समीक्षा
– प्रवीण नारायण चौधरी
अधिकार
सतरहम अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन (स्मारिका)
गत वर्ष २०१९ केर २२ आ २३ दिसम्बर यानि विक्रम संवत साल २०७६ केर पुस मास केर ६ आ ७ गते नेपालक ऐतिहासिक व औद्योगिक नगरी विराटनगर मे आयोजित भेल छल १७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन। एहि सम्मेलनक आयोजन ‘मैथिली एसोसिएशन नेपाल, विराटनगर’ द्वारा कयल गेल छल। परञ्च ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन’ स्वयं मे एक संस्था सेहो रहि आयल अछि, जेकर अध्यक्ष सुजान विद्वान् आ लोकसाहित्यक पुरोधा स्रष्टा डा. महेन्द्र नारायण राम छथि, ओतहि महासचिव मैथिली-मिथिलाक दीर्घकाल सँ चलैत आबि रहल विभिन्न आन्दोलनक जानल-मानल नेता डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ छथि तथा नेपाल केर प्रभारी मैथिली भाषा-साहित्य संग संचार व राजनीतिक अधिकार प्राप्तिक वास्ते संचालित विभिन्न अभियानक सारथि डा. रामभरोस कापड़ि भ्रमर छथि। हमर सौभाग्य जे १७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनक संयोजक बनिकय यथासंभव यत्नपूर्वक आयोजन केँ सम्पन्न कयल। परञ्च एहि सम्मेलनक चर्चा नहि केवल समूचा नेपाल मे बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय जगत मे जाहि तरहें भेल ताहि समस्त सफलताक सारा श्रेय आयोजनक पल-पल आ क्षण-क्षण केँ सम्हारनिहार जानकीक वरदपुत्र लोकनि – तेजलाल कर्ण, पंकज वर्मा, कुमोद झा, वीरेन्द्र झा, ओमप्रकाश साह, वसुन्धरा झा, वन्दना चौधरी, राजेश झा, अमर झा, भास्कर चौधरी, मंजू मंडल, पूनम सिंह, प्रीति झा, रंजू झा, ललन झा, शंभू कुमार सहनी, रवि स्वर्णकार, सनातन मंडल, आदि अनेकानेक कर्मवीर लोकनिक सद्प्रयास सँ संभव भेल।
एहि सम्मेलन मे ‘अधिकार’ नाम सँ संस्थापन पक्ष (अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन संस्था) द्वारा एक स्मारिकाक प्रकाशन-विमोचन सेहो भेल छल। एकर संपादनक कार्य स्वयं संस्थाक अध्यक्ष विद्वान् डा. महेन्द्र नारायण राम कयलनि, उप-संपादक बनबाक अवसर हमरो भेटल। प्रकाशक डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ स्वयं छलाह। एकर मुद्रक नवारम्भ, मधुबनी छल। कवर सहित ७० पृष्ठ केर एहि स्मारिका मे विद्वान् एवं राजनीतिक वरिष्ठजन डा. रामलषण राम ‘रमण’ केर शुभकामना सन्देशक संग मैथिली अकादमीक पूर्व अध्यक्ष कमलाकान्त झा, विद्यापति सेवा संस्थानक उपाध्यक्ष एवं वयोवृद्ध मैथिली अभियन्ता डा. बुचरू पासवान केर सन्देश आयल जे सम्मेलनक सफलताक कामना संग कार्यकर्ताक उत्साहवर्धन संग भविष्य मे सम्मेलनक दशा-दिशा आरो नीक हुअय ताहि प्रति सार्थक भूमिका निभेलक। नेपालक तरफ सँ कतिपय शुभकामना सन्देश समयाभाव मे नहि समेटल जा सकल, एकर अफसोस हमरा सब दिन रहत। कारण अध्यक्ष सह संपादक डा. राम बेर-बेर तकाता कयलनि, लेकिन संयोजनक कार्यभार मे हम तेनाकय ओझरायल रहलहुँ जे नेपालक तरफ सँ शुभकामना सन्देश एहि स्मारिका लेल नहि लय सकलहुँ। हँ, तखन नेपाल मे अलगहि सँ स्मारिका सदृश ‘मिथिला टाइम्स विशेषांक’ केर प्रकाशनक जिम्मेदारी वरिष्ठ सलाहकार-सहयोगी विद्वान् मार्गदर्शक रामरिझन यादव पर छलन्हि जाहि मे नेपालक लेखक व राजनेता लोकनिक शुभकामना सन्देश प्रचूर मात्रा मे सम्मेलन लेल आयल अछि।
स्मारिकाक नामकरण सेहो एकटा कठिन चुनौती छल। काफी रास नाम प्रस्तावित भेल। तखन प्रवीणक सौभाग्य, हमरे प्रस्ताव ‘अधिकार’ पर अन्तिम मोहर विद्वत् विमर्शकार लोकनि एवं अध्यक्ष-सह-संपादक डा. राम लगौलनि। संयोग कतेक नीक छैक जे ‘अधिकार’ नामकरण केर औचित्य केँ ‘प्रकाशकीय-सह-महासचिवीय प्रतिवेदन’ अन्तर्गत बड़ा विलक्षण ढंग सँ स्पष्ट कएने छथि डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’। सम्मेलनक विगत केर आयोजनक संछिप्त खाका खिंचैत २२ आ २३ दिसम्बर जाहि दुइ दिन मे क्रमशः भारतीय संसदक निचला आ ऊपरी सदन मे मैथिली केँ अधिकारसम्पन्न बनबैत भारतक संविधानक आठम् अनुसूची मे सम्मानित स्थान देल गेल, ताहि सब पर प्रकाशकीय-सह-महासचिवीय प्रतिवेदन मे स्पष्ट उल्लेख स्मारिकाक पाठक केँ निश्चित आह्लादित करतनि, संगहि अपन भाषा-संस्कृति केर भविष्य लेल साकांक्ष बनि आगाँ ओ ऊर्जावान् कार्यकर्ता सेहो बनता ई प्रेरणा देतनि। संयोजकीय स्तम्भ मे हमर सन्देश ओहिना सामान्य ढंगक शिकायत, असन्तोष, खौंझाहट आदिक संग अछि – जे वास्तव मे हमर मनोदशा रहल एक संयोजक-व्यवस्थापकक रूप मे… जेना जे हमरा अनुभव भेल से लिख देल। संपादकीय केर सामग्री पूर्ण साहित्यिक आ विशिष्ट विवेचनाक योग्य अछि। पाठक लोकनि केँ आत्मगौरव केर बोध हेतनि जे मैथिली कोन तरहें सभक लेल सर्वोपरि आ सदिखन अनुकरणीय अछि। धन्यवाद संपादक डा. राम जे अपन सदिखनक विद्वता केँ एतहु निरन्तरता मे रखैत सुखद भविष्यक परिकल्पना रखलनि अछि।
‘मैथिली आन्दोलन’ केर झलक मात्र लिखलनि अछि प्रसिद्ध स्रष्टा एवं आकाशवाणी दरभंगाक संचारकर्मी अग्रज मणिकान्त झा – सम्पूर्ण लेख पुनः लिखथि, जेना ओ गछने छथि जे ‘विस्तार देब एखन बाँकी अछि’। मैथिली भाषा कोना अष्टम् अनुसूची मे पहुँचल ताहि पर कतेको लोक केँ अपन पीठ अपनहि सँ ठोकैत देखल, एहेन स्थिति मे एकटा ठोस आ सार्थक लेख केर बड पैघ आवश्यकता छैक। सिर्फ खरखाँही लूटय लेल नाम केँ समेटनाय ओहि लेख केर लक्ष्य एकदम नहि हो, बल्कि सब तरहक योगदानक तारतम्य जोड़िकय संस्थागत, व्यक्तिगत, विद्वत आ विशेष भूमिका निभेनिहार गैर-मैथिल भाषा वैज्ञानिक व परामर्शदाता लोकनिक संग संसदक पटल मे मैथिली प्रति सद्भावना रखनिहारक चर्चा सेहो ओहि लेख मे आबय, ई हमर आन्तरिक आकांक्षा अछि जे आरो लोक केँ निश्चित प्रभावित करतनि आर एकटा ठोस दस्तावेज भविष्यक पीढी लेल उपलब्ध कराओत।
हमरा सुप्रसिद्ध समीक्षक-आलोचक ‘रमेश’ केर आलोचना एवं विवेचनाक लेख ‘मैथिलीक विलुप्तिक भविष्यवाणीक औचित्य’ बहुत प्रभावित कयलक। डा. गोविन्द झा द्वारा कयल गेल भविष्यवाणी ऊपर एहेन शानदार विवेचना पढिकय बड़ा आह्लादित भेलहुँ। संगहि विगत १० वर्ष सँ अपन मातृभाषाक सेवा मे समय खर्च करैत आबि रहल छी, ताहि लेल सेहो एकटा सम्बल भेल अछि ई आलेख। निराशा केँ आशा मे परिणति भेटब सब दिन नीक लागल अछि। मानव लेल यैह आवश्यक छैक। ताहि जिम्मेदारी केँ बहुत सुन्दर ढंग सँ निभेलनि अछि आदरणीय रमेश। हमरो सब केँ लेखनकार्य मे सब दिन प्रोत्साहन दैत रहैत छथि, कमी-कमजोरी केँ दूर करबाक लेल हुनकर संछिप्त सलाह सेहो बहुत कारगर होइत अछि। तखन ‘अधिकार’ मार्फत एतेक महत्वपूर्ण सन्देश केँ आम पाठक सोझाँ आनल गेल अछि, ई असाधारण बात भेल। एहि लेख केर अन्तिम भाग मे निष्कर्ष स्वतः प्रमाण दैत अछि – “तेँ निराशा कोनो समाधान नहि थिक। सकारात्मक सोच, समस्याक समाधान निकालैत अछि। मिथिलाक गाममे निवास करैत, आमजनक कंठमे, जीह पर, मैथिलीकेँ, कोनो तेहेन खतरा नहि छैक। प्राध्यापकीय, अभिजात्य, शास्त्रीय मैथिलीक संग जीर्ण-शीर्ण प्रतिक्रियावादी, पुरातन-पंथी साहित्यिक संवर्गकेँ जरूरे खतरा छैक।”
नेपाल दिश सँ करुणा झा द्वारा दुइ गोट लेख आयल छल, हम दुनू पठा देने रही। एकटा भूलवश हमरा नाम सँ प्रकाशित भेल अछि। उचित समन्वय नहि भऽ पेबाक कारण एहि तरहक भूल भेल अछि। एकरा सुधार कयल जायत। हुनक एक लेख ‘सामाजिक सद्भाव, समानता आ ब्राह्मणवादीक विरूद्ध प्रकृतिक अनुपम पावनिः छठि’ त हुनकहि नामे प्रकाशित भेल, लेकिन दोसर लेख ‘मिथिला सन इतिहास ककर’ ई हमरा नामे प्रकाशित भऽ गेल अछि। आगाँक संस्करण मे एकरा उचित सुधार करबाक जरूरति अछि। तहिना एकटा आर बड पैघ भूल भेल अछि सुप्रसिद्ध साहित्यकार-इतिहासकार राम नारायण देव केर नाम ‘राम नारायण यादव’ प्रिन्ट कयल गेल अछि। एहि तरहक त्रुटि लेल हम विशेष रूप सँ क्षमाप्रार्थी छी कारण एक बेर समय निकालिकय पीडीएफ प्रूफ देखबाक जरूरति छल, जे हम नहि कय सकलहुँ। जीवन मे एतेक पैघ स्ट्रेस कहियो नहि भेल छल जतेक एहि कार्यक्रमक संयोजन कार्य मे पूरे १ वर्ष हमरा संग भेल। आइ भेद खोलि रहल छी जे पैछला साल २-२ बेर भयानक एक्सीडेन्ट मे सेहो पड़ि गेल छलहुँ…. लेकिन जानकी जी प्राणक रक्षा कयलनि। ठेहुन आ बायाँ हाथक कन्हाक जोड़ मे एखनहुँ दर्द सँ ओ दिन सब याद अबैत अछि त देह सिहरैत अछि। खैर… राम नारायण देव सर केर ‘प्राचीन मोरंग राज्यमे मैथिली साहित्य आ सांस्कृतिक प्रभाव’ लेख प्रकाशित भेल अछि। विराटनगर मोरंग केर मुख्यालय सँ आब प्रदेश १ केर राजधानी तक बनि गेल अछि। मैथिलीक अपन विलक्षण इतिहास रहलैक अछि एतय। आर हमर विशेष अनुरोध पर आदरणीय स्रष्टा देव ई लेख लिखलनि, संगहि एहि विषय पर विद्वत विमर्श सेहो राखल गेल छल सम्मेलन मे। मोरंग राजा सलहेस, दीना-भद्री, मोरंगराज आदिक ऐतिहासिक वृत्तांतक संग आरो महत्वपूर्ण प्राचीन अभिलेख सभक जिकिर करैत अछि जाहि सँ आगामी संतति केँ अपन इतिहास ज्ञात होयत, आत्मगौरवक बोध होयत। आजुक अकलबेरा मे अपनहि इतिहास सँ वंचित अपन धियापुता लेल ई सब नव प्राण देत।
‘बौरहवाक डम-डम डमरूक स्वर संग सतत आनन्दे रहताह मधुकर’ एहि शीर्षक सँ ‘पंडित मधुकांत झा मधुकर’ केर साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक अवदान पर प्रकाश देलनि अछि हुनक दौहित्र पंडित कुमुदानन्द झा ‘प्रियवर’। विदित हो जे अभिनव विद्यापति समान जनप्रिय कवि मधुकर केँ मरणोपरान्त हमरा लोकनि एहि सम्मेलन सँ ‘मिथिला रत्न’ केर सम्मान सेहो कएने रही। आर, स्मारिका मे हुनकर जीवनोपरान्त योगदानक चर्चा होयब अत्यन्त सान्दर्भिक कार्य भेल। सम्मेलन मे सेहो समस्त सम्मानित स्रष्टाक ऊपर किनको न किनको सम्बोधन करबाक छलन्हि जेकर चर्चाक खूब सराहना सेहो भेल छल। १७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन मे सम्मानक दायरा केँ बढायल गेल अछि, कार्यक्रमक प्रारूप केँ सेहो एकटा निश्चित दिशा देबाक प्रयास कयल गेल अछि। एहि तरहें ‘अधिकार’ स्मारिका सेहो प्रासंगिक आ बहुउपयोगी बनल, ई हम कहि सकैत छी। एकर मांग भविष्य मे बहुतो लोक करता, सेहो विश्वास अछि।
‘अरिपन’ – विमल जी मिश्र केर ई आलेख सेहो स्मारिका मे स्थान प्राप्त कयलक। मिथिलाक लोककला मे ‘लिखिया’ केर प्रयोग पर आधारित एहि लेख सँ अरिपनक सान्दर्भिकता पर विशद जानकारी भेटैत अछि। ललित कुमार झा केर लेख ‘मैथिलीक मरुद्यान’ बहुत सहज शैली मे भविष्यक अभियान पर प्रकाश दैत अछि। हमरा सब सन भाषा-संस्कृति अभियानी लेल मैथिलीक मरुस्थल, मैथिलीक मरुद्यान, मैथिलीक उपवन, मैथिलीक वन एवं मैथिलीक राष्ट्रीय उद्यान केर टर्म मे अपन लक्ष्य सहजहि ज्ञात भेल जे आगाँ केना कि-कि करबाक अछि। हृदय सँ आभार एहि तरहक आलेख लेल। ‘अधिकार’ स्मारिका हमरा सब सन लाखों अभियानी लेल मार्गदर्शक केर रूप मे उपयोगी अछि। विशेष रूप सँ हरेक लेख केर अन्त मे यथोचित स्थान पर भारत रत्न (पूर्व प्रधानमंत्री) अटल बिहारी वाजपेयी जी व मैथिल अभियानी लोकनिक विभिन्न तस्वीर केँ लगायब, एहि स्मारिका केँ संग्रहणीय बना देलक अछि। हम विश्वस्त छी जे एकर सहयोग शुल्क आ डाक खर्च दुनू भुगतान कय केँ हजारों लोक ई स्मारिका अपन घर मे पढबाक आ संग्रह करय लेल मंगौता। एहि तरहक उपाय सेहो कयल जाय ई अनुरोध करय चाहब।
आगू बढैत छी – परमादरणीय आ परम विद्वान् गीतकार मात्र नहि बल्कि विचारक, लेखक, समीक्षक, साहित्यकार आ हर तरहें एक अनुकरणीय महान व्यक्तित्व ‘सियाराम झा सरस’ केर लेख – “मैथिल संस्कृतिक अलंकारः ढोलिया-बजनियाँ” मे मैथिल जीवन परम्परा आर ताहि मे चमार जातिक विशेषता केँ बखूबी विशद वर्णन कयलनि अछि। ढोलिया-बजनियाँक एक-एक अदाकारक भूमिका आ मैथिल जीवनशैली मे ओकर आवश्यकता-उपयोगिता-विशेषता केँ वर्णन करैत ई लेख सेहो नहि मात्र हमरा सब केँ नव-नव जानकारी दैत अछि बल्कि भविष्यक पीढी लेल आ विशेष रूप सँ मुमुक्षु जिज्ञासू लेल बड पैघ उपयोगी सिद्ध होयत। स्मृति मे अबैत अछि सियाराम झा सरस केर पूर्वक किछु विशेष आलेख, सीता जी प्रति मैथिली साहित्य व लोकजीवन मे केहेन भाव रहल अछि, ताहि पर अनेकन गीतक चर्चाक संग ओ जे वर्णन कएने छलाह दिल्ली मे से अविस्मरणीय अछि। तहिना मलंगिया आर्ट्स केर शोध-पत्रिका मैथिली लोक रंग मे सेहो हुनकर आलेख सब पढने रही जे अपन मिथिलाक लोकपरम्पराक महत्ता केँ विलक्षण ढंग सँ वर्णन कएने छल। अधिकार मे सरसजीक ई आलेख मीलक पाथर सिद्ध होयत से विश्वास अछि।
फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’ केर एक आलेख ‘हमर भाषा राष्ट्रीय भाषा’ सेहो एहि स्मारिका मे समेटल गेल अछि। संभवतः ई आलेख बहुत पुरान अछि। कारण संविधान केर आठम अनुसूची मे मैथिलीक स्थान भेटलाक पाँच वर्ष बितलाक बादहु उल्लेख्य अधिकार नहि भेटबाक प्रसंग केर जिकिर कएने छथि। लेकिन ‘अधिकार’ नामक स्मारिका लेल ई आइ १७ वर्ष बितलाक बादहु ओतबे प्रासंगिक अछि। हम मैथिलीभाषाभाषी लेल आत्मनिरीक्षण करय योग्य विषय अछि। संपादक महोदयक सिलेक्शन केँ धन्यवाद! तदोपरान्त हमरा नाम सँ प्रकाशित भेल एक लेख ‘मिथिला सन इतिहास ककर’ – ई हमर आलेख नहि थिक, किछु दिन बहुत सन्देह मे पड़ि गेल रही… बाद मे तकैत-तकैत ई भेटल जे हमरा ईमेल द्वारा श्रीमती करुणा झा पठौने रहथि जे हम प्रकाशक नवारम्भ धरि फोर्वार्ड कय देने रही। एहि आलेख मे मिथिलाक ऐतिहासिकताक विलक्षण महिमामंडन पद्यशैली मे कयल गेल अछि, रचनाकार केँ नमन!
विष्णुदेव झा ‘विकल’ केर रचना ‘कुम्भ-पर्व’ मे कुम्भ मेलाक महिमा केँ मैथिली मे लिखल गेल अछि। आध्यात्मिक आ व्यवहारिक पक्ष पर प्रकाश देल गेल अछि। प्रो. चन्द्रमोहन झा पड़वा केर दुइ कविता ‘जय जय मिथिला – जय जय नेपाल’ एवं ‘जय मिथिला’ द्वारा नेपाल-भारत केर मित्रता केँ मिथिला द्वारा कोन तरहें पृष्ठपोषण कयल जाइत रहल अछि सेहो नीक लागल। दिनेश झा केर कविता ‘हम छी आंगन’ मे पति-पत्नीक अभिन्नता केँ खूब सुन्दर ढंग सँ प्रस्तुति आह्लाद बढेलक। तदोपरान्त ‘नेपालक भूमिमे मैथिली पत्रकारिता’ शीर्षक अन्तर्गत सुजीत कुमार झा (जनकपुर) केर आलेख बहुत रोचक लागल। पत्रकारिताक इतिहास केँ २०२५ वि. सं. साल सँ आरम्भ होयबाक तथा सुन्दर झा शास्त्री केँ मोन पाड़बाक संग समग्र स्थिति पर एक नीक दृष्टि भेटल। हालांकि एहि मे कतिपय जानकारी छुटलो अछि, तथापि मोट मे एक नीक फरिछायल दृष्टि सहितक लागल ई आलेख।
‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनक रथ एहि बेर विराटनगरमे रुकल’ – डा. राम भरोस कापड़ि ‘भ्रमर’ केर एहि लेख मे सम्मेलनक यात्रा दिल्ली सँ आरम्भ भऽ कतय-कतय कहिया-कहिया कोना-कोना पहुँचल तेकर जिकिर करबाक संग विराटनगर मे हमर संयोजन मे होयवला आयोजन धरि पहुँचल अछि। एहि आलेखक संग डा. भ्रमर हमरा सब आयोजनकर्ता लेल एकटा दृष्टि रखने रहथि, संभवतः ओहि दृष्टि केँ हम सब जीवन्त राखि सकलहुँ। एहि पर समीक्षा पुनः वैह करथि ताहि लेल अनुरोध करबनि। हुनकर मार्गदर्शन बिना हम असगर कोनो काज कहियो नहि कय सकैत छलहुँ, आर हुनकर अनुभवक लाभ हमरा भेटल। संयोजन मे सेहो महत्वपूर्ण सहयोग ओ निरन्तर कयलनि। हृदय सँ आभारी छी आर जीवन मे एहेन मार्गदर्शक लोकनि केँ पाबि हम कृत्य-कृत्य भेल छी।
‘हस्तशिल्पः सम्भावना केँ प्रोत्साहन’ शीर्षक मे प्रो. महेन्द्र लाल कर्ण द्वारा सुन्दर आलेख ‘अधिकार’ स्मारिकाक बहुउपयोगी बनेबा मे महत्वपूर्ण भूमिका निभेलक अछि। एहि आलेख मार्फत हस्तकला प्रति नीक प्रेरणाक संचरण कयल गेल अछि। मिथिलाक कलाकृतिक मांग विश्व भरि मे बनि रहल अछि। सिक्की सँ बनल मौनी-पौती हो अथवा चित्रकला कोरल कपड़ाक इन्टेरियर डेकोरेशन – बहुत रास सम्भावना अछि आर आजुक अर्थयुग मे एकर उपयोगिता बेसी सँ बेसी लोक उठबथि, यैह लक्ष्य अछि एहि आलेख केर। बहुत बहुत आभार! केवल थोथा गपबाजी सँ ऊपर आर्थिक गतिविधि केँ गतिशीलता देबाक दिशा मे सोचैत अधिकार स्मारिका आम पाठक द्वारा खूब सराहल जायत, ई विश्वास अछि।
विद्वान् भाषाविद् डा. रामचैतन्य धीरज केर आलेख ‘यात्रा विचारः एक दृष्टि’ मे भाषा सँ संस्कृतिक सब विन्दु धरिक चर्चा काफी उच्च महत्वक लागल। मैथिली भाषाक वर्तमान विमर्श केँ अपना ढंग सँ फरिछेबाक प्रयास कयलक अछि ई आलेख। भाषाक मानक रूप, भाषाक सहजीकरण, भाषा आ बोलीक बीच समन्वय करैत लेखन – एहि आलेख द्वारा स्थिति केँ सामान्य करबाक प्रयास भेल हमरा बुझायल।
“अधिकार” स्मारिकाक सब सँ खास बात यैह छल जे विगत मे भेल १६ गोट अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनक इतिहास केँ दस्तावेजीकरण करय। एहि मे हम सब पूर्ण सफल नहि भेलहुँ। आंशिक सफलता मात्र प्राप्त भेल। भऽ सकैत छैक जे समयक अनुकूलता नहि भेटल हो…. लेकिन ई सपना अधूरा रहि गेल। आंशिक सफलता एहि लेल कहलहुँ जे डा. बैद्यनाथ चौधरी बैजूक लेख “सोलहम अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन मातृभाषा मैथिलीक लेल सर्वांगीण विकासक सन्देश देलक” – एहि मे प्रसिद्ध साहित्यकार-समालोचक चन्द्रेश संग डा. बैजूक साक्षात्कार प्रकाशित कयल गेल अछि। एहि अन्तर्गत सिर्फ सोलहम सम्मेलनक खाका आबि सकल। १५म आयोजन जे राजविराज मे भेल छल तेकर साक्षी त हमहुँ रही। ओतय सेहो काफी रास क्रान्तिकारी सत्र जेना महिला लोकनिक कवि सम्मेलन मे सहभागिता, विद्वत विमर्शक उत्कर्ष, समावेशिक संस्कृतिक प्रदर्शन, आदि देखने रही। मुम्बई केर ओ विशाल आयोजन, गुआहाटी, दिल्ली, देवघर, जनकपुर, काठमान्डू, व अन्य-अन्य स्थान मे भेल आयोजन पर ई स्मारिका पूर्ण दस्तावेज नहि दय सकल, एकर अफसोस रहत हमरा। एहि लेल सेहो अपने केँ दोष देब जे एहि दिशा मे सजगता नहि राखि पेलहुँ। मुदा भविष्य मे एहि पर कार्य कयल जाय, ई हमर अपील अछि।
जनकपुरधाम, घोषणा-पत्र २०७५ प्रकाशित कयल गेल अछि। ई बहुत महत्वपूर्ण आ दूरगामी प्रभाव रखैत अछि। राजविराज मे सेहो एहि तरहक घोषणापत्र जारी कयल गेल छल। विराटनगर सेहो एहि तरहक घोषणापत्र जारी कयलक। राज्य केर ध्यानाकर्षण संग आम-संचार मे ई घोषणापत्र एकटा माहौल तैयार करैत छैक। एकटा इतिहास ठाढ करैत छैक। ‘अधिकार’ स्मारिका जनकपुरक घोषणापत्र मात्र समेटि सकल। पूर्वहु केर उपलब्धि समेटब आवश्यक छल। अन्त मे, रंगनाथ दिवाकर केर एकांकी ‘महाकविक प्रयाण’ बड़ी रोचकता सँ हम मैथिलीभाषी लेल सन्देश दैत अछि, सती प्रथा व कुमार दासक कथा संग कालीदास-विद्योतमाक प्रसंग केँ देखबैत ई नाटक अधिकार मे महिला अधिकार केर वकालत सेहो कयलक अछि। एहि तरहें एकटा सफल स्मारिका अधिकार जाहि मे जनकपुर सहित अन्य-अन्य आयोजनक रंगीन आ श्याम-श्वेत फोटोक सेहो भरमार अछि। संगहि मुख्य कवर पृष्ट पर विराटनगर केर मुख्य फाटक केर दृश्य संग सम्मेलनक लोगो सँ आकर्षक बनल अछि। संपादक सहित समस्त जुड़ल टीम केँ हमर प्रणाम आ धन्यवाद!!
हरिः हरः!!