मैथिली कथाः एला राम गेला राम

लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

एला राम गेला राम
 
आइ बात करब एक परिवार के अलग-अलग प्रकृति केर अलग-अलग सदस्य लोकनिक। उदाहरण सब केँ अपने-अपने परिवार केर लेला सँ काज चलि जायत। कारण मनुष्यक रीति-थीति केँ बुझय लेल नायक स्वयं मे देखले सँ यथार्थता सँ सहज साक्षात्कार होइत छैक। हम कतबो कहि देब जे हमर परिवार मे यूँ मारा आ त्यूँ मारा वला हाल अछि, लेकिन तेकर प्रभाव दीर्घकालिक दोसर पर नहि पड़ि सकैत अछि; आर वैह जँ लोकहि सँ जुड़ल बात कहब त लोक केर मन-मस्तिष्क पर तुरन्त प्रभाव पड़बाक संग-संग ओकर समुचित लाभ सेहो लोक केँ भेटि जाइत छैक। तेँ बेसीकाल लेख केँ पाठक-केन्द्रित रखबाक चाही, नहि कि आत्ममुग्धता सँ भरल अपनहि ताले नचबाक चाही। त आजुक विषय अछि एकहि परिवार मे अलग-अलग प्रकृति, अलग-अलग स्वभाव, अलग-अलग कर्मठता, अलग-अलग शिक्षा, अलग-अलग यश आ प्रतिष्ठा – यानि हरेक व्यक्ति केर अपन निजता आ विशिष्टता के बात।
 
हरेक परिवार मे एकटा मूल पुरुष होइत छथि। ओ पुरुष के थिकाह? ओ वैह पुरुष होइत छथि जे अपन त्यागपूर्ण कीर्ति सँ परिवार केँ ठाढ करबाक एहेन अमर रचना कय गेलाह जे हुनका आइ धरि स्मरण मे आनल जाइत छन्हि। बाकी सामान्य जीवन जियय लेल आ अपन भागक भूमिका पूरा कय संसार सँ विदाई लेबय लेल कतेको अबैत छथि आ चलि जाइत छथि। परिवारक संस्कार मे मूल पुरुष प्रति सम्मान केर भावना सँ प्रेरणा भेटैत छैक। हुनकर नाम बेर-बेर लोक एहि लेल स्मरण करैत अछि जे वर्तमान पीढी मे सेहो केकरो पास एतेक कुब्बत हो जे हुनकर कीर्ति आ यश केँ आगू बढाबय। आर एहेन संभव होइत रहैत छैक। नीक कुलीन परिवार मे कुल आ मर्यादा अनुसार सन्तानोत्पत्ति होइत रहैत छैक। हँ, तखन माँगिकय दहेज लेनिहारक सन्तान कीर्तिपुरुष नहि भऽ सकैत अछि। शुरू सँ अन्त धरि कीर्तिपुरुष केर जीवन आदर्श बाट पर अग्रसर रहैत छैक। ओ सब सँ अलग आ अनुकरणीय प्रदर्शन करैत रहैत छैक। मूल पुरुष केर यश व कीर्ति सँ ऊपर धरि जेबाक यात्रा मे एहने-एहने कर्मठ सपूत सफलता प्राप्त करैत छैक। बाकी सब ‘एला राम आ गेला राम’!
 
व्यस्त सब होइत अछि। व्यस्तता नीक लेल वा अनेरहु वा बेजा काज लेल सेहो एक्के परिवारक अनेकों सदस्य केँ रहिते टा छैक। मूल पुरुष या कीर्तिपुरुष लोकनिक बात-विचार मे देखब जे ओ बेसीकाल परोपकारहि मे व्यस्त रहत। जखन कि ‘एला राम गेला राम’ टाइप के लोक सेहो व्यस्त रहैत अछि, मुदा ओकर व्यस्तता आत्ममुग्धता, निज स्वार्थ, संग्राही प्रवृत्ति, दोसरोक हक अपने हपोसि लेबाक, दोसरक बच्चाक लिल्लोह कय अपन बच्चा केँ चोरा-चोराकय नीक-निकुत खुएबाक, आदि अनेकों तरहक व्यस्तता देखि सकैत छी। मिथिला मे संयुक्त परिवारक परिकल्पना मे पहिने देखल जाइत छलैक जे घरक काज मे फल्लाँ गामवाली पुतोहु बिना कोनो निजी लोभ-लालच समस्त परिवार केर हित लेल अपना केँ न्योछाबड़ कय देल करथिन, ओत्तहि हुनकर दियादनी कहबैका बड़का घरक बेटी दुलारे दस ठाम छितराइत छलखिन आ घरक काज करय मे अस्सी मोन पानि पड़ि जाइन। आब अहाँ गौर कय केँ देखब त ओ काज करनिहाइर पुतोहु केर परिवार यथा सन्तान, पति, नैहर, सासुर आ सौंसे संसार कीर्ति आ यशरूपी उपलब्धि प्राप्त करैत छल, जखन कि अपनहि मान-सम्मान लेल बेहाल पुतोहुक सौंसे संसार मे हुनका अपनहि समान झूठक शान झाड़बाक प्रवृत्ति मात्र हावी भऽ गेल करय। आब ई बात अलग जे कतहु अपवादो होइत छल, माय-बाबू बोगस मुदा धियापुता काफी प्रतिभावान् – एतय हम अपवादक बात नहि कय सामान्य अवस्था मे कीर्ति आ यश संग उपलब्धि प्राप्त करबाक मानवीय प्रकृतिक विवेचना कय रहल छी।
 
एखनहु अहाँ स्वयं केर स्थिति सँ समीक्षा करब त पता लागि जायत जे मानव जीवन मे लक्ष्य केर निर्धारण केना कयल जाइछ। भोर कमाउ आ साँझ के खाउ, आराम सँ विश्राम करू, निश्चिन्त रहू जे भोर मे फेर एतेक कमा लेब आ जीवन बीति जायत – एकटा वर्ग ईहो छैक। एकटा छैक जे जत लब्धम् तत लब्धम् – जतेक भेटल ओतबे सँ अपन काज पूरा करब। फेर एकटा वर्ग छैक जे कत लब्धम कत लब्धम – माने कतेक कमाउ, कतेक कमाउ, सन्तोष नहि छैक। कर्म करब त फल भेटत – एहि शाश्वत सिद्धान्त अनुसार क्रियमाण, संचिति आ प्रारब्ध कर्म केर फल सब केँ भेटैत छैक। एहि मे जे व्यक्ति अपन लब्धि मे समस्त परिवार (मानव समुदाय) केर हित जोड़िकय हिसाब बैसबैत बढैत अछि ओकर यश आ कीर्ति अवश्यम्भावी महान बनैत छैक। आर जे केवल अपनहि मे बेहाल रहत ओकरा सँ कहियो कोनो कीर्ति निर्माण सम्भव नहि अछि। कहबी छैक न जे एहि बेटा सँ पता नहि होयत! सैह।
 
आभासी संसार (फेसबुक, व्हाट्सअप, सामाजिक संजाल) केर परिवार मे सेहो एहि तरहक भिन्न-भिन्न प्रकृति आ मनसाय केर लोकक दर्शन होइते अछि। शुक्र दिन थिकैक, दहेज मुक्त मिथिला समूह पर यूट्यूब लिंक व अपन विभिन्न रचनाधर्मिता केँ अहाँ साझा कय सकैत छी से रूटीन छैक। बहुतो तरहक लिंक सब साझा होइत अछि। एक सँ बढिकय एक कीर्ति (रचना) सब देखय लेल भेटैत अछि। लेकिन जे सदस्य मात्र शुक्र दिन सक्रिय रहि केवल अपन रचना, कीर्ति आ लिंक टा साझा करबाक मनसाय रखता, कहू हुनकर यश-प्रतिष्ठा नाम कतेक दूर तक पसरत? आर, अहाँ अपन समाज, अपन परिवार, अपन मिथिलाक समग्र हित मे सब तरहक त्यागपूर्ण योगदान दैत अपन कीर्तियात्राक सम्बन्ध मे लोकमानस मे बात राखय चाहब त निश्चिते दूरगामी प्रभाव छोड़ि सकब। ई सब केवल उदाहरण लेल कहलहुँ। निष्कर्षतः यैह बात छैक जे परोपकारक भावना आ त्यागपूर्ण कीर्ति ठाढ करबाक दृढसंकल्प सँ हम-अहाँ महान बनैत छी। बाकी सब ‘एला राम गेला राम’। ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!