि जाय। बच्चा मोन, ओ बड बेसी नीक-बेजा नहि बुझय… बस चाह पीबाक इच्छा सँ चोरी करय धरि ओकर मन चलि गेलैक। खराब आदति ओकरा मे प्रवेश कय गेलैक। मुदा जखन मोहन कनिक पैघ भेल आ ओकर चोरी पकड़ा गेलाक बाद जे तिरस्कारक सामना करय पड़लैक त ओकरा पता चललैक जे दुलार-प्यार सँ प्राप्त चाह आइ ओकरा लेल नशाक रूप मे परिणति पाबि गेल अछि आर यैह कारण ओ चोरी तक करैत अछि। पैसा चोरबैत अछि, फेर चोराकय कोनो दोकान पर जाय केँ चाह पिबैत अछि। ओतय कतेको रंगक लोक ओकरा दिश तकैत रहैत छैक, ओ मुंह नुकेने चाह सुरकैत रहैत अछि। धृष्टता, निर्लज्जता आ हठी स्वभाव आदि अनेकों दुर्गुण एकटा चाह केर कारण ओकरा मे प्रवेश पाबि गेल अछि। एहि तरहें मोहन अपना केँ चेतबैत अछि। ओ सब सँ पहिने चोरी नहि कय अपन किछु आमद होयत तखनहि चाह पियब से निर्णय करैत अछि। फेर धीरे-धीरे अपन सारा दुर्गुण केँ गुण दिश उन्मुख करैत अछि। ओकर सम्बन्ध मे ता धरि अनेकों बात समाज मे होबय लगैत छैक। लेकिन ओ ओहि सब बातक प्रतिकार केवल स्वयं मे सुधार आनिकय करय चाहैत अछि। ओ केकरो सँ मुंह नहि लगैत अछि, केकरो लग झूठक बहाना नहि बनबैत अछि, बल्कि अपन कमजोरी केँ बुझि केवल अपनहि मे सुधारात्मक रवैया अपनबैत बढि जाइत अछि। बाद मे मोहन एक सफल आ महान इन्सान केर रूप मे जगविदित होइत अछि। समाज लेल अनेकों परोपकारक काज करैत ओ सभक नजरि मे एकटा आदर्श उदाहरण वला व्यक्तित्व बनि जाइत अछि।

मोहनक ई कथा लोकखिस्सा सँ विचलित कतेको लोक लेल उपयोगी होयत। कथमपि लोक सँ नहि उलझि स्वयं आत्मचिन्तन आ मनन केर रास्ता मनुष्य लेल सर्वथा उपयोगी होयत, ई गारन्टी अछि।

हरिः हरः!!

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