आसे आस मे जिनगी

कथा

– विन्देश्वर ठाकुर, दोहा, कतार

waiting wife1ठन्डाके मौसम, ताहिपरस रातिक समय । चारुदिस धोनही लागल । कान कान नै सुझय । ते सबगोटे सबेरे खाना खाs कs अपना अपना बेडपर ओङ्गठल । सन्तोषबा सेहो तुरन्ते अपना बेडपर ओङगठले रहय कि फोनक घन्टी बजलै -टिङ टिङ् । सन्तोष समय देखलक रातिक ९ माने नेपालमे १२ बजे राति । कि भेलैक ? अते रातिक मिसकल किय ? सन्तोष असमन्जसमे पडिगेल ।

आ कि फेर बजलै घन्टी – टिङ टिङ । सन्तोष तुरन्त फोन कयलक । फोन उठलै । कोनो कनिया बाजल । – हेल्लो केना छी ? ठीक छी ने ? हमरा त बिसरिए गेलियै नहि ? सन्तोष बुझिगेल ओ आरो कियो नै ओकरे अर्धाङ्गनी ‘बबिता’ छलीह ।

ओ बाजल – ह हम त ठीके छी । अहा कोना छी कहु ने ? नहि – नहि कोना बिसरि जाएब । केहन बात करैत छी अच्छा कहु ने कि भेल ? अते रातिक किय फोन केलहु । एके सासमे सन्तोषो पुछलक ।

बबिता : अहाके त हमरा पर कनियो मए- स्नेह नै अछि । ज से रहित त अते दिन भ गेल घर नहि अबितहु ? देखियौ त लालगरबाली दिदिके ताबत भाइजी आबिक फेर चैल गेलथि आ फेरो देहमे एगो बौवा छैक । मुदा हमरा हमरा त टोलोमे सबकोइ ताना मारैय आ भगवानो हमरे पर लागल अछि । ओहि जनममे कोन धार बिगार केने रहियै से नहि जानि ।

“ठीक छै ठीक छै बबिता हे सुनु न – आब कनिए ऋण तिरकेs के बाकी रहिगेल अछि बुचिके बियाहक । आहा धिरज धरु ने हम जल्दिए लौट आएब”, एहसब कहिते रहै कि फोन बजलै टु टु माने पैसा सठि गेलै मोबाइलके । मुदा बातो पुरा नहि भेलै । तखन सन्तोष सोचैय – ३ साल पहिने सादीके ६ महिना बाद जे कतार आएल रहे से गप । साच्चे देखिते – देखिते कते दिन भs गेलै । तखन सम्झना एलै जे बबिता गर्भवती रहै से बच्चा गर्भेमे नोकसान भs गेलै आ तहियास ने सन्तोष घरे गेलैय आ ने बबिताके दोसर बौवा भेलैय । अपन कर्जा, घरक कर्जा, बहिनक बियाहमे लेल गेल कर्जा । एहसबके ऋण तिरैत तिरैत एखन धरि बित गेलै आ नैजानि आरो कते दिन बित जेतै – एम्हर आसे आसमे सन्तोषके जीनगी आ ओम्हर ओकर धर्मपनी बबिताके जिनगी ।