इच्छा आ परिणाम – एक मार्मिक लेख

लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

इच्छा आ परिणाम

 
तहिया २८ वर्षक उमेर छल। बड़की बेटी एहि धराधाम मे आबि गेल छलीह। परम्परागत तौर पर हुनका नामे १ लाख टका के बीमा कराओल। अभिकर्ता हमर बहनोइ रहथि। ओ कहने छलाह जे बेटीक विवाह मे ई रकम काजक होयत। आब हम ४८ वर्षक छी। रकम मैच्योर्ड भऽ गेल। बेटीक विवाहक बदला ओ रकम हुनकर पढाई पर खर्च मे सहयोगक सिद्ध भेल अछि।
 
आइ सँ २० वर्ष पूर्व पढाई सँ बेसी महत्व विवाहक रहैक एना अनुभूति भेटि रहल अछि। २० वर्ष पहिने सच मे विवाहे निमित्त पाय जमा करब शुरू कएने रही। मुदा परिणाम अपन हाथ मे नहि रहि जाइछ लोकक। तदनुसार युग आ परिस्थिति हमरा सँ बेटी केर पढेबाक ऊपर खर्च करय लेल प्रेरित कय देलक। ओहि जमाराशि सँ पढाई खर्च मे फोड़नो नहि भेल, परन्तु किछु त भेल।
 
हमरे समान करोड़ों मैथिल व अन्य लोक बेटीक जन्म लैत देरी विवाह करबाक – अर्थात् कन्यादान करबाक जिम्मेदारीक बोध करैत शायद एहि तरहें अपन अवस्था मुताबिक किछु न किछु जमा करिते टा छथि। जेकरा पास नहियो किछु छैक ओकरो पास हृदय आ भावना केर अपार सम्पत्ति छैक आर ओहो लोकनि बेटीक नाम कतेको आशा आ विश्वास जमा करिते अछि। बेटीक विदाई करबाक परम्परा केर पालन मे हरेक माता-पिताक यैह दिनमान होइत छैक से सहजे बुझैत छी।
 
मुदा जखन वैह बेटीक विदाई जाहि घर मे कयल जायत से घरक लोक बेटीक माता-पिताक दरेग केँ दरकिनार कय अपन मनमौजी मांग करैत अछि तखन ओहि बेटीवला पर कि बितैत हेतैक से सोचनीय विषय भेल।
 
दहेज मुक्त मिथिला केर परिकल्पना यैह कारण एकटा पवित्र गंगा बहेबाक योजना थिक मिथिला लेल। हिमालय सँ निकसैत पवित्र जलधारा कोसी, कमला, बलान, गंडकी, बागमती, आदि द्वारा जहिना नित्य अंगना निपाइत अछि, आर साक्षात् देवनदी गंगा ओहि धोल-पखारल जल केँ अपना मे समाहित करैत गंगासागर मे जाय शान्त होइत छथि, ताहिठामक लोक मे कन्यादान केँ सौदाबाजी मे परिणति देब – एहि सँ जघन्य पाप दोसर कि भऽ सकैत छैक!
 
आशा करैत छी जे हर बेटीक माता-पिता लेल हर दूल्हाक माता-पिता एतेक दरेग राखिकय विवाह जेहेन पवित्र सम्बन्ध निर्माण करता। तखनहि मिथिला मे फेर सँ निमि, मिथि, जनक, विदेह, याज्ञवल्क्य, कपिल, कणाद, गौतम, विद्यापति, अयाची, मंडन, वाचस्पति, आदि औता। नहि त एखन कि भटैक रहल छी दुनिया-जहान…. समय आबि रहल अछि जे मुंह मे ऊक देनिहार पर्यन्त अहाँक अपन नहि रहि जायत। करीब-करीब एखनहुँ ई अवस्था बनिये गेल अछि, कारण अहाँ-हम स्वयं अपन बच्चा केँ अपनहि भाषा सँ दूर करैत मखैर रहल छी – ई बिना बुझने जे पहिने भाषा हेरायत, फेर साहित्य, फेर संस्कार, फेर संस्कृति आ तदोपरान्त अन्तिम मे सभ्यता हेरा जायत – के पूछत अहाँ केँ! जहिना बेटा अमेरिका मे आ मायक ठठरी सुखायल पड़ल रहि गेल नोएडाक १७वीं मंजिल वला फ्लैट मे… बिल्कुल यैह परिणाम होयत मिथिलाक लोक केर। देखैत चलू!
 
हरिः हरः!!