भाषाभटकल लोक
१९८७ ई. मे बाढि सँ बेहाली आयल। जहाँ-तहाँ नदीक तटबन्ध सब टूटि जेबाक कारण बेहिसाब पानि सँ खेत-पथार, एतेक तक कि खरिहान, घर-अंगना सबटा डूबि गेल छल। लोक खाना कोना पकायत ताहू लेल समस्या रहैक। ऊँच-ऊँच बान्ह आ घरक छत पर आश्रय लय येन-केन-प्रकारेण संघर्ष कय केँ प्राण-रक्षा मे लागल छल। शायद ई वर्ष मिथिलावासी पर पहाड़ ढाहने छल।
बाढिक प्रकोप कम भेलाक बाद श्रमजीवी लोक केँ श्रम करबाक अवसर मे भारी कमी आबि गेलैक। पैंच-उधार लय केँ कोना-कोना परिवारक निर्वाह करय मजदूर वर्गक लोक। लेकिन एना कतेक दिन? गामघर दिश सूदि पर पाय जे लेलक तेकर खेत-पथार त छोड़ू, मड़ौसी डीहो तक साहु अपना नाम लिखबा लेलक, एहेन कतेको उदाहरण भेटैत अछि।
परिणाम यैह भेल जे मास माइग्रेशन (पैघ पैमानाक पलायन) केर कारक बनल। आर, १९८७ ई. केर झमार पुनः १९९१ मे, १९९५ मे… कहबाक अर्थ जे एखन धरि मिथिलाक अनेकों भूभाग मे हिमालय सँ प्राप्त बेशुमार जलराशिक अवैज्ञानिक व्यवस्थापनक कारण निरन्तर बाढिक प्रकोप सँ ई पलायन कम हेबाक बदले बढिते चलि गेल अछि।
श्रमजीवी समुदाय केर अधिकांश युवा तहिया दिल्ली, मुम्बई, पंजाब, भदोही, सुरत, कलकत्ता, लुधियाना, आदि विभिन्न क्षेत्र मे रोजी-रोटी कमेबाक वास्ते गाम सँ मोटरी-चोटरी लय रेल धय लैत छल। बस एकटा संगी या स्रोत भेटि गेल, कियो कतहु जाय लेल तैयार भऽ जाय। धीरे-धीरे, मिथिला क्षेत्र सँ यैह मजदूर पलायन संग ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) होयब सेहो आरम्भ भऽ गेल।
पुनः बिहार केर राजनीतिक अवस्था मे खुलेआम जातीय संघर्ष आ सत्ताक खेल-वेल १९९० केर दशक सँ चरम् पर पहुँचबाक कुचक्र आ तेकर दुष्परिणाम जे ९५% ब्रेन ड्रेन भऽ गेल। आब लगभग ३-४ दशक केर पलायनदंशक सब सँ खतरनाक दुष्परिणाम ई भेल अछि जे मिथिला जेहेन सनातनी जीवित सभ्यता मे अपन भाषा सेहो लिपि जेकाँ लोप होयबाक कगार पर पहुँचि गेल अछि।
हमरा मोन पड़ैत अछि अपन पढाई क्रम मे १९८३ मे चतरा (आब झारखंडक एक जिला) मे लगभग ६ मास रहबाक समय। गर्मी छुट्टी मे गाम अबिते एकटा बड पैघ समस्या होइत छल। जहाँ अपन मित्र वर्ग बीच जाय आ कि मगही मिश्रित हिन्दी (मैथिलेतर बोली) बाजब शुरू कय दी, फेर सब हँसय लागय त बड़ा कठिनाई सँ ओकरा सभक संग मैथिली बाजि पाबी। वास्तव मे दिक्कत हुअय आ करीब १०-१२ दिन ई समस्या अपना मे देखलहुँ। बड़ा विचित्र मनोभाव मे फँसल रही। अंगना आबी त माँ या पिता या परिजनक संग मैथिली मे बाजी, लेकिन बाहर जाइत देरी भाषाभटकल समान आचरण हुअय।
अपन एहि मनोनुभूति सँ बाद मे भाषा-भटकावक मूल कारण केर अध्ययन मे बहुत सहयोग भेटल। दुर्गा पूजा मे जखन वैह पलायन कएने परदेशिया गामवासी सब जखन गाम आबय त देखी जे घर मे मैथिली मे बजैत अछि, मुदा बाहर जाइते हमरे जेकाँ ओकरा सभक मुंहे टूटी-फूटी हिन्दी स्वतः बजा जाइक।
आजुक अवस्था त ई अछि जे आब मैथिल केवल रोजी-रोटी लेल परदेश गेला आ कमा-कमा घर अनला से नहि, जतय कमाइत छथि ओतहि अपना अनुकूल अपन नव आशियाना ठाढ कय लेला। कम सँ कम ब्रेनी मैथिल त आइ ९०% केर संख्या मे डबल रेजिडेन्स (गाम व शहर दुनू ठाम आवास) केर पद्धति पर अवस्से टा जियैत छथि। हँ, तखन श्रमजीवी वर्ग एखनहुँ धरि शहर व गाम बीच निश्चित आबर-जात निर्वाह करैत सामूहिक निवास मे शहरो मे रहैत अछि। आर समग्र मे ८०% पलायन कयल मैथिल अपन परिवार व बाल-बच्चा सहित मिथिला सँ दूर रहैत छथि। एना परिवार सहित शहरी परिवेश मे रहबाक कारणे आइ मिथिलाक अपन मौलिक भाषा-बोली केँ बिसरिकय नव भाषा-बोली केँ अंगीकार करैत ई लोकनि सदा-सदा लेल परदेशी बनि रहला अछि, जे मास माइग्रेशनक सब सँ खतरनाक प्रभाव – दुर्गुणक चरित्र रूप मे देखाय लागल अछि।
लोकपलायन सँ लोक चरित्र मे भाषाभटकाव संग संस्कृति सँ दूर भेनाय स्वाभाविक छैक। आर, जहाँ लोकसंस्कृति समाप्त त लोक सेहो समाप्तहि मानल जाइछ। हालांकि, जनसंख्याक हिसाब सँ गामहु मे एकटा निश्चित वर्ग रहि रहल अछि, लेकिन ईहो वर्ग अपना केँ परदेशियेक बोली-वाणी-वाइन आदि सँ रांगि रहल देखाइत अछि। जेना, हमर भतीजा दिल्ली मे रहि रहल अछि, हम जखन बात करब त ओ हमरा संग हिन्दिये बाजत… स्वाभाविक छैक जे ओकरा संग हमहुँ हिन्दिये बजबैक। भाषाभटकावक ई स्थिति मिथिला लेल बहुत पैघ समस्याक सृजन कय रहलैक अछि।
कोनो समस्या बिना समाधानक नहि होइछ। मिथिलाक बुद्धिजीवी वर्ग लगातार अपन भाषा-साहित्य आ संस्कृति केर रक्षा लेल तरह-तरह के उपाय करैत देखा रहला अछि। आइ मिथिला गाम मे भले नजरि कम आबय, दिल्लीक गली-गली मे नजरि आबि जायत। अर्थात् दिल्लीक सब प्रमुख स्थान जतय मैथिलक बाहुल्यता अछि, ओ सब साल भरि मे मिथिलाक संस्कृति अनुसार कोनो न कोनो धार्मिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन, मन्दिर निर्माण आ सामुदायिक ऐक्यबद्धताक उपाय अवलम्बन करैत, संगहि भाषा-साहित्य केन्द्रित विद्यापति स्मृति पर्व समारोह, मिथिला विभूति स्मृति आदिक आयोजन करैत देखा रहला अछि। दिल्ली मात्र नहि, आस्ट्रेलियाक मेलबोर्न या सिडनी, अथवा अमेरिकाक अटलान्टा वा न्युयोर्क, माने भारत व नेपाल संग विश्व भरि मे जतय कतहु छथि, बड़ा तेजी सँ अपन भाषा-संस्कृति केँ जगेबाक लेल प्रयास करैत देखा रहला अछि।
हँ, तखन डरक बात ई छैक जे सम्भ्रान्त आ सुसंस्कृत लोक त समाधानक बाट आख्तियार करैत देखाइत छथि… लेकिन हिनकहु सभक बालबच्चा मे ८०% भाषाभटकाव ओहिना झलैक रहल अछि। श्रमजीवी लोक जे शहरी परिवेश मे सामुदायिक-सामूहिक वास परिवार सहित लेलनि अछि, हुनका लोकनिक बाल-बच्चा मे त १००% आन क्षेत्रक भाषा-बोली आ संस्कार विकसित होइत छन्हि आर ओ सब त बुझू जे एक सँ दोसर पीढी धरि जाइत-जाइत मैथिल पहिचान सँ स्वतः विहीन भऽ जेता। हिनका सभ मे सँ किछु लोक दोसर पीढी धरि यदि मिथिला सँ जुड़लो रहि गेल, तैयो ई सब अपन मौलिकता केँ पुनः नहि पकड़ि सकता।
निष्कर्ष हमर यैह अछि जे समस्याक दीर्घकालिक असैर सँ समाज केँ आगाह कयल जाय आ मिथिला केँ जीवन्त रखबाक लेल एकर मूल तत्त्व यानि लोकसंस्कृति सँ सब वर्ग केँ जोड़िकय राखल जाय। एहि लेल सम्भ्रान्त वर्ग पर विशेष भार अछि जे कोनो आयोजन मे एकल वर्ग नहि, बहुलवर्गक सहभागिता केना होयत ताहि दिशा मे आवश्यक डेग उठायल करथि। ॐ तत्सत्!
एहि लेख मे अहाँक महत्वपूर्ण सुझाव सेहो आमंत्रित करैत छी, कारण हमर सोचन क्षमता सँ किछु समुचित बात छुटियो सकैत अछि। ध्यान राखब, सहयोग करब। धन्यवाद।
हरिः हरः!!