सावनक संस्मरण – दहेज मुक्त मिथिला पर आयोजित लेखनीक धार केर चयनित कथा “हमर मधुश्रावणी”

सावनक संस्मरण – दहेज मुक्त मिथिला पर आयोजित लेखनीक धार प्रतियोगिता लेल तेसर चयनित कथा

हमर मधुश्रावणी

– प्रियम्वदा कुमारी

बात आय से पाँच बरख पहिने, 2015 के अछि। बियाहक बाद हम्मर पहिल सावन छल। मधुश्रावणी पूजय लेल हम अप्पन नैहर आयल रही। घर मे मामी, मौसी, दीदी सभक उपस्थिति सँ खूब चहल-पहल छल। हमरा अनून नहि रहल होइत अछि ई घर मे सबकेँ बुझल छलैक मुदा हमरा सासुरो मे नून नय बाड़ल जायत छैक, साँझ होइ सँ पहिने एक बेर सेंधा नून में खाना खायल जायत अछि से जानिकय हम बहुत खुशी छलहुँ जे बिना कुनो दिक्कत केँ 14 दिनक पाबनि कय लेब।
 
पंचमी केँ भरि दिनक अनूना छल। संग बैसैतकाल कनी-मनी खीर खेलहुँ। दोसर दिनका पूजा के बाद हम्मर माँ हमरा लेल भात, दालि, तीमन, तरकारी, तरूआ सब बनेलथि, एहि बात सँ अन्जान कि जे ढेपा केँ ओ सेंधा नून बूझि सब चीज मे दय रहल छथि ओ असल मे फिटकिरी अछि। दू दिनक अनूना के बाद हम खाय लेल बैसलहुँ, पहिल कौर मुंह मे लैत मुंह तीत-माहूर भऽ गेल। तमसा कय माँ केँ कहलौं, तोरा एहने खाना बनौअल भेलौक? नहि नून के पता, नहि मिर्चाइ के? सब केँ भेलन्हि जे दू दिन सँ नून नहि खा रहल छल तय सँ एना लागि रहल होयत। माँ कहलक दू-चारि कौर खाहीन न, अपने स्वाद बुझेतौक। जहिना तहिना दू कौर खेलौं मुदा नीक नहि लागल। माँ केँ कहलौ कनी ऊपरे सँ दालि तरकारी सब मे नून दऽ दे। फेर सँ ओ ओहि पन्नी मे सँ नून बुझि फिटकीरी देने जाय आ हम्मर खाना औरो कसानि भेल जाय।
 
अंत मे हमरा सँ नहि रहल गेल। तामसे – भूखे, नोरे- झोरे हम उठि गेलौं आ घर जा कय केबार लगाकय सुति गेलौं। एम्हर सब हम्मर एहन व्यवहार देखि क्षुब्ध छल। अनायास हम्मर मौसी केँ कि फुरेलन्हि, हमरा माँ केँ कहलनि ला त खाना देखियै खा के। मुंह मे कौर लय के साथ उगलि देलक आ हम्मर माँ के पूछलनि कोन नून देलहीन खाना में? माँ भनसा घर सँ फिटकिरी बला पन्नी आनि देखेलनि। सब ओइ फिटकिरी केर ढेपा सँ कनी- कनी फिटकिरी ल खेलक तहन इ बात उप्पर भेल जे ओ सेंधा नून नहि फिटकिरी अछि।
 
असल में मधुश्रावणी के दू दिन पहिने माँ दोकान सँ सेंधा नून कीनय गेल रहथिन, मुदा दोकानदार गलती सँ फिटकिरी दय देलकनि। ई सब गप्प होयत-होयत साँझि पड़ि गेल तय सँ आब खाना खाय केँ त कोनो प्रश्ने नहि छल। काल्हि भेने माँ सब काज-राज छोड़ि बजार गेल आ दोकान बला क’ दस टा बात कहलक। ओहो अप्पन गलती मानि फिटकिरी क बदला सेंधा निमक देलक। तेसर दिनक पूजा के बाद हमरा खाना नसीब भेल। ओहि बेरक सावन हमरा आजीवन मोन रहत।