अन्तर्राष्ट्रीय नारी दिवस विशेष
अन्तर्राष्ट्रीय नारी दिवस २०२१

अन्तर्राष्ट्रीय तथ्यांक मुताबिक एखन धरि महिलाक पहुँच पुरुष केर तुलना मे २५ः७५ केर रेशियो मे पाछू अछि। हमरा बुझने २०२१ केर थीम ‘जेनरेशन फोर इक्वलिटी’ सँ एहि मे इजाफा आओत। लेकिन जहिना पैछला १११ वर्ष मे ई प्रक्रिया मद्धिम अछि तहिना आगुओ ई मद्धिमे रहत। प्रकृति प्रदत्त कतेको रास नारी चरित्र पुरुषक तुलना मे स्वतः पाछू आ सीमा मे रहबाक लेल बाध्य करैत अछि, तेँ एहि तरहक तथ्यांक मे अपन माथा केँ भिड़ेनाय मानवोचित कार्य अवश्य थिक, लेकिन पागलपन आ दीवानापन देखबैत समानता लेल ढोल पीटनाय ततेक आवश्यक नहि अछि।
निस्सन्देह धर्म आ आस्था संग लौकिक व्यवहार मे नारी जाति प्रति सम्मान नहि केवल मानव, बल्कि पृथ्वीलोक मे ८४ लाख योनिक हरेक जीव मे देखल जाइत अछि। भगवानक बनायल प्रकृति मे नारी प्रति कतेको रंगक प्रेम स्पष्ट अछि। अहाँ केँ एकटा उदाहरण दैत छी – फूलक संरचना मे नारी आ पुरुष केर दर्शन बहुत प्रभावित करयवला देखाइत अछि। चारूकात पुंकेसर (Stamen) केर बीच मे स्त्रीकेसरक (Carmel) स्थिति पर ग’र करू। एकटा फूल केर अस्तित्व मे अधिकतर हम सब पुंकेसरक संख्या देखैत छी, स्त्रीकेसर केर संख्या मात्र एक गोट देखाइत अछि। पादप विज्ञान आ जन्तु विज्ञान द्वारा वर्णित आरो कतेको गुण-धर्म मे स्त्री व पुरुष केर परिकल्पना मे स्त्री केँ कोमल आ पुरुष केँ मजबूत होयबाक क्रियादिक वर्णन भेटैछ। तहिना, चिड़िया-चुनमुनी वा कोनो आने स्तनधारी वा अन्य जानवरक जीवन प्रणाली आ लिंग-भेद मे स्त्री आ पुरुष मे ओहिना असमानता अछि जेना कि मानव मे। तथापि, राष्ट्रसंघ द्वारा जाहि तरहें मानव जीवन आ जीवनशैली मे नारी प्रति चिन्तनशील बनि समान अधिकार केर सिफारिश व वकालत कयल गेल अछि ताहि प्रति पूर्ण सम्मानक संग ऐक्यवद्धता जनबैत २०२१ केर थीम अनुसार समस्त नारी व पुरुष वर्ग मे शुभकामना ज्ञापन करैत छी। ॐ तत्सत्!!
दहेज मुक्त मिथिलाक प्रमुख संचालिका श्रीमती वन्दना जी कहने छथिन जे आजुक दिवस समूह पर सब पुरुष नारी प्रति अपन भावना रखैत १० लाइन किछु लिखथि – हम यैह लिखय चाहब जे नारी मतलब सृष्टि केँ कायम राखयवाली मूल अर्ध आ पुरुष दोसर अर्ध, दुनू मिलिकय अर्धनारीश्वर समान सम्पूर्ण अस्तित्व केर निर्माण करैत छथि। माय सँ आरम्भ नारी संवेदना जीवन मे अनेकों रूप मे भेटैत अछि, जाहि पर मैथिलीक चर्चित कवि अजित आजाद जीक एक गोट सुन्दरतम् रचना अपने सभ सँ साझा करय चाहब –
*स्त्री-ऋण*
कोखि सँ बहरायले रही कि पहिल हाथ पड़ल माथ पर
ओ नानी रहथि हमर
गर्भनाल कटने रहथि कदमाहाबाली
आसिखक बरखा मे भीजिते रही कि लपकि लेलनि मामी
हुनक भीजल आंगीक स्पर्श-सुख सँ
कानब हमर भेल छल किछु कम
मौसीक ठोर पड़ल छल गाल पर हमर
धुइयाँ सँ भरल सोइरी घर मे
आबि गेल छल वसंत
लाल मामी उठा देने रहथिन सोहर
किछुए काल मे उनटि आयल छल टोल
स्त्री-कंठ छोड़ि किछु नहि सुनायल ओहि दिन
कुहरैत मायक आँखि मे सेहेन्ता बनि सन्हियायल हम
छठिहारक काजरक संग बुझय लागल रही बोलारे
तेल-कुर सँ औंसाइत हमर काया मे
आबय लागल सिरखार
खन एहि कोरा त’ खन ओहि कोरा
नहि जानि ककर-ककर ने पीने होयब दूध
मैंयाँक आसिख बटोरय आनल गेल रही गाम
भगवती केँ गोड़ लगा सुनझा देल गेल रही हुनक कोर
एक कात सँ काकी, दोसर कात सँ पीसी
लुझि लेबय चाहैत रहथि हमरा
किछुए काल मे भरि गेल छल अँगना
मातृक सँ पैतृक धरि
पड़ैत जा रहल छल नाम अनेक
आशीषक दुधिया धार सँ होइत रहल अभिषेक
आइ सोचैत छी जखन कि बाबन मे देने छी मुड़ियारी
नाना कि बाबा, मामा कि कक्का
आ कि भाइ-भातिज, पीसा
सभक नेह सँ सिक्त भेल होयब हम
मुदा जिनकर-जिनकर छाती सँ लागल छल मुँह
तिनकर सभक ऋण सँ कोना मुक्त भ’ पायब हम
जखन कि नहि बुझल अछि आइ
कतय छथि कदमाहाबाली
केहेन स्थिति मे छथि लाल मामी
जीवितो छथि कि नहि मौसी
नहि बुझल अछि सत्ते
मातृको गेना बर्ख भेल अछि कत्ते
जीवन मे एकहुटा डेग एहेन नहि भेल एखन धरि
जकर आगू अथवा पाछू
नहि रहल हो एकहुटा स्त्री
महिला अधिकारक लेल लड़ैत रहलहुँ जीवन भरि
किन्तु बिसरा गेल सम्बन्धक प्रति सभटा कर्तव्य
पत्नी, पुत्री, प्रेमिका बिनु
जँ बीतियो जायत ई जीवन
त’ की कहाओल जायब कहियो मनुक्ख
टप-टप चुबैत रहत आत्माक अधर पर दूध
असंख्य स्त्रीक स्नेह-सुधा सँ सिक्त होइत रहत हमर अशरीर
आ हम, अमरताक श्राप मे कूही होइत रहब
मुइलाक बादो…!
*अजित आज़ाद*
आदरणीय आजाद समानहि स्त्रीक ऋण प्रति सदा आभारी बनल रहब हम प्रवीण! धन्य अहाँ जे हम छी।
हरिः हरः!!