दिवस विशेष स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
हमर लक्ष्मीजीक जन्मदिन पर किछु खास बात
भगवान विष्णु केर विभिन्न अवतार आ ताहि मे हुनक शक्ति अर्थात् लक्ष्मीजीक भूमिका सुनिते-बुझिते छी। श्रीराम संग सीता एवं श्रीकृष्ण संग रुक्मिणी (राधा सेहो) केर विभिन्न जीवनलीला रामायण आ भागवत कथा मे हम सब सुनैत-बुझैत रहलहुँ अछि। भगवानक स्वरूप केर आध्यात्मिक चिन्तन कयला सँ सदिखन हम-अहाँ अपन जीवन केँ सही मार्गदर्शन करैत रहैत छी। आइ हम भगवान विष्णु संग लक्ष्मीक किछु चर्चा किछु विशेष अवस्था मे कय रहल छी।
भगवान विष्णु शेषशय्या पर विराजित छथि आ माता लक्ष्मी भगवानक चरण सेवा मे देखा रहली अछि। त्रेता मे भगवान विष्णु राजा दशरथक पुत्र बनि माता कौशल्याक गर्भ सँ श्रीराम केर रूप मे जन्म लैत छथि आ एम्हर सीतारूपी लक्ष्मी भूगर्भ सँ राजा जनक द्वारा हलेष्ठि यज्ञ सँ जन्म लैत छथि। द्वापर मे भगवान कृष्ण संग लक्ष्मी दुइ अवतार लैत राधा आ रुक्मिणी बनिकय एहि धराधाम मे एबाक कथा-गाथा अछि। स्वाध्याय मे हमरा लक्ष्मी जीक कुल ८ अवतार केर चर्चा एना भेटलः
लक्ष्मी जीक ८ अवतार
महालक्ष्मी जे वैकुंठ मे निवास करैत छथि।
स्वर्गलक्ष्मी जे स्वर्ग मे निवास करैत छथि।
राधा जी गोलोक मे निवास करैत छथि।
दक्षिणा जे यज्ञ मे निवास करैत छथि।
गृहलक्ष्मी जे गृह मे निवास करैत छथि।
शोभा जे हर वस्तु मे निवास करैत छथि।
सुरभि (रुक्मणी) जे गोलोक मे निवास करैत छथि।
राजलक्ष्मी (सीता) जे पाताल और भूलोक मे निवास करैत छथि।
खूब गौर सँ देखू, भगवान विष्णु जहिना कण-कण मे विराजित छथि तहिना माता लक्ष्मी अहाँ केँ उपरोक्त ८ रूप मे हर जगह समान रूप सँ देखा जेती।
एकटा रोचक कथा
कतेको लोक राधा आ रुक्मिणी मे लक्ष्मीक अवतार के थिकीह ताहि मामिला मे द्वंद्व मे पड़ि गेल करैत छथि। रामायण मे सेहो सीताजी केर अग्नि परीक्षा आदि सँ जुड़ल कय गोट बात मे भिन्न-भिन्न तरहक दुविधा कतेको लोक मे देखल जाइछ। एहि सब प्रकरण सँ पूर्व भागवत कथा मे एकटा आख्यान आयल अछि जे भगवान विष्णु द्वारा भृगु ऋषिक पत्नीक वध कय देबाक कारण भृगु ऋषि विक्षिप्त अवस्था आ पत्नी वियोग मे भगवान विष्णु केँ सेहो अपनहि वियोग समान पत्नी वियोग प्राप्त करबाक शाप देल गेल छलन्हि। सीता संग वियोग, राधा संग वियोग, रुक्मिणी संग वियोग – ई सब एहि शाप केँ भगवान द्वारा शिरोधार्य करबाक कारण देखैत छी हम सब।
राधा आ रुक्मिणी दुनू लक्ष्मीजीक अवतार थिकीह
जी! अहु बातक पाछाँ एकटा बड रोचक कथा भेटैत अछि जे सामान्यतया हमरा सब गोटे केँ नहि बुझल अछि। त्रेता युग मे जखन सीताक अपहरण होइत छन्हि ताहि समय ओ लक्ष्मीजीक वैकल्पिक अवतार ‘छायारूप सीता’ बनिकय श्रीरामक संग वनगमन करबाक बात कहल गेल अछि। रावण जेहेन दुराचारी-अत्याचारी द्वारा अपहृता बनिकय यैह छायारूपी सीताजी कष्ट भोगैत छथि। रावणक अन्त कयला उपरान्त ओ छायारूपी सीता सेहो भगवान विष्णु सँ स्वयं केँ संगे रखबाक इच्छा जतबैत छथि आर हिनकहि देल गेल वचन अनुसार त्रेता मे राधा बनिकय लक्ष्मीजी पहिने अवतार लेलीह, वृन्दावन मे भगवान कृष्ण संग रासलीला रचेलीह। पुनः द्वारकाधीश केर रूप मे लक्ष्मीजीक दोसर अवतार रुक्मिणीजी अधीश्वरी बनिकय अयलीह।
आब आउ किछु लौकिक चर्चा कय ली!!
लक्ष्मीजीक ध्यान सब करैत अछि। सब सुखी-सम्पन्न होयबाक लेल आतुर रहैत अछि। लक्ष्मीजीक जेठ बहिन ‘अलक्ष्मी’ सँ सब डेराइत रहैत अछि। दुःख-दारिद्र केकरा चाही भला!! आ लक्ष्मीजी केकरा ऊपर कखन ढरि जेती सेहो कियो नहि जनैत अछि! हुनकर सवारी ऊल्लू केर छन्हि। ऊल्लू केँ अन्हार मे सुझाइत छैक। कतय भगवती जेती से जानि सकब हमरा लेल त अपारगम्य अछिये! हँ, तखन गुरुजी (स्वामी रामसुखदासजी) केर एकटा बड नीक गप मोन पड़ैत अछि, चूँकि लक्ष्मीजी भगवान विष्णुक चरणसेविकाक रूप मे छथिन आ हम-अहाँ जँ भगवानक शरण मे रहब त स्वाभाविके भगवानक संग भगवतीक कृपा भेटैत रहत। अस्तु! सब कियो ध्यान राखब, शरणागत लेल शरणागतवत्सल केर गति सँ गति होइत छैक। अपन अन्दर केर भगवान विष्णु केँ सही सलामत सेवा करू आ जुनि बिसरू जे लक्ष्मीरूपा धर्मपत्नी सेहो सदिखन वैह भगवान विष्णुरूपी हमर-अहाँक असल पुरुष केर चरणसेविका होइत छथिन, तेँ स्वयं विष्णुरूप मे सत्य, निष्ठा आ धर्म केर मार्ग पर अडिग रहू, जय जय होयत।
आइ हमरो लक्ष्मीजीक जन्मदिन छियनि। हम ठीक त ओहो ठीक!! हम नहियो ठीक त ओ ठीक रहथि से शुभकामना!!
हरिः हरः!!