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बसंत – दीपिका झा केर एक सुमधुर नव रचना

साहित्य

– दीपिका झा

“बसंत”

बसल बसंत अहि नैन……..

मधुमासक मधु छलकल चंहुदिश,

भीजल अछि दिन-रैन…….।

बसल बसंत अहि नैन……..।।

 

वन-उपवन नवकल्प सं साजल,

कोयली लय में कुहकय लागल,

हलसल अछि दिन-रैन…….।

बसल बसंत अहि नैन……..।।

 

आमक मज्जर सं तरु पाटल,

मधुर बयार देखि पोह फाटल,

शीतल भेल दिन-रैन………।

बसल बसंत अहि नैन……..।।

 

पीयर सरिसों सं खेत अछि लादल,

मधुमय रंग में सुन्दर साजल,

गमकय दिन और रैन……।

बसल बसंत अहि नैन……..।।

 

नववर्षक उपहार लय आयल,

संगहि हर्ष अपार लय आयल,

मंगलमय दिन-रैन…………।

बसल बसंत अहि नैन……..।।

 

पीत वस्त्र में प्रियतम साजल,

“मृगनयनी” नैन में भरि कऽ काजल,

सुखमय भेल दिन-रैन……..।

बसल बसंत अहि नैन……..।।

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