लेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
हमर आदर्श व्यक्तित्व
दहेज मुक्त मिथिला समूह मे एतेक रास क्रिएटिव विचारधाराक संगम एक संग अछि जेकर परावार नहि। समूहक एक अत्यन्त सक्रिय बहिन सुश्री राधिका झा (सीतामढ़ी) एक महत्वपूर्ण विषय रखलीह अछि – ‘हमर आदर्श व्यक्तित्व’ केर फोटो संग किछु अनुकरणीय संस्मरण लिखू। संगहि हमरा विशेष रूप सँ आग्रह कयलीह जे हम अपन आदर्श व्यक्तित्व केँ मोन पाड़ी।
हमर आदर्श एखन धरि अनेकों व्यक्तित्व भेलथि अछि। हमरा जहिया सँ होश भेल, नीक-बेजा आदिक ज्ञान भेल, तहिये सँ आदर्श व्यक्तित्वक लाइन लागब शुरू भऽ गेल।
एक समाजवादी नेताक पुत्रक रूप मे बच्चे सँ हमरा बड़े दुलार-प्यार एक सँ एक व्यक्ति सभक भेटल। पिता संग घुमबाक आदति रहबाक कारण चौक-चौराहा पर दु-संझू जेबाक आदति बापहि संग लागि गेल बुझू, आ सेहो बच्चे सँ। चन्नू चाह दोकान हो, हरिहर काकाक दलान हो, घुरन काकाक मचान हो, गाम भरिक मैदान हो – गामक आस-पड़ोस मे पर्यन्त पिताक संग साइकिल मे बैसिकय कहियो हरिनन्दन सिंह काका ककोढ़ा, कहियो बद्री बाबा दादपट्टी, कहियो बुच्ची काका नदियामी, कहियो रामकृपाल काका त कहियो रमानाथ जी सुरतीरही – बाप संग घुमैत-घुमैत व्यक्ति आ व्यक्तित्वक ज्ञान बच्चे सँ भेल सेहो कहि सकैत छी। लेकिन एतय बात एलैक अछि आदर्श व्यक्तित्वक! आदर्श किनका मानल जाय?
जीवन मे आगू बढ़बाक लेल जाहि श्रेष्ठ व्यक्तिक व्यक्तित्व सँ प्रभावित भऽ अपना केँ हुनकहि मार्ग पर चलेबाक लेल अग्रसर होइत छी, वैह व्यक्ति केँ आदर्श कहल जाय – एना हमरा लगैत अछि। आदर्श व्यक्तिक परिभाषा आरो विस्तार भऽ सकैत छैक, मुदा हमर ई लेख एहि परिभाषा पर टिकल रहत।
अपन जीवनक कतेको वर्ष धरि जीवन कि थिकैक ई ज्ञान मनुष्य केँ नहि होइत छैक। लेकिन माय-बाबू, काका-बाबा-भैया आ परिजन सँ घेरायल, परिचित-अपरिचित केर बीच सँ बढैत जीवन मे किताबक ज्ञान, शिक्षकक शिक्षा आ रेडियो-पत्रिका आदिक अतिरिक्त सहयोगक बीच सँ जीवन निकलि रहल छल। धीरे-धीरे परिपक्वता पाबि रहल छलहुँ।
बाल्यकाल मे साइकिल चढनाय सिखेनिहार सँ लैत झटहा मारिकय आम तोड़ब सिखेनिहार आ कि गाछ पर छड़पनाय, पोखरि मे हेलनाय, गुरकुनियाँ छननाय, राजा-कबड्डी, कबड्डी, चैत-चिक्का, गुल्ली-डंटा, गोली, झुटका, पैसा, बघन्डो – आह! अनेकों शिक्षाप्रद खेल आ सामाजिक प्रशिक्षण केर बीच सँ गुजरैत अपन मैथिल जीवन बढैत रहल।
नाटक केर पात्र सेहो बड़ा बच्चे मे देक्सी सँ बनि गेल रही, अभिनय, मंच निर्माण ओ साज-सज्जा, मेकप, कतेको रंगक जानकारी भेटैत चलि गेल छल।
मुदा ज्ञान असल तहिया भेल जहिया बाप एक लाइन मे कहि देलनि, “हमरा लग पाय के गाछ अछि जे तोड़िकय दय दियौक आ तूँ दरभंगा चलि जेमे पढाई करय लेल!” यैह आखर हमरा अपन पिताक विवशता केर परिचय करौने छल। जखन कि एहि सँ पहिने हम डाक्टर साहेबक बेटा, एक न्यायप्रेमी आ सभक नजरि मे सम्मानित व्यक्तित्व ‘रघू बाबू’ केर बेटा, डा. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर, सूरज नारायण सिंह आदि अनेकों आदर्श समाजवादी नेताक प्रियपात्र रघुवर नारायण चौधरीक बेटा – पिता व जेठ पितियौत भाइ सँ औषधि विज्ञान व दबाई आदिक जानकारी रखनिहार स्वयं ‘छोटा डाक्टर’ लेल जीवनक यैह विन्दु एक टर्निंग प्वाइन्ट भेल आ अपन जीवन शुरू भऽ गेल।
आदर्श व्यक्तित्व धरि एखनहुँ के छलाह ई बात तहिया नहि बुझल छल – लेकिन आइ कहि सकैत छी। ओ केवल आ केवल पिता भेलाह जे हमर एक नम्बर केर आदर्श भेलाह। असल मोक्षदाता हमर आदर्श पिता भेलाह। अन्धकाररूपी परनिर्भर संसार सँ आत्मनिर्भरताक प्रकाश दिश बढबाक ज्ञान देनिहार केवल आ केवल पिता भेलाह। बात-बात पर पैघ-पैघ राष्ट्रनेताक नाम लैत शिक्षा आ नैतिक उपदेश देनिहार पिता भेलाह। आर जखन अपन जीवनयात्रा – माता-पिताक आश्रय सँ इतर आरम्भ होइछ तखन शुरू होइत अछि आदर्श व्यक्तित्व सभक संग भेंट, संख्या असीमित अछि, किनका मोन पाड़ू, किनका छोड़ू – तेहेन हाल अछि।
जा धरि जीवन केँ एक निश्चित करियर नहि भेटि जाइछ, ई मन-मस्तिष्क सबटा उद्वेलित रहैत छैक। आर्थिक रूप सँ अपना केँ मजबूत करब एकटा ठोस मार्ग होइत छैक, यदि पाय नहि कमायब त जीवनक सारा सिद्धान्त, आदर्श आ नीति-नैतिकताक बात कतहु भऽ कय नहि रहत – ई बात संसारक गति सँ बहुत कम उमेर मे सीखि गेल छलहुँ। तेँ फेर अनैतिक मार्ग सँ, भ्रष्टाचार सँ, चोरी-डकैती, हत्या-हिंसा-लूटपाट वा कोनो जोर-जबरदस्ती सँ दोसरक धन-सम्पत्ति अपहरण कय स्वयं केँ आर्थिक सबल कदापि नहि बनायब – यैह हमर आदर्श पुरुष पिता द्वारा सिखलहुँ। पिता एक्के बात हमेशा सिखौलनि जे मनुष्यक पास जतबे आमद छैक ताहि मे ओ अपना केँ जिया सकैत अछि।
“तोरा दरभंगा कालेज मे जा कय साइंस पढबाक इच्छा छौक, तोहर पिता डा. रामबदन यादव, डा. बी. के. चौधरी (ताहि दिनक सीएम साइंस कालेज केर प्रख्यात प्राध्यापक लोकनि) समान ख्यातिप्राप्त शिक्षक लोकनि केँ अपन सान्निध्य मे पढाई करय मे सहयोगी बनलाह, एक बेर बजताह त ओ लोकनि सब तरहक मदति कय देथुन, लेकिन बजता त हुनकर मूल प्रारब्ध गौण भऽ जायत। तेँ, अपन संघर्ष सँ जीवन बनेबाक लेल तूँ केवल एडमिशन करा ले, ताहु लेल पैसाक इन्तजाम (लगभग ३०० टका तहिया) करय मे समय लागत… कपार पर नहि चढ़…, सब काज भगवती करेथिन। हमरा लग पाय के गाछ नहि अछि जे तोड़िकय दय दियौक…!”
किछु एहि तरहक वार्तालाप पिता सँ भेल छल। हमर जीवन यात्रा तहिये सँ आरम्भ भेल। आइ जीवन मे जे किछु प्राप्ति अछि से केवल आ केवल ओहि पिताक प्रताप सँ। आर एक लाइन मे ई कहि दी जे हमर पिता केँ महान बनेबाक लेल आर जे-जतेक फैक्टर्स काज कएने हुअय, हमर माय त निश्चिते हुनका श्रीराम जेकाँ मर्यादा पुरुषोत्तम बनेनिहाइर सीता बनिकय स्वयं कष्ट कटैत एक पैली चाउर, दू पैली आँटा सँ जीवन केँ निर्वाह करैत हम तीन भाइ-बहिन केँ पोसलक, पढेलक-लिखेलक आ जीवन-मार्ग पर अग्रसर कय देलक।
आब हम अपन आदर्श केँ ताहि कारण केवल पिता नहि, बल्कि माता-पिताक रूप मे मानैत छी। संगहि अपन मास्टरसाहेब – रत्नेश्वर नारायण चौधरी जे गोली खेलाइत काल सीधे उठेलनि आ मारैत-मारैत छड़पिटा देलनि, संगहि तहिये निर्णय देलनि जे आठमा सँ नीचाँ कक्षा केँ हम नहि पढबैत छी मुदा तूँ काल्हि सँ हमरा लग आबि जो। बस, जीवन एहिना बनैत छैक – पढाई मे असल रुचि कक्षा ७ मे ढठियाइत-ढठियाइत, मारि खाइत-खाइत, हिसाब बनेनाय सिखैत-सिखैत जीवन सेहो सिखा गेल से कहि सकैत छी। अस्तु!
आजुक एहि लेख मे हम केवल माता-पिता-गुरु केँ आदर्श रूप मे प्रस्तुत करैत किछु संस्मरण लिखल। लम्बा भऽ गेल। अक्सर होइते छैक एहिना। लेकिन तैयो अहाँ सभक स्नेह भेटैत अछि जे पढितो छी आ अपन प्रतिक्रिया – सुझाव आदि सेहो दैत छी। आगाँ बेर मे आध्यात्मिक गुरु व अन्य चेतनाक दाता आदर्श पुरुष सभक हम चर्चा जरूर करब। राधिका बहिन केँ बहुत आभार जे ओ एहि तरहक लेखन लेल प्रेरणा देलीह। प्रणाम सब केँ। जय मिथिला जय जानकी!!
हरिः हरः!!