लेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
मैथिली केँ मीठ भाषा कियैक मानल जाइछ
“मैथिली केँ मीठ भाषा कियैक मानल जाइछ?” ई सवाल पुछि बैसला मित्र बद्रीनाथ जी आ हमरा पास जे सहज उत्तर छल से यैह कि भाषाविज्ञान व विज्ञजनक अनुसार कोनो भाषाक मिठास ओकर शब्द आ ध्वनिक संग बजबाक शैली मे देखल जाइछ। मैथिली भाषा मे सब प्रकारक कारक शब्द आ विशेष रूप सँ संबोधन कारक शब्द संग बजबाक शैली अत्यन्त मधुर होइत अछि। यैह कारण छैक जे मैथिली मे वार्ता सँ नहि केवल बजनिहार प्रथम पुरुष आ सुननिहार दोसर पुरुष बल्कि सुननिहार कोनो अन्य (तेसर) पुरुष केँ सेहो आत्मीयताक भाव बोध अधिक होइछ। मैथिलीक सम्पूर्ण वाक्य संरचना मे लयात्मक शब्दक बहुल्य प्रयोग सम्भवतः एकरा मधुर भाषाक श्रेणी मे प्रोन्नति दैत अछि। लयात्मकता आ कोमलता कोनो भाषा केँ सुननिहार लेल मधुर होयबाक मानक तय करैछ आर ई दुनू बात मैथिली शब्दकोश मे प्रचूरता मे भेटैछ, सहजहि प्रयोगात्मक तौर पर सेहो यैह दुइ बात भाषिक मिठास केर कारक तत्त्व सिद्ध होइछ।
जनकपुर साहित्य महोत्सव एहि वर्ष दोसर खेप ३ मार्च सँ ६ मार्च अर्थात् १८ सँ २२ फागुन – कुल चारि दिवसयीय साहित्यिक आयोजनक रूप मे जनकपुर मे आयोजित कयल जायत। एहि मे आन बहुत रास सत्रक संग एकटा महत्वपूर्ण सत्र केर संयोजन-संचालनक जिम्मेदारी श्री बद्रीनाथ झा पर छन्हि। अक्सर अपन मैथिली संग नेपाली भाषाक छोट-छोट लेकिन महत्वपूर्ण वैचारिक ट्विट मार्फत नेपालक राष्ट्रीय फलकक राजनीतिक परिदृश्य संग बौद्धिक, भाषिक, सांस्कृतिक आर पहिचान केन्द्रित पोस्ट्स रखैत रहैत छथि बद्रीनाथ जी। सामाजिक संजाल केर यथोचित सार्थकता केँ बुझनिहार आ तदनुसार अपन निजी योगदान सेहो देनिहार व्यक्तित्व कहियो निज प्रवासक्षेत्र पोखराक झील केर माछक फोटो त कहियो सासुर विराटनगर दिश अबैत काल कोसी बैरेज पर कोसीक विशिष्ट माछक फोटो पोस्ट करैत अपन मैथिलपन सँ सम्पूर्ण नेपाली जनमानस केँ परिचित करबैत छथि त कहियो अपन मधुर आवाज मे मधुर मैथिली संग-संग मधुर नेपाली गीत गायन करैत एक विशेष दर्शक वर्ग सेहो निर्माण कएने छथि। मूलतः इंजीनियर आ व्यवस्थापन पक्ष केर निजी क्षेत्रक चर्चित कम्पनी मे कार्यरत एक पेशाकर्मी अपन आन्तरिक अन्तर्दृष्टि आ दूरदर्शिताक बेहतरीन प्रयोग करैत सामाजिक-राजनीतिक एक्टिविस्ट केर छवि सेहो बनौने छथि, ताहि मे कतहु दुइ मत नहि। हिनकर उपरोक्त प्रश्न हमरा समान मैथिलीप्रेमी लेल एकटा उचित अवसर प्रदान कयलक अछि। ई लेख हिनकहि समर्पित छन्हि।
आइ सँ लगभग ५ दिन पूर्वहि हम अपन समझ केँ आर पुख्ता बनेबाक लेल फेसबुक प्रोफाइल पेज पर हुनकहि जिज्ञासा केँ यथावत् राखि देल। आर तदनोपरान्त अपेक्षित आ यथोचित जवाब सब सेहो भेटल। मैथिलीक चर्चित गीतकार डा. चन्द्रमणि झा मैथिलीक मिठासक जे कारण बतेलनि ओ सर्वाधिक पसीन कयल गेल। ओ कहलनि, “स्वर ‘अ’ एवं ह्रस्व स्वर मात्राक विपुल प्रयोग मैथिली केँ मधुर बना दैत अछि। जेना, हम नहि जायब… १. एहि वाक्यमे ह आ म केर बीच अ केर हस्तक्षेप अछि। २. नहि मे ह्रस्व इ केर मात्राक प्रयोग अछि जे एकरा कोमल बनबैत अछि। तहिना; ‘हँ, सबटा हिनकहि कहल मानि लिअनि….’ १. एहि वाक्यमे हँ केर आगू अ’क हस्तक्षेप अछि। २. हिनकहि, मानि, लिअनि – एहि तीनू शब्द मे ह्रस्व इ’क प्रयोग भेल अछि। ३. कहल शब्दक प्रत्येक व्यंजनक आगु अ’क हस्तक्षेप अछि। जखन कि हिन्दी मे अधिकतर दीर्घ स्वर आ, ए, ई’क प्रयोग होइत अछि। जेना; कहा गया, कहे गये अथवा, कही गई….. एहिना अन्य वाक्यहु मे।”
संस्कृत भाषाक जानकार आ युवाकवि कृष्ण कान्त झा कहैत छथि, “संस्कृत स निकटता आर बाजय के लेहाज, सामाजिक सहयोगिता के संग अपन व आन सब में अपनत्व केर वैशिष्ट्य, ई खासियत मैथिली केँ मीठ भाषाक दर्जा दिअबैत अछि।” मैथिलीक विद्वान् आ कोल्हान विश्वविद्यालयक प्रोफेसर डा. रविन्द्र कुमार चौधरी कहला, “मैथिली भाषा मे स्वर वर्णक प्रयोग अत्यधिक भेला सँ मधुर अछि। जाहि कोनो भाषा मे स्वर वर्ण अर्थात ह्रस्व केर प्रयोग अत्यधिक होयत, ओ कर्णप्रिय एवं हृदयग्राही होयत। व्याकरणक इएह विशेषताक कारणें मैथिली कर्णप्रिय आ मधुर अछि।” विद्वान् चिन्तक विनोद कुमार झा अपन अनुभव बतेलनि, “एकटा अनुभव सुनबैत छी। बात १९८४-८६ के छियै। हमर पंचायत गोईमिश्र लगमा, महथवार गाम मे फिजिकल ट्रेनिंग कालेज बुलन महात्मा खोलने छलाह। एडमिशन हेतु बिहारक हर कोण सँ अभ्यर्थी सब अबैत रहै। शंभू चौक लगमा महथवार पर हमरो एकटा फूसक घर रहै जाहि में नालंदा के दूटा युवा ठहरल छलाह। सांझ में चाहक दुकान पर लोकक मैथिली में गप्प सुनि नालंदा निवासी सुबोध मिश्र हमरा कहने छलाह जे एखनो तक याद अछि, ‘विनोद भाय, वास्तव मे मैथिली जैसी मीठी भाषा संसार की दूसरी भाषा हो ही नहीं सकती। इसमें इतना अपनापन है, यहाँ के लोग जब बोलते हैं ‘आउ आउ, बैसू बैसू, चाह पीबि लिय’, की कुशल मंगल बढ़ियां ने?’, क्या कहें मुझे सुनकर बहुत आनंद की अनुभूति होती है। ऐसा भाव कहीं और जगह मिलना मुश्किल है। मैथिली बहुत ही मीठी और बेजोड़ भाषा है।” संगहि ओ ईहो जोड़लनि, “ई प्रश्न ओहिना भेल जेना कहब जे कोयली के स्वर मीठ आ कौवा के बोली कियै कर्कश लगैत अछि? जाहि स्वर आ भाषा के सुनला सँ कान मे मधुरताक एहसास हो ओ मधुर वाणी भेल। मैथिली सुनला सँ अत्यंत मधुर लगैत छै। विद्यापतिक गीत जकरा मीठ नै लगतै ओ महींस बुद्धि भेल। लता मंगेशकर के स्वर कियै मधुर लगै अछि?”
एक राजस्थानी मूल केर युवा जे स्वयं मिथिलाक्षेत्र मे रहिकय मैथिली सीखलनि ओ कहला, “मैथिली भाषा संगीतेक भाषा अछि। सातम सुर मैथिली म भेटत। जै जै मैथिली म प्रवीणता भेटत तै तै मे संगीत आर सूर म ज्ञान बढ़त!” लोकगायक सुभाष वीरपुरिया अपन मार्मिक अनुभव रखैत कहलखिन, “आदर्श भाव केर मिठासक जननी मैथिलिए भाषा सँ पाओल गेलैइ, वेद-वेदान्तिक जेना, तेँ दर्दो मैथिलीक मीठहि स्वर मे गुंजैत छैक। यैह कारण हमर मैथिली मिठगर अछि।” भाषा-संस्कृति अभियन्ता अनिल झा कहलथि, “भाषाक सरलता। संबोधनक शब्द मे मैथिल संस्कारक आभास। भाषा मे रोड़ शब्दक नगण्यता आ शब्दांत मे दीर्घ स्वरक अभाव भाषा केँ नम्र आ मधुरगर बना दैत अछि। तेँ एतुका गाइड़ सेहो मिठगर होइत अछि।” मैथिली फिल्म क्षेत्र मे निरन्तर निर्माण आ निर्देशनक कार्य करैत आबि रहला अंग्रेजी भाषाक जानकार राजेश शाह बद्रीनाथ जीक जिज्ञासा मे किछु आरो विशद तथ्य जोड़ैत अपन जिज्ञासा रखलनि, “ई बात त हमर दिमाग में कहिया सँ खेलाइत रहे जे मैथिली भाषा मैथिलीए टा क लेल मीठ होइत छैक की आन भाषी सबहक लेल सेहो? जेना कोनो अमेरिकन लोक (जे मैथिली कहियो नहि सुनल आ पढ़ल होए) आओर भाषा सभ सँगे मैथिलियो भाषा सुनय त एकर ध्वनि समूह कोना क’ अधिक कर्ण-मधुर भs सकय ए ? आ की मात्र देवनागरिक लिपि बाजs बाला सभक बीच मैथिली मीठ बुझाइत अछि ? आशा अछि जे ऐ सम्बन्ध में तथ्यगत जानकारी पाबी।” हिनका जवाब दैत अनिल जी लिखलनि, “आन भाषा मे शालीन शब्दक चयन कर’ पड़ैत छनि किनको अपन गप शालीनतापूर्वक रखबाक लेल, मुदा मैथिली भाषा एतुका संस्कारक भाषा थिक तेँ अहि भाषा मे नम्रता सहजहिं भेटत। मैथिली भाषा मे टवर्गक प्रयोग आ दीर्घ स्वरक प्रयोग बड़ कम होइत अछि तेँ अकर टोन मे रोड़पन नहि छैक। यैह सब अहि भाषा केँ ककरो लेल कर्णप्रिय आ मुधुरगर बना दैत अछि। हिन्दीये अपन सभक आ पूर्वी यूपी केर सुनू, फेर पश्चिमी यूपी आ हरियाणा केर सुनू, अहाँ केँ बुझा जायत जे कोना ओ सभ नीको भाषा केँ अपन टोन सँ रोड़गर बना दैत छथिन।”
विद्वान् मनोज रूपनारायण बड़ा संछेप मे सारगर्भित सूत्र रखलनि, “सरलता आ शैली के साथ साथ छोट पैइछ के लेल उचित शब्दकोश”। एहि मे बद्रीनाथ जीक एकटा बड़ा सान्दर्भिक जिज्ञासा आरो जोड़ायल छल जे पैघ-छोट मे अन्यान्यो भाषा मे सम्बोधनक उचित शब्द सब होइत छैक, मैथिली मे विशिष्ट की? एकरा फरिछाबैत हम कहने रहियनि जे एतय मनोज भाईसाहब के कथन शब्दक विपुल भंडार आ बहुविकल्पीय प्रयोग, जाहि में भावनात्मक, भावात्मक आ ध्वनिक प्रयोगात्मक माधुर्य आन भाषाक तुलना अधिक अछि, जे एकरा लयात्मक भाषा (lyrical language) में स्तरोन्नति (qualify) स्वस्फूर्त ढंग सँ कय दैछ। तहिना संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी आदि कइएको भाषाक जानकार विद्वान् युवाकवि मिथिला विश्वविद्यालयक प्रोफेसर डा. संजीत झा सरस लिखलथि, “मैथिलीक ‘मीठत्व’ केर बोध शब्द सँ नहि अपितु अनुभूति प्रमाण सँ होइत अछि। ओहिना जेना रसगुल्ला केहेन होइत अछि’ एकर उत्तर ‘मीठ’ भ सकैत अछि मुदा ‘मीठ केहेन होइत अछि?’ एकर उत्तर शब्द सँ नहि देल जा सकैत छैक। ओहि लेल रसगुल्ला खाइये टा पड़तैक। ओकर अनुभूति करइये पड़तैक।” विद्वान् इतिहासविद् आ मैथिलीसेवी रामनारायण देव कहैत छथि, “मैथिली एक सुसंस्कृत, सरल, सौम्य, आ शिष्ट भाषा थिक। एहि मे आदरसूचक आ नरम, मधुर शब्द सभ पाओल जाइत अछि।ततबे नहि! आर बहुतरास विशेषता अछि। अपने, अहां, हाै, याै, रौ, रे, अरे जेकाँ विभिन्न तरहक उमेर, लेहाज, सम्मान आ सिनेह प्रकट करयवला लोकक लेल प्रयुक्त अलग-अलग संबोधनक शब्द प्रयाेग हाेइत अछि जे अन्य भाषा मे अभाव अछि। मैथिली के बाद बंगाली के मिठगर भाषा मानल जाइत अछि।” एक युवा विज्ञ अपन राय दैत कहलनि अछि, “मैथिली लैंग्वेज के एक्सेन्ट (उच्चारण) जे छै से मधुर बनबैत छैक। एक्सेन्ट के मतलब भावना के प्रदर्शन जाहि शब्दावली सँ कयल जाइत छै ओकर कहय के तरीका छै, ओहि मे मधुरता छै। मतलब टोन जे छै ओ बहुत ओ बहुत मीठ छै। वैह कारण दू गोटे लड़ाइयो करय छै त ओतेक कठोर नहि बुझाइ छै।” धनंजय मिश्र केर कहब छन्हि, “भाषाक मिठास शब्द थिक। मैथिलीक शब्द कोमल आ सौम्य होइत छैक तें कर्णप्रिय। इएह कर्णप्रियता लोकक हृदय कें शीतल करैत अछि! तें मैथिली मधुर।” एक कृष्ण चौधरी त लिखलथि अछि जे “अपन मातृभाषा अछि ताहि द्वारे विशेष मिठगर अनुभूति होइत अछि। मैथिली मतलब देवी सीता। जे शब्दक निर्माण जगतजननी के कारण भेल हुवे ओ भाषा त मिठगर हेबे करत ने!”
भाषाविज्ञ विजय कुमार झा अपन सुविज्ञ विचार दैत कहलनि अछि, “देसिल बयना सब जन मिठ्ठा! भाषावैज्ञानिक दृष्टिकोण सँ शब्द पर अन्य भाषाक तुलना में उच्चारण सुलभ स्वराघात बेसी अछि। मूर्धन्य ध्वनिक अत्यल्प प्रयोग होयत अछि। सर्वनामक प्रयोग सेहो पैघ छोटक दृष्टिएँ प्रयुक्त होयत अछि। एहिना क्रियापदक प्रयोग सेहो देखायत अछि। सबसँ बेसी ई प्रमुख बात अछि जे भोर सँ रात धरि जहि भाषा में भावसंप्रेषण करैत छी से ओहिना मीठ बुझायत छै।जिनगीक आधार त मीठ होयते छै।”
आखिरी मे कोनो भाषा मीठ होयबाक सर्वथा सुन्दर सन्देश महाकवि विद्यापति देलनि अछि। ओ अपन नारा मे सभक मातृभाषा केँ मीठ होयबाक गूढ सँ गूढतम सत्यक रहस्योद्घाटन कयलनि आ कहलनि ‘देसिल वयना सब जन मिट्ठा’। यैह ओ क्रान्तिकारी नारा थिक जे आइ सँ लगभग ८०० वर्ष पूर्वहि संस्कृतक उद्भट्ट विद्वान् रहितो महाकवि अपन मातृभाषा मैथिली (तहिया अभहट्ट) मे रचना करब आरम्भ कयलनि आ जन-जन केर कंठ मे विराजमान भऽ गेलाह। कतेको शतक बीतितो विद्यापति अपन रचना सँ जन-जन केर कंठ मे विराजित छथि। एतबा नहि, विद्यापतिक रचना मे मैथिलीक जाहि स्वरूपक दर्शन होइत अछि ताहि मे जनसामान्यक बोल-वचन आ शैली विशेष रूप सँ समेटल गेल अछि। तेँ विद्यापति जनकवि सेहो बनि जाइत छथि आ जन-जन केर नजरि मे लोकप्रिय बनि अमरकविक रूप मे अमर भऽ जाइत छथि। आइयो धरि कतेको लोक मैथिलीक लेखनी मे उच्च जाति-समुदायक बोली मात्र समेटल रहबाक आरोप लगबैत स्वयं केर जनसामान्य द्वारा बाजल जायवला ठेंठी बोली-शैली बुझि अवहेलित बुझि मैथिलेतर तक मनबाक भ्रम पोसि लैत छथि, धरि विद्यापति सन महाकविक अमर-रचना मे हुनकहि सभक बोली-शैली केँ समेटैत रचनाधर्मिता देखबैत मैथिली केँ जनसामान्यक भाषा सिद्ध कयल गेल अछि। मिठास सेहो तखनहि बेसी बुझाइत छैक जखन आम जन आ सामान्य जन केर बोली-शैली जाहि मे निर्दोष भाव आ अभूतपूर्व मानवीय स्नेह-संवेदना सेहो समेटल रहैत छैक। यैह रस सँ भाषाक मधुरता आर बढि जाइत छैक।
सभक मातृभाषा (देसिल वयना) ओकरा लेल ओतबे मीठ छैक, लेकिन अफसोस जे राजनीति केर कुचक्र मे मैथिली जेहेन समृद्ध आ प्राचीन भाषा केँ फँसाकय आइ स्वयं मैथिली भाषी द्वारा तिरस्कृत करबाक नौबत आनि देल गेल छैक। आशा अछि जे जनकपुर साहित्य उत्सव ई भ्रम केँ तोड़बाक काज करत आ आगामी जनगणना मे मैथिली अपन सामर्थ्य केँ २०६८ साल सँ बढा सकत, नहि कि जाति-पाँति मे विखंडन करैत भाषा-बोलीक नाम पर सेहो विखंडित होयबाक कुचक्र मे फँसि जायत।