कविता
– भारती झा
दहेज प्रथा
बिका गेल माय बापक घर
तेँ बेटी के घर बसल,
केहन अभागल प्रथा अछि ई,
दहेजप्रथा जे कतेको घर केँ
निगलि चुकल।
यदि बेटी किछु नै कय पायल
तेँ बेटा घर बचा लितय
जखन ओकर बोली लगैत रहै
तखन अपन शिक्षा के
महत्व देखा दितय।
ख़ालिये हाथ आयब हम
एतबा कहि हिम्मत देखा दितय
काश! बेटा घर बचा लितय।
गर्दनि झुका स्वीकृति ने दितय
माथक पाग बचा लितय,
दहेजक विरूद्ध ठाढ़ भ ओ
ई कलंक मिटा दितय।
(अपन कर्तव्य निभा लितय।)
पढ़ल लिखल सुशील कन्या लेब
बस हाथ जोड़ि ओ कहि दितय,
तहन की कोनो बेटी के बाप
माथ पर हाथ ल चिंतित रहितय?
मात्र सिनुरक गद्दी ल आयब
और बेटी वियाहि ल जायब,
एतबा कहि हिम्मत त देखा दितय,
काश! बेटा घर केँ बचा लितय।
२. कतय गेल मिथिलाक दलान
कतय गेल ओ मिथिलाक दलान,
कहियो रहैत छलथि जतय बाबा कक्का शोभायमान।
कतय गेल ओ खेत खरिहान,
कतय गेल ओ गोबर माटि,
कतय गेल ओ चौठीचान,
कतय गेल ओ पान मखान,
कतय गेल ओ विध व्यवहार,
कतय गेल ओ पाबनि तिहार,
कतय गेल ओ पाहुन-परक,
कतय गेल ओ आदर सत्कार,
कतय गेली ओ दादी नानी,
जे सुनबै छल खिस्सा पिहानी,
कतय गेल ओ दर-दलान ,
कतय गेल ओ बुढ़ जुआन,
हेरा गेल आब ओ मिथिलाक दलान,
भरि दिन चलै छल जतय चाह संग पान,
गप्प सरक्का हँसी ठहक्का और चलै छल तासक पत्ता,
हेरा गेल ओ मिथिलाक दलान,
कतय गेल ओ नबका धान,
बिसैर गेलौं सब कियो आब लबान,
सुन्न लगैय बारी- झारी,
कतय गेल तिलकोरक पात,
कमलक फूल त देखियो लै छी,
मुदा हेरा गेल पुरइनिक पात,
कतय गेल ओ पोरोक साग,
कतय गेल सजमैनक मचान,
पान मखान त भेट जाइ यऽ,
मुदा हेरा गेल इचना माँछ,
कतय गेल ओ ढक-बखारी,
कतय गेल ओ घैल घैलसार,
कतय गेल ओ आँगन धुरखुड़,
कतय गेल माटिक चिनबार,
सब के हाथ में आएल मोबाईल,
भरि दिन ओहि में लागल,
रहय जेठ-श्रेष्ठक जे महत्ता,
बिसैर गेल से सब सम्मान,
फ़ेसबुक व्हाट्सएप खेलैत रहैय,
बुढ़ पुरान केँ कहय अकान,
कतय हेरायल ई सब अस्मिता
कतय गेल मिथिलाक दलान?