पुरुषक होशियारी
जुलुम भए रहल भारी
देखू पुरुषक होशियारी ।
कविता संग बूधन ब्याह रचेला
तीन बरस हँसी खुशी बितेला
एकदिन कविता गर्भवती भेली
प्रसव वेदना झेल ने पेली
गेलथि स्वर्ग सिधारि
भेल दोसर बियाहक तैयारी।
अबोध नेना के के पालत
देखू हमर घरक हालत
ई कहि बूधन साइर घर लेला
हुनके संग फेर ब्याह रचेला
बिसरि गेलाह पहिल घरवाली
घर में आयल फेर खुशियाली ।
घरक भार बबिता अपना सिर लेलीह
बिना प्रसव के माँ बनि गेलीह
बरस धरि सब ठीक रहल फेर
एकदिन बबिता विधवा बनि गेलीह
विपत्ति पड़ल आई भारी
कोना सहती बबिता बेचारी ।
देख लिय ई भाग्यक फेर
विधना खेल रहल कोन खेल
माँ सोचलथि घर में खुशी लाबी
दोसर बेटा के ब्याह रचाबी
भेटत दहेज में फरारी
करय लगलीह तैयारी ।
बबिताक पिता समधिन लंग
एकदिन रखलथि मोनक बात
कियेक ने ललन संग बबिता के
पुनः बनाबी हम सब अहिबात
धिया हमर सुकुमारी
नै देखलक दुनियादारी ।
सुनितहि समधि के मुँहक बात
तिलमिला उठली बेटाक माय
कहलथि अभागल बेटी आहाँक
आब की खायब दोसर जमाय?
नारीक पीर ने समझथि नारी
देखू सासुक रूप अहंकारी ।
बहिनक दियोर बबिता के सोहाय छल
ललन , बूधन के छोट भाय छल
सास – माँ कियो जे बुझितन
स्त्री मन के कियो समझितन
स्त्रीक देखू लाचारी
कोना भेल समाज व्यभिचारी ।
काँच कुमार अपन बेटा के
मसोमात संग कोना बियाहू
बाजव स पहिले किछुओ त
की कहत समाज से सोचितौ आहूँ
बनि रहल समाज अत्याचारी
कत सुतल छी भोले भंडारी ।
डॉ. प्रतिभा स्मृति
दरभंगा (बिहार)