साहित्य
– प्रवीण नारायण चौधरी
जपि ले जपि ले नाम तूँ जपि ले
हरि हर नाम तूँ जपि ले रे
जखन तखन बस नाम सुमिरि ले
ध्यान प्रभु केर करि ले रे
जपि ले जपि ले…
जन्म लैत तूँ कनलें बजलें
होश हवास गमेलें रे
मातु पिता परिजन केर सङ्ग में
दुनिया मे रमि गेलें रे
भूलभुलैया माया नगरी
परमपिता केँ बिसरलें रे
जपि ले जपि ले…
पढलें लिखलें ज्ञानी बनलें
बुद्धि अपन बड़ छटलें रे
एहि दुनिया के डगर डगर पर
दर दर ठोकर खेलें रे
रे मनमूरख ढीठ कतेक तूँ
बुझलो बात न बुझलें रे
जपि ले जपि ले….
अन्त समय के कोन ठेगाना
खुजल आँखि तूँ देखलें रे
कतबो जोड़लें कतबो केलें
बोझ उघैत तूँ थकलें रे
राति दिन बस ब्यर्थक चिन्ता
चिंतामणि नहि भजलें रे
जपि ले जपि ले…
उठ प्रवीण बस नाम सुमिरिते
सुमिरन भजन तूँ कय ले रे
जतबे सम्भव ततबे लेकिन
हरि हर नाम तूँ जपि ले रे
नाम सँ पैघ कोनो न खजाना
लूट जतेक तूँ लुटमें रे
जपि ले जपि ले….
हरिः हरः!!