दर्शन-विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
कि कहैत अछि अपन शास्त्र-पुराण
उमेर केर आजुक पौदान धरि अबैत ई बात कतेको बेर मस्तिष्क मे आयल अछि जे शास्त्र-पुराण केर वचन आखिर हमरा सब वास्ते एतेक महत्वपूर्ण कियैक मानल जाइछ। आब ई प्रश्न गुरुजन सँ पूछब त ओहो लोकनि कहता जे ओ सिद्ध कयल सत्य (प्रमेय, अकाट्य वचन सभ) थिक। मानव केँ ओहि अनुरूप अपन जीवन केँ संचालित करबाक चाही ताहि लेल एकटा निर्दिष्ट मार्ग सभ थिक। ओहि मार्ग सँ चलला सँ गन्तव्य धरि आसानी सँ पहुँचि सकैत छी। सच ईहो छैक जे माता-पिताक छत्रछाया मे जन्म आ पालन-पोषण पाबि हमरा लोकनि सब दिने एहि तरहक निर्दिष्ट मार्ग पर अपन जीवन केँ संचालित करबाक आदी बनि गेल रहैत छी। आर योग्य गुरुजन केर शिक्षा-दीक्षा सेहो हमरा सभ केँ एहिना उचित मार्गदर्शन करैत अछि। स्वयं केर सोचबाक आ करबाक क्षमता तदनुसार विकसित होइत रहैत अछि। आर आब जखन स्वयं उचित-अनुचित केर विचार करय योग्य भेलहुँ आर एहि विषय मे सोचब कि आखिर हमरा सभक शास्त्र-पुराण केर वचन थिक की – तैयो जवाब ओतबे भेटत।
एक बेर कथा सुनि रहल छलहुँ शुकदेव जीक एहि धराधाम मे पदार्पण केर – ओ जन्म लेबाक समय सँ अमरतत्वक ज्ञान प्राप्त लोक छलाह। एहि धराधाम मे अबिते ओ किनको सँ कोनो बात कएने जन्महि भेल अवस्था अर्थात् नंगटे जंगल दिश प्रस्थान कय गेलाह। इहलोक मे हुनक पिता व्यासदेव केँ अपन पत्नीक गर्भ सँ एतेक कठिनताक बाद हुनक जन्म होयबाक कारण पुत्रमोह भेलन्हि – ओ हुनका रोकबाक लेल किछु वचन बजलाह। ताहि पर पलैटिकय शुकदेव जी हुनका सँ ‘केहेन पिता, केहेन पुत्र, के माता, के पिता, आदिक’ तत्त्वबोध करेबाक हिसाब सँ बहस करैत स्वयं केर स्वतंत्र बाट मे कोनो तरहक बिघ्न-बाधा उत्पन्न करबाक लेल मायाजनित बात करय सँ रोकलाह। लेकिन कालान्तर मे एक दिन एहेन समय अबैत अछि जे ओ ज्ञानी शुकदेव जी एहि धराधाम केर किछु घटना-परिघटना सँ जिज्ञासू बनि व्यासदेव सँ ताहि बातक मर्म बुझबाक प्रयत्न कयलनि। आर फेर व्यासदेव हुनका सँ गृहस्थी धर्म, इहलोकक माता-पिता, सखा-परिजन, बन्धु-बान्धव आदिक वृत्तान्त सब सुनौलन्हि। तैयो हुनकर जिज्ञासा शान्त नहि भेलन्हि आर ओ व्यासदेव सँ जिज्ञासा-पर-जिज्ञासा करैत गेलाह, व्यासदेव तदनुसार हुनका योग्य गुरु जनक महाराज सँ गृहस्थी धर्म आ मानवोचित कर्म आदिक समुचित बोध हेतु शिक्षा-दीक्षा लेबाक वास्ते सुझाव देलनि। एवम् प्रकारे शुकदेव जी जनकजीक शिक्षालय मे आबिकय मानवोचित धर्म-कर्मक विशद ज्ञान प्राप्त करैत छथि आर फेर गृहस्थी धर्म केर निर्वहन करबाक संग अपना पास रहल अकूत ज्ञान सँ मानव कल्याणक वास्ते स्वयं केर जीवन संचालित करबाक संकल्प लैत छथि। आइ जे एतेक गहींर श्रीमद्भागवतकथा हमरा सभ केँ सुलभ अछि तेकर प्रथम वाचन हुनकहि श्रीमुख सँ भेल कहल जाइछ।
तुलसीदास जीक आत्मकथा मे पढू आ गौर करू – एक निरीह आ असहाय बालक, जेना-तेना जीवनयापन करितो योग्य गुरु लोकनिक सान्निध्य पाबि शास्त्र-पुराण केर कथादि श्रवण करैत गृहस्थी मे प्रवेश करैत छथि आर धर्मपत्नीक प्रति प्रेमाशक्ति मे संलिप्त वैह धर्मपत्नीक किछु कड़ू बोल सुनि भगवत्मार्ग पर अग्रसर भऽ जाइत छथि। पुनः सत्संग आ शास्त्र पुराण केर अध्ययन – कथा श्रवण आदिक सहारे स्वयं केँ लिखय सँ रोकि नहि पबैत छथि आर बेर-बेर संस्कृत मे लिखबाक प्रयत्न कयला उत्तर आत्मसन्तोष नहि भेटबाक व अपन मातृभाषा (अबधी) मे नीक कथा-वाचन करबाक प्रेरणाशब्द सुनि जन-जन केर सहजताक हिसाबे राम कथा (रामायण) अबधी मे लिखब आरम्भ करैत छथि। आइ हुनकर लिखल ‘रामचरितमानस’ एहि तरहें हमरा सभ केँ प्राप्त अछि जे एतेक सहज, सरस आ सुमधुर ढंग सँ ईश्वरचरित आ गूढ तत्त्वादिक विवेचना कएने अछि जे घर-घर मे ई पवित्र पोथी सम्पत्ति बनि गेल अछि। जनसाधारणहु केँ स्वाभाविक सहजता सँ आकृष्ट करैत अछि तुलसीकृत् रामायण।
महाकवि विद्यापति द्वारा तुलसीदास सँ सैकड़ों वर्ष पूर्वहि एहिना जनभाषा (मैथिली) मे ई कहैत कार्य कयलनि जे ‘देसिल वयना सब जन मिट्ठा’ – आमजन द्वारा बाजल जायवला भाषा सब केँ प्रिय होइत छैक। आर एहि तरहें आन कोनो कवि एतेक लोकप्रिय नहि भेलाह जतेक कि विद्यापति आर हुनक ‘पदावली’ जन-जन केर कंठ धरि पहुँचि गेल। भावपूर्ण रचना – राधा-कृष्ण केर चरितक गान होइक अथवा महेसवानी अथवा नचारी या फेर आमजनक जीवनशैली सँ जुड़ल विभिन्न रस आ माधुर्य सँ ओत-प्रोत जनवाणी। मिथिला मे एकटा खास जाति-समुदाय भेटैत अछि ‘गन्गाईं’ जे ‘विदापत नाच’ केर माध्यम सँ महाकविक रचना गाबि-गाबि आ नाचि-नाचिकय जनसाधारण के नटुआ नाच केर शैली मे जीवनक गूढ रहस्य सभ वर्णन करैत अछि। मुलगेन आ नटुआ सहित एक विशेष शैलीक नाच थिकैक विदापत नाच, जनकवि केर रूप मे विद्यापति सेहो गानल जाइत छथि कियैक तऽ शास्त्र-पुराण केर वचन केँ बड़ा सहजता सँ जनसाधारण लेल सहज बनौलनि अपन रचनाक माध्यमे। आर यैह कारण छैक जे हुनका लेल कय तरहक किंवदन्ति आइ धरि जनमानस मे प्रसिद्धि पओने अछि। महादेव उगना बनिकय अपन भक्त केर सेवा करबाक आख्यान हो, गंगा स्वयं अपन धार मोड़ि विद्यापतिक अवसानक समय हुनकहि नजदीक पहुँचि गेलीह से आख्यान हो, यवन शासक हुनकर विद्याबल सँ राजाक प्राणदान देबाक बात हो, एहि सब मे विद्यापति द्वारा मानव समाज लेल उचित-अनुचित केर निरूपण करयवला शास्त्र-पुराण केर सहज चित्रांकन सँ लेल जा सकैत अछि।
एखनहुँ समाज मे आध्यात्मिक कथा-वाचन आ श्रवण केर महिमा सर्वविदिते अछि। कबीर या रहिमन होइथ आ कि सारंगीक धुन पर निर्गुण गेनिहार कोनो अनाम गुदड़िया बाबा – कीर्तन गाबिकय शास्त्र-पुराणादिक रहस्य गेनिहार कियो साधारण कीर्तनिये कियैक नहि होइथ – हम मानव लेल शास्त्रीय वचन आ पुराणक ओ कथा-गाथा जे जीवन संचालन लेल सहज मार्गदर्शन दैत अछि, ओ सभ कियो पसीन करैत छथि। हम मिथिलावासी त सहजहि अपन जीवनशैली ओहि मार्गचित्र अनुसार हँसैत-गबैत गुजारबाक आदी बनि गेल छी। तीरभूक्ति – पोखरि केर महार वा नदी-धारक किनार – ताहि ठाम अपन भुक्ति आ मुक्ति लेल जीवन चलेबाक परम्परा अपना ओतय रहल अछि। आर मानव केर कल्याण लेल दर्शनक खोज, शास्त्रार्थ, स्वाध्याय, यज्ञ, जप, तप, कीर्तन – यैह सब हमरा लोकनिक दिनचर्या रहल अछि। कतबो युगक मलिनता मे तप्त होइत रहब, जे मौलिक संस्कृति रहल वैह हमरा सभक मुक्तिगामी गन्तव्य रहल, रहत आ अछि। ॐ तत्सत्!
हरिः हरः!!