कतेक सहज छैक कोनो भाषाक क्लीष्टता केँ दूर करब
– प्रवीण नारायण चौधरी, संपादक, मैथिली जिन्दाबाद
संसार मे एहेन कतेको भाषा भेलैक जेकर क्लीष्टताक कारण जनसामान्य ओकर शुद्ध आ प्रचलित मानक पर आधारित लिखित वा मौखिक स्वरूप केँ नहि अपना सकल अछि। लेकिन कोनो भाषा केँ नहि अपनेबाक कारण केवल क्लीष्टता केँ नहि देल जा सकैत अछि, जाहि भाषा केँ जतेक बेसी प्रयोग करबाक स्थिति, जरूरत आ आवश्यकता होइत छैक, ताहि भाषा केँ सीखबाक, प्रयोग करबाक आ उपयोग करबाक अवस्था ओतबे बेसी होइत छैक। ओहेन बहुल्यजनक उपयोगी व बहुल्य-प्रयोगी भाषा कतबो क्लीष्ट रहतैक, लोक ओ सीखि लैत अछि आर तदनुसार ओकर व्यवहार जन-जन मे प्रचलित होइत चलि जाइत छैक। क्लीष्टताक आधार पर कठिनाह भाषाक सूची मे संस्कृत सेहो छैक। अंग्रेजी सेहो एक क्लीष्ट भाषा मानल जाइत छैक। संस्कृतक उपयोगिता आइ जनसामान्य लेल नगण्य छैक, तेँ संस्कृत सँ जनसामान्य सँ दूर भऽ गेल। जखन कि अंग्रेजीक क्लीष्टताक बावजूद आजुक संसार मे अंग्रेजीक उपयोगिता आ प्रयोगक प्रचूरताक कारण जनसामान्य सेहो अंग्रेजी सीखय लेल बाध्य अछि किंवा सीखि लैत अछि। एकटा साधारण मोबाईल जेकर आरम्भिक भाषा अंग्रेजिये टा रहल ओहो करोड़ों गैर-अंग्रेजीभाषाभाषी केँ अंग्रेजी सीखय लेल मजबूर कय देलक।
यदाकदा मैथिली भाषाक जाहि स्वरूप केँ पैछला १०० वर्ष मे लिखित रूप मे प्रयोग कयल गेलैक अछि ताहि पर सेहो ‘क्लीष्टता’ केर आरोप योग्य-अयोग्य दुनू तरहक लोक द्वारा लगायल जाइत छैक। एतय स्पष्ट कय दी जे पढ़ब-लिखब व उच्चारण संग अन्य वैयाकरणिक नियमानुसार शुद्ध-अशुद्ध भाषाक तौर पर प्रयोग मे कठिनाई केँ क्लीष्टता कहल जा रहल अछि। नेपाल मे खास तौर पर नव व्यवस्था केँ लागू करबाक महत्वपूर्ण समय मे मैथिली भाषा पर एहि तरहक विमर्श केँ जन्म दैत एकटा खास राजनीतिक सोच किछु बेसिये सक्रिय देखा रहल अछि। मैथिलीक विभिन्न बोली केँ भाषाक नाम देबाक काज सँ लैत आगामी जनगणना मे मैथिली मातृभाषाक संख्या कोनाहू कमजोर करबाक एकटा षड्यन्त्रमूलक तत्त्व अनावश्यक उपद्रव करैत देखा रहल अछि। आर एहि उपद्रवी तत्त्व केँ तखन बल भेटि जाइत छैक जखन स्वयं मैथिली भाषाक कइएक साधक आ साहित्यसेवी अपना-अपना तरहें आरोप केँ स्वीकार करैत भाषाक क्लीष्टता केँ दूर करबाक लेल कय तरहक कपोलकल्पित सहजीकरण-सरलीकरण आदिक बात उठबैत अछि। ई लेख एहि विन्दु पर केन्द्रित अछि।
नेपाल देश मे लोकतांत्रिक संघीय गणतंत्र केर नया राजनीतिक स्वरूप स्थापित भेलाक बाद संघीयता केँ बलवान बनबयवला अवयव बहुभाषा-बहुधर्म-बहुसंस्कृति केँ ‘एकल-भाषा-एकल-भेष’ केर नीति सँ इतर लागू करबाक संक्रमणकालीन व परिवर्तनशील अवस्था छैक। एहि लेल २०१५ ई. मे घोषित नव संविधान द्वारा किछु आधारभूत बुन्दा तय करैत भविष्यक वास्ते भाषा आयोग गठित कयल गेलैक अछि। ई बात एखन विमर्श मे नहि लेब जे ओ भाषा आयोग कतेक पूर्णता एखन करीब आधा कार्यावधि समाप्त भेलोपरान्त पाबि सकल, एखन एतबा जे आयोग अपन काज आरम्भ कएने अछि। आयोग द्वारा एखन धरि कोनो भाषाक स्वरूप, ओकर साहित्यक इतिहास, लिखित आ मौखिक स्वरूप पर कोनो तरहक समीक्षात्मक वा विश्लेषणात्मक टिप्पणी, ई सब कतहु कोनो भाषा अथवा बोली लेल नहि देखाइत अछि, लेकिन गाहे-बगाहे मैथिलीक नाम पर संचालित कइएक संस्था आ गोटेक भत्ताभोगी गैर-सरकारी वा अन्य भाषाक नाम पर बनल संस्था मैथिली केन्द्रित रंग-बिरंगी बात-विमर्श मे उलझल देखाइत छैक। कारण बौद्धिक, भाषिक, साहित्यिक वा कोनो अन्य शैक्षणिक सहुलियत लेल नहि अपितु राजनीतिक तौर पर प्रभावित सोच जे नेपाली बाद मैथिली मात्र सब सँ सबल भाषा थिकैक आर ई अधिकारसम्पन्न भेला सँ कियो खास वर्गक लोक बेसी लाभ उठा लेतैक – केवल एहि आशंका मे मैथिलीक चिरफाड़ करब शुरू कय दैछ। एहि लेख मे एहि तरहक विन्दु पर पाठकवर्ग व आम सरोकारी केर ध्यानाकर्षणक लक्ष्य लेल गेल अछि।
जनकपुर मे सक्रिय मैथिली साहित्यकार सभा केर सभापाल प्रेम विदेह ‘ललन’ केँ सेहो सहजीकरण-सरलीकरण केर पक्ष मे कइएक बेर आवाज उठबैत देखल गेल अछि। एक भाषा-साहित्य पर विमर्श लेल नवगठित युवा समूह ‘तीरभूक्ति’ जतय नेपाल संग-संग भारतहु केर कइएक युवा पीढीक चिन्तक संग वरिष्ठ आ अनुभवी लोकक हुजुम उपस्थित अछि, ओतहु एहि ‘मैथिली मे सब जाति-समुदायक बोली केँ समेटबाक आ शब्दकोश व लेखनक मानक आदि केँ सहज बनेबाक’ चर्चा कतेको बेर कयल जा चुकल अछि। एखनहुँ एहि तरहक चर्चा निरन्तरता मे अछि। अफसोस जे ओतय भाषा विज्ञान बुझनिहार, व्याकरणक आधारभूत बात आ विचार बुझनिहार, मैथिली भाषा आ साहित्यक विभिन्न स्वरूप पर जानकारी रखनिहार वा योग्यताक आधार पर आधिकारिक वक्तव्य देनिहार लोक नदारद छैक, तैयो मैथिली मे सहजीकरण-सरलीकरण केर अपन-अपन डफली आ अपन-अपन राग अलापल जा रहलैक अछि। तहिना भारत मे गैर-ब्राह्मण-कायस्थ वा सवर्ण केर अतिरिक्त आम जनसमुदायक लोक केँ भाषा-संस्कृति सँ जोड़बाक लेल बनल एक विशिष्ट अभियान ‘सुच्चा मैथिल’ सेहो एहि तरहक वकालत पैछला कइएक बैसार आ विमर्श मे कयलक। कतेको भाषा-अभियानी सेहो एहि परिवर्तनक पक्षधर छथि आर कतेक विद्वान्-विमर्शकार सेहो सहजीकरण-सरलीकरणक वकालत करैत रहैत छथि।
मिथिलाक लोक आ लोकरीति केर अध्ययन कहैत छैक जे हरेक जाति व समुदायक अपन किछु विशिष्टता छैक। जीवनशैली, बोलचालक शैली, रहन-सहन, रीति-रिबाज आदि सब किछु अलग-अलग छैक। शिक्षा आ साक्षरताक अवस्था संग भाषाक ज्ञान, व्याकरण बोध, विषय संसर्ग, रुचि – ई सब किछु हमेशा सँ पूर्वकालहि सँ अलग-अलग देखल गेलैक अछि। पूर्वकाल मे सामन्ती युग, जमीन्दारी प्रथा, कइएक प्रकारक विभेद, छुआछुत – अस्पृश्यता, श्रम विभाजनक कारण आपस मे कय तरहक भावनात्मक आ व्यवहारिक भेदभाव – एकर प्रभाव समाज मे अलग-अलग वर्ग पर पड़बे केलैक। आधुनिक शिक्षा पद्धति आ सामाजिक संरचनाक संग राज्य संचालन पद्धति मे जातीयताक ओना त कोनो सीमा वा बन्धन नहि छैक, लेकिन राजनीतिक सोच आ विगत केर पछुआपन एवं विभेद केँ संबोधन करबाक लेल ठाढ कयल गेल एक विशेष तरहक आरक्षण आ सामाजिक न्याय केर कारण आइयो जाति-पाति आ अन्तर-सामुदायिक बात-विचार मिथिला समाज मे चरम पर छैक। भाषा आ बोलीक अन्तर केँ एहि राजनीति केर शिकार बनाकय मैथिली केँ खन्डित करबाक कुत्सित कार्य भऽ रहलैक अछि, ई कहय मे कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत।
सब सँ दुखद बात ई छैक जे एखन धरि प्राथमिक शिक्षा मे मैथिली भाषा अनिवार्य रूप सँ कतहु आ केकरहु लेल लागू नहि भऽ सकलैक अछि। भारतक संविधानक आठम अनुसूचीक भाषा रहितो, संविधानक मौलिक अधिकार रहितो, आइ धरि मैथिलीभाषाभाषीक धियापुता केँ प्राथमिक शिक्षा निज मातृभाषाक माध्यम सँ पर्यन्त नहि भेटलैक अछि। औपचारिक पढाई कएने बिना सबटा ओकालति अनठेकानी पंचे डेढ सय केर तर्ज पर करब स्वयं मे एकटा सवाल त छोड़िते छैक, ईहो संकेत करैत छैक जे मिथिला मे एहि तरहें जाति-पाँति केर नाम लय केँ भाषा केँ खन्डित करबाक दुष्परिणाम निकट भविष्य मे केहेन पड़तैक। भारत सनक स्थापित संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र मे जे-जे राज्य एहि तरहें जातीय आधार पर विखन्डित भेल, आखिर ओकर विकास कतेक भऽ सकलैक एहि ७ दशक मे ओ अध्ययन करय योग्य आ समाज केर हरेक व्यक्ति-वर्ग लेल बुझय योग्य विषय थिकैक। तखन फेर नेपाल मे एकर पुनरावृत्ति सँ केकरा लाभ भेटतैक? के छियैक ओ तत्त्व जे मैथिलीक वर्चस्व सँ एना भाषा आयोगक पूर्णकालिकता सँ पूर्वहि एना घबरा उठल अछि जे मैथिल-मैथिल केँ बोलीक विविधताक नाम पर लड़ाकय अपन गोटी लाल करय चाहि रहल अछि? स्पष्ट छैक जे नेपाल मे जेकरा संघीयता बेमोने आनय पड़लैक अछि, जे बहुभाषा-बहुधर्म-बहुसंस्कृति केर सम्मानक मात्र ढोंग करैत अछि आर कोहुना एकल भाषा नीति केँ समूचा नेपाल मे हावी बनाबय चाहि रहल अछि, शंकाक घेरा मे वैह पड़ैत अछि। ओकर लय-लय मे हय-हय करय पहुँचि जाइत अछि अदूरदर्शी आ निरक्षर समाज – मिथिलाक पिछड़ा वर्ग आ दलित केँ एहि भुमड़ी मे फँसायल जा रहल अछि।
मैथिली साहित्यकार सभाक सभापाल प्रेम विदेह सँ हम जिज्ञासा कयल – मैथिली भाषाक सहजीकरण-सरलीकरण लेल कोनो आधिकारिक डेग मैथिली साहित्यकार सभा उठौलक अछि एखन धरि? यदि हँ त एहि लेल गठित समितिक सम्बन्ध व समितिक सदस्यक योग्यता सम्बन्धी किछु जनतब हमरा उपलब्ध कराकय अनुगृहीत करू।
श्री प्रेम विदेह कहलथि, “अखनधरि योजना मात्र बनल अछि। लकडाउन आ परिस्थिति अनुकूल भेला बाद वरिष्ठ साहित्यकार – विद्वान क बैसार क काज आगा बढाओल जाएत।”
हम – अच्छा! दोसर जिज्ञासा – कि पहिने सँ उपलब्ध शब्दकोश केर अध्ययन कोनो शोधकर्ता द्वारा अथवा भाषाविद द्वारा कहियो भेल? सरलीकरण आ सहजीकरण लेल काज करब जरूरी अछि से कोन आधार पर निर्णय लेल गेल?
श्री प्रेम विदेह ललन – हम अपन संस्थाद्वारा जे ९ वर्ष सँ मैथिली भाषा आ विद्यालय मे प्राथमिक तहमे पाठ्यपुस्तक लागु करबाक अभियान चलबैत आएल छी तकर जमिनी अनुभव। धनुषा जिल्ला मे जिल्ला स्तरीय शैक्षिक विमर्श, महोत्तरी, धनुषा, सिरहा जिल्ला शिक्षा कार्यालय मे ज्ञापन पत्र। कतेको शिक्षक, प्र.अ. के शिकाइत। सिरहा कौलेजक चीफ सहित कहलनि, मैथिली पाठ्यपुस्तकक भाषा कठिनाह अछि – जनभाषा नै छै। साहित्यकार सभा के कार्यक्रम मे सामाजिक विकास मन्त्रीयो यैह बात कहलनि, मैथिली के सरल बनाओल जाए। वरिष्ठ साहित्यकार भ्रमर जी बार बार मुद्दा उठाइए रहल छथि। प्रसिद्ध भाषाविद् डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव आंगनक सम्पादकीयमे प्रष्ट रुप सँ मैथिलीक सरलता आ जनभाषाक बात उठौने छथि। साहित्यकार रोशन जनकपुरी अपन हिसाब सँ जनभाषाक प्रयोग वर्षो सँ क रहलाह अछि। हमरा-अहाँक लेल खास समस्या नै अछि। जन-समस्या छै। हिन्दी त नेपाली विद्यालयमे पढाइ नै होइछ मुदा हिन्दी पत्र-पत्रिका, किताब आसानी सँ पढि लैए लोक। मैथिली मे अस्सी मनक पानि परि जाइछै। यदि मैथिलीक भविष्य सुरक्षित रखबाक अछि त सरलता परम आवश्यक भ गेल अछि प्रवीण बाबू।
उपरोक्त वक्तव्य मे बहुत रास महत्वपूर्ण पक्ष केँ सोझाँ रखलनि अछि श्री ललन। पक्षकार लोकनिक नाम सहित हुनका लोकनिक पक्ष सेहो रखलनि अछि। हिन्दीक उदाहरण देलनि अछि। स्वयं जे भाषा लिखने छथि तेकरा हमर अपन मैथिली भाषाक उच्चारण अनुसार हिज्जे आदिक कोनो संशोधन-संपादन पर्यन्त हम नहि केने छी। हुनकहि लेखनशैली केँ जहिनाक तहिना अपने सभक बीच राखि देने छी।
दोसर दिश हम स्मृति मे अनैत छी संस्कृतक सरलीकरणक बात। संस्कृतहु मे कतेको सामान्य शब्द जे हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी, पंजाबी, बंगाली आदि भाषा मे प्रयोग मे अछि तेकरा सहजहि स्वीकार करैत भाषा लेखन-वाचन केर बात सरलीकरणक तौर पर प्रयोग करबाक सिफारिश कयल जेबाक बात विद्वान् डा. पंकज मिश्र केर उक्ति केँ मोन पाड़ि रहल छी। तहिना हिन्दी मे सेहो चन्द्रविन्दु, अनुस्वार, संयुक्ताक्षर संग आंचलिक भाषिका-शब्दक प्रयोग केर बात मित्र संजीव सिन्हा सँ सुनल मोन पाड़य चाहब। फणीश्वर नाथ रेणु केर हिन्दी उपन्यासक लोकप्रियता आंचलिक शब्दक वृहत प्रयोग लेल भेल सेहो मोन पाड़य चाहब। हिन्दी फिल्म मे बिहारी टोनक हिन्दीक प्रयोग बिहारक बहुल्य लोक केर रंजन सँ आब सामान्य फैशन बनि जेबाक बात सेहो एतहि मोन पाड़य चाहब। मुदा ई सब बात प्रयोग करैत-करैत स्वतः एकटा स्वरूप बनि जेबाक बात कठोर सत्य थिक जे मैथिली मे कहिया सँ आ केना-केना के-के करत एहि दिशा मे सभक ध्यानाकर्षण करय चाहब। राजविराज केर ओ मैथिली सम्मेलन जाहि मे कहल गेल छल ‘जएह बजैत छी सएह मैथिली’ – एकरा व्यवहार मे, लेखन मे, वाचन मे आर आब आगामी प्रदेश विधान मे लागू करबाक वातावरण लेल केना आ के सब काज करत ताहि दिशा मे सेहो सभक ध्यानाकर्षण चाहैत छी। करत-करत अभ्यास, जड़मत होत सुजान! करिते-करिते हेतैक। मैथिल केँ तोड़ियौ नहि, मैथिली एक्के थिकैक आ सभक बोलीक शब्द बाकायदा विद्वान् शब्दकोशकार डा. योगेन्द्र प्रसाद यादवक शब्दकोश मे समेटल छैक। पढाई त शुरू करबाउ! देखियौ न फेर आगाँ कि सब होइत छैक!
हरिः हरः!!