सोहन बाबूक दुइ पीढीक यथार्थ – तेसर पीढी मे कि होयत से कल्पनातीत अछि

दहेज प्रथा के साइड ईफेक्ट्स

– प्रवीण नारायण चौधरी

(ई एक काल्पनिक कथा थिक। प्रतिनिधित्व सच्चाई केर करैत अछि। यदि किनको सँ मेल खाय त केवल संयोग बुझब।)

मोहन बाबू चारि भैयारी छलाह। चारू भाइ एक सँ बढिकय एक पढल लिखल। चारू गोटे नौकरी मे, चारूक धियापुता बहुत संस्कारी आ पढाई-लिखाई मे बढनमा। ई लोकनि नौकरी जाहि ठाम कयलनि ओतहि घर-अंगना सेहो बना लेलनि। गाम सँ आबरजात रखलथि लेकिन कमसम। बाप-माय केर क्रिया-कर्म उपरान्त गाम एनाय-गेनाय आर घटि गेलनि।

मोहन बाबू जखन अपन जेठ बचियाक विवाह करबाक बात गाम-समाज सँ कहलनि त लोक सब कथा-वार्ता देखबय लगलनि। होइत-होइत एकटा प्राइवेट कम्पनी मे नीक ओहदा पर कार्यरत नीक कुल-मुल-शील के लड़का सँ विवाहक बात तय कय देलनि। दहेज मे हुनका युग अनुसार नीके पाय, तहिया ५ लाख टका लगलनि आ करीब २ लाख टका बरियाती-सरियाती आ साँठ-उपहार दय मे खर्च करैत बड़की बेटीक विवाह पूरा कयलनि।

हुनका कुल ३ बेटी रहनि। आर भैयारी मे सेहो कुल १० टा बेटी रहनि घर मे। बेटाक संख्या सेहो ६ रहनि। बड़की बेटीक विवाहक अनुभव सँ मैझलीक विवाह कनेक देरी सँ करय लेल सोचलनि। मैझली बेटी पर बड़कीक विवाहक खर्च आ लड़काक क्वालिटी, माता-पिताक लड़का तकबाक आ लड़काक गाम कतय, अपने रहैत अछि कतय, भाइ-भैयारी, नाता-गोता आदि सब कतय… ई सब बातक असर पड़लैक। ओ अपन विवाह होयबाक कल्पना करय लागल आ नहि जानि कियैक, ओकरा शहर सँ गाम जा कय विवाह करयवला व्यवस्था मोने-मोन पसीन नहि पड़लैक…। ओ बिना केकरो कहने-पूछने सीधे अपन पसीनक एक लड़का सँ विवाह कय लेलक।

मोहन बाबू आ परिवारक लोक अपन प्रतिष्ठा केँ देखैत ओकर विवाह केँ मान्यता प्रदान करैत ई जानकारी करा देलाह जे दोसर बेटीक विवाह सहजता सँ शहरे मे भेट जेबाक कारण ओतहि कय देल।

परिवार मे जखन एकटा एहि तरहक विवाह भऽ गेलैक त आरो-आरो बेटा-बेटी सभक मन-मस्तिष्क पर असर पड़लैक।

मोहन बाबूक दोसर भाइ सोहन बाबूक जेठ बेटीक विवाह मे फेर ओ काफी समस्या भोगैत स्वजाति आ नीक कुल-मूल केर परिवार मे बेटीक विदाई करबाक लेल लगभग १५ लाख टका खर्च करैत एक उच्च-शिक्षित आ योग्य बेटी लेल प्राइवेट बैंक मे सेटल्ड लड़का सँ विवाह कयलनि।

जेना-जेना परिवार मे विवाह सब होइत गेलैक, आर बच्चा (विवाह योग्य युवा-युवती) सब पर एहि सभ बातक खूब असर पड़ैत गेलैक। मोहन बाबू आ सोहन बाबू या आर दुइ भैयारी भले चारि अलग स्थान पर रहैत छलाह, लेकिन पारिवारिक एकता बहुत नीक रहनि आ सब एक-दोसर सँ हरेक बात लेल सलाह मशवरा कय केँ कुटमैती सब करैत रहथि।

आब फेर सोहन बाबूक मैझली बेटी जे काफी प्रतिष्ठित संस्थान सँ इंजीनियरिंग पूरा कयला उत्तर आईआईएम अहमदाबाद सँ एमबीए पूर्ण कय बहुत पैघ संस्थान मे नौकरी सेहो करैत रहथि हुनकर विवाह लेल पिता-परिजन पूरे बेहाल रहथि। उचित कथा सब मैट्रिमोनियल वेबसाइट सँ मात्र ताकथि, कारण गामघर मे आब ई भेद खुजि गेल छलैक जे फल्लाँ बाबूक फल्लाँ बेटी अनजाति मे विवाह कयलथि, जेकरा ई लोकनि घुमा-फिराकय गोलमटोल जवाब दैत छथि।

लड़का सब जे भेटय तेकरा सोहन बाबूक बेटी स्वयं अन्तर्वार्ता लेथि आ पुनः अपन माँ-बाबूजी सँ बतबथि जे ई कथा उचित-अनुचित कि अछि। लगभग २-३ वर्ष केर खोज मे अन्ततोगत्वा हुनको विवाह एक तेहने उच्चशिक्षित लड़का संग भेलनि, लेकिन नौकरी अपन एक ठाम आ लड़काक दोसर ठाम – जीवन सेटलमेन्ट मे बड़ा दिक्कत रहनि।

हम आब कथा केँ संछेप मे समेटैत किछु बात मात्र कहय चाहब – मोहन बाबू चारू भैयारीक परिवारक एतेक योग्य, कुशल आ सक्षम धियापुता सभक विवाह मे लास्ट रेशियो ५०-५० के भेल, ५०% स्वजाति, ५०% अनजाति। अनजाति मतलब जे अपन जाति बिल्कुल नहि। ५०% परिवारक सलाह सँ, ५०% परिवारक सदस्य केँ विवाहोपरान्त अथवा विवाह सँ पहिनहि अनजातिये मे करबाक परिस्थिति अवगत करबैत सम्पन्न भऽ गेलनि।

गाम-घरक लोक केँ सेहो आइ-काल्हि किनको परिवारक कथा-वस्तु मे बहुत बेसी रुचि नहि रहि गेलनि अछि। सभक संग अपने-अपने तरहक परिस्थिति छैक। किनकर घर मे कतेक नून आ कतेक तेल खर्च भेल से युग आब नहि रहि गेल सब बुझिते छी। तथापि, मोहन बाबू व परिवार केर आन्तरिक सम्मिश्रित नव आधुनिक समाज बनि जेबाक कारण गाम वापसी सम्भव नहि भेलनि। आइ पारिवारिक गेट-टुगेदर कोनो महानगर मे अथवा नगरक बाहर स्थित कोनो रिसौर्ट या फार्म हाउस सन स्थान सब मे होइत छन्हि।

ई अवस्था केवल २ पीढी – मोहन बाबू आ हुनक सन्तति मे अछि। आगामी समय मे – यानि तेसर पीढी मे जाइत-जाइत जाति, पाँति, कुल, मूल, शील, सौरव आदिक परिभाषा करय लेल लेखकक कलम नहि चलि सकत, पंजिकार जेहेन विज्ञ सेहो पंजियन नहि कय सकता – तेहेन समाज बनि जायत।

मिथिलाक अवस्था एक दहेज प्रथा सँ आ वैवाहिक सभाक कमी सँ केहेन बनि गेल से देखि सकैत छी।

हरिः हरः!!