रामायणक अद्भुत रहस्य – पढिकय कियो भावुक भऽ जायत

स्वाध्याय आलेख

– अखिलेश कुमार मिश्र

रामायण के सार – अद्भुत रहस्य

एक राति के बात अछि। माता कौशल्याक नींद अचानक खुजि गेल। हुनका अप्पन छत पर केकरो चलs के पदचाप सुनाई देलक। पता केलैथि तs पता चलल जे ओ शत्रुघ्नजीक अर्धांगिनी श्रुतिकीर्ति जी छैथि। हुनका माँ कौशल्या नीचा बजेलैथि। श्रुतिकीर्ति जी, सभ सँ छोटकी पुतौहु मतलब शत्रुघ्न कें पत्नी, ओ एलैथि आ माँ के प्रणाम कs कs ठाढ़ भ s गेलीह। माँ पुछलैथि जे, श्रुति अहाँ अतेक राति कs एसगरे छत पर की कs रहल छी। बेटी, अहाँ कें नींद नै आबि रहल अछि की? शत्रुघ्न कतय छैथि? ई पुछैत देरी श्रुतिकीर्ति के आँखि नोर सँ भरि गेलैन्ह। माँ कें छाती सँ लिपटि हुनकर कोरा में सिमटि खूब जोर सँ कानs लागलीह। कानिते कानिते कहलैथि शत्रुघ्न के देखला तs हुनका तेरह वर्ष भs गेलैन्ह।
ओह्ह! ई सुनि माँ कौशल्याक हृदय काँपि उठल। मोन छटपटैय लागल। तुरन्त आवाज दs कs सेवक सभ के कहल गेल जे पालकी लs कs आबs लेल। शत्रुघ्न जी के खोज करय लेल माँ कौशल्या मध्यरात्रिये मे चलि पड़ली। मुदा आश्चर्य भेली ई जानि कs जे शत्रुघ्नजी कतय भेटला, अयोध्याजी के जाहि दरवाजा के बाहर भरत जी नंदीग्राम में तपस्वी भs कs रहैत छलाह, वैह दरवाजा के भीतर एक पत्थर के शिला पर, अप्पन बाँहि के तकिया बनेने सुतल भेटला। माँ शत्रुघ्नजीक सिरहाने में बैसि हुनकर माथ पर हाथ फेरलैथि तs शत्रुघ्नजीक नींद टुटि गेलैन्ह। हड़बड़ा कय उठला तs माँ के देखलैथ। प्रणाम केलाह आ बाजलाह जे माँ अहाँ एतेक राति में एतय आबय के कष्ट कियै केलौं। हमरा बजा लेने रहितौं तs हम आबि जाइतौं। माँ पुछलैथि अहाँ एतय कियै छी? शत्रुघ्न जी कानय लागलाह। कहलैथि, माँ! राम भैया वन गेलाह पिताजीक आज्ञा सँ। संगहि लक्ष्मण भैया सेहो हुनके सँग गेलाह। भैया भरत नंदीग्राम में तपस्वी बनल छैथि। तs कि ई महल, राजसी ठाठबाट भगवान हमरा लेल बनेने छैथि की? माँ निरुत्तर रहि गेलीह।
देखु केहेन अछि रामकथा… एहि मे कतहु भोग नहि, खाली त्यागहि त्याग अछि। एतय तs बुझू त्यागहि केर प्रतियोगिता भs रहल अछि आ एहि में सभ प्रथमे अछि, कियो द्वितीय नहि। चारू भाइ केर प्रेम आ एक दोसर के प्रति त्याग अद्भुत-अभिनव आ अलौकिक अछि।
रामायण जीवन जीवय के लेल सभ सँ उत्तम शिक्षा दैत अछि जहन भगवान राम केँ 14 वर्षक वनवास भेल तs हुनकर पत्नी माँ सीता सहर्ष हुनका संग वनवास कs लेलीह। बचपन सँ रामजीक परछाई लक्ष्मणजी भला पाछाँ रहयबला कहाँ! ओहो राम भैया संग वन जाय लेल माता सुमित्रा सँ आज्ञा प्राप्त कs लेलैथि। लेकिन जहन ओ उर्मिलाजी सँ विदा लय लेल हुनकर कक्ष केर तरफ जा रहल छलाह त सोचि रहल छलाह जे माँ तs आज्ञा दय देलैथ मुदा उर्मिला केँ केना बुझा सकब। हुनका सँ की कहब। यैह सब सोच-विचार करैत लक्ष्मणजी उर्मिलाजीक कक्ष दिश जा रहल छलाह। कक्ष सँ पहिले देखैत छैथि जे उर्मिला जी आरतीक थार लs कs ठाढ़ छैथि। ओ लक्ष्मणजी सँ कहलैथि “अहाँ हम्मर चिन्ता छोड़ू, प्रभु के सेवा में वन जाउ। हम अहाँ केँ रोकब नहि। हमरा कारण अहाँ केँ प्रभुक सेवा में कुनो दिक्कत नहि हुअय तैँ हम अहाँ संग सेहो जाय के जिद्द नहि करब।” लक्ष्मणजीक जे कहय में संकोच भऽ रहल छलैन्ह, से हुनका कहय सँ पहिनहि उर्मिला जी हुनका संकोच सँ बाहर कय देलखिन्ह। वास्तव में पत्नीक धर्म तs यैह अछि जे अगर पति संकोच में पड़थि त हुनकर मनक बात जानि हुनका समय पर संकोच सँ बाहर कs देथि।लक्ष्मणजी चौदह वर्ष लेल वन चलि गेलाह आ महल में उर्मिला एक तपस्विनी जेकाँ कठोर तप करय लगलीह। ओम्हर लक्ष्मणजी भैया-भौजी केर सेवा में दिन राति तत्पर सेहो बिना कखनो सुतने। तs एम्हर उर्मिला जी अप्पन कक्ष केर द्वार नहि बन्द कयलथि कखनहुँ। दिन-राति दीया जे जरेने रहैथि ओकरा मिझाय नै देलखिन्ह।
मेघनाद सँ लक्ष्मणजी युद्धरत भेलाह। शक्तिबाण हुनका लागि गेल। लक्ष्मणजी मूर्छित छैथि। बजरंगबली संजीवनी सँग पहाड़ लs कs अयोध्या कें ऊपर उड़ि रहल छलाह। भरत जी हुनका राक्षस बुझि बिना नोंकबला बाण मारि नीचा खसा देलाह। तहन हनुमानजी भरत जी केँ युद्धक सभ वृत्तान्त सुना रहल छथिन्ह। सुनितहि माँ कौशल्या कहैत छैथि जे राम केँ कहि देबैन्ह जे बिना लक्ष्मण केँ सँग लेने ओ अयोध्या नहि लौटथि। ओतय माँ सुमित्रा कहैत छथिन्ह जे हम्मर दोसर पुत्र शत्रुघ्न एखन जिन्दे अछि, हम हिनको भेज दैत छी। हम्मर पुत्र सभक जन्म तs रामहि केर सेवा लेल भेल अछि। माँ सभक एहि तरहक बात सुनि हनुमानजीक आँखि सँ अश्रुधारा बहि गेलैन्ह। तक्कर बाद हनुमानजीक नजरि जखन उर्मिला जी पर पड़लैन्ह तs घोर आश्चर्य भेलैन्ह। ओ देखैत छैथि जे उर्मिला जी बिल्कुल शांतचित्त प्रसन्नमुद्रा में ठाढ़ छैथि। कि हिनका अप्पन पतिक प्राणक कुनो चिंता नहिं? हनुमानजी केँ नहि रहल गेलैन्ह, ओ उर्मिला जी सँ पुछि लेलैथि “देवि! अहाँक प्रसन्नताक कारण की अछि। अहाँक पतिक प्राण त संकट में अछि। सूर्योदय होइते हुनकर प्राण नहि रहतैन्ह।”
उर्मिलाजीक उत्तर सुनि तीनों लोकक प्राणी हुनकर वन्दना कएने बिना रहि सकैत अछि। उर्मिला जी कहलैथि “हम्मर पतिक प्राण संकट में नै अछि, एहेन भैये नै सकैत अछि। रहलै बात सूर्योदय होइ के तs अहूँ किछु दिन अयोध्या में रहि लियऽ। जा धरि अहाँ ओतय वापस नै जायब ता धरि सूर्योदय हेबे नै करत। अहीं कहलौं न जे हुनकर शीश श्रीराम केर कोरा में छैन्ह। अरे जिनकर शीश प्रभु श्रीराम केर कोरा में हो ओकरा तs काल भी छू नै सकैत अछि। जहिया सँ हम्मर पति वन गेलाह कखनो सुतल नै छलाह। ओ एतय सँ प्रण कय कऽ गेल रहैथि जे कखनो नहि सुतब। तs एखन कनि हुनका विश्राम करs के अवसर भेटलैन्ह, से कय रहल छैथि। अरे! ई शक्ति बाण कुनो हुनका लगलैन्ह अछि की! बुझु जे ई शक्ति तs प्रभु श्रीराम केँ स्वयम् लगलैन्ह अछि। हम्मर पति केर रोम रोम, खूनक एक एक बूंद में प्रभु श्रीराम बसैत छैथि। हुनकर आत्मा में प्रभु बसल छथिन्ह। ताहि कारण दर्द सेहो श्रीरामहि केँ भs रहल छैन्ह। अहाँ निश्चिन्त भऽ कय जाउ। सूर्य उदित नै हेताह।”

एहि तरहें रामायण मे सभ पात्रक योगदान केकरो सँ कम नहि। हम मिथिलावासी लेल त आरो गर्वक विषय अछि जे राम राज्य केर नींव तs मिथिला के बेटीये सभ छलीह। कखनो सीता तs कखनो उर्मिला। वास्तव में देखल जाइ तs श्रीराम तs राज्यकलश स्थापित केलैथि। मुदा यथार्थता में तs असली रामराज्य मिथिलाक बेटिये सभक प्रेम, त्याग, समर्पण, बलिदान, तपस्या सँ भेल। एहेन पावन भूमि मिथिला में हम सभ जन्म लेलहुँ ताहि सँ मन स्वाभिमान सँ भरल अछि।