Search

पूर्वी नेपाल मे मैथिली भाषा आ संचार अवस्था

पूर्वी नेपाल आ मैथिली संचार

– प्रवीण नारायण चौधरी, विराटनगर, नेपाल।

भूमिकाः

नव नेपाल अर्थात् नया राजनीतिक संरचनाक नेपाल – नया संविधान पर संचालित नेपाल – नव लोकतांत्रिक अवधारणाक नेपाल – संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र नेपाल – तेकर पूर्वी भूभाग अर्थात् प्रदेश १ – पूर्वक कोसी आ मेची अंचल सहितक भूभाग आर नेपाल केँ ५ विकास क्षेत्र केर डेमोग्राफीक डिवीजन मे ‘पूर्वाञ्चल विकास क्षेत्र’ केर तराई-मधेशक भूभाग सँ अदौकाल सँ लोकपरम्परा मे जियैत मिथिला आ मिथिलाक बेटी गौरी ओ हुनक पिता-माता राजा हिमाचल व मैनाक क्षेत्र यानि पहाड़, सघन वन आ पवित्र नदी कोसी-मेचीक क्षेत्र – साविक केर मोरंगक्षेत्र – मत्स्यदेशक राजा विराट केर इतिहास सँ जुड़ल क्षेत्र – भीम कैवर्त्य केर शासित क्षेत्र – राजा सलहेश केर कर्मक्षेत्र आ सासूर – दीना भदरी लोकपुरुष केर कर्मक्षेत्र संग निर्वाणस्थल – अनेकौं प्रकारक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आ राजनैतिक पहिचानक धनी “पूर्वी नेपाल” जे आधुनिककाल मे नेपालदेश केँ बी. पी. कोइराला, जी. पी. कोइराला, एम. पी. कोइराला, मनमोहन अधिकारी, सहित कइएक स्टेट्समैन आ प्रीमियर देनिहार गर्वभूमि सेहो थिक – जतय मैथिली भाषाक इतिहास बेस प्राचीन आ समृद्ध रहल अछि; एहि भूभाग मे मैथिली भाषाक संचार पर केन्द्रित ई आलेख अछि।

विभिन्न स्रोत सँ संकलित सूचनाक आधार पर लिखल ई आलेख दस्तावेजीकरण आ भविष्यक संतति लेल सूचना उपलब्ध करेबाक कार्य करय ताहि उद्देश्य सँ लिखल गेल अछि। एकर प्रेरणास्रोत मैथिली भाषा-साहित्यक संग सम्पूर्ण नेपाल केर संचारक्षेत्रक एक प्रतिष्ठित आ चर्चित नाम अग्रज धर्मेन्द्र झा छथि, जिनकर प्रेरणा आ देल गेल लेखन भार अनुसार ई लेख लिखि रहल छी। मैथिली सब दिन श्रुति इतिहासक हिस्सा रहि जायत त भविष्य मे लोक केँ विश्वास नहि हेतैक, भ्रम केर अवस्था रहतैक, तेँ बेसी सँ बेसी शोधपूर्ण आलेख लिखबाक कार्य हुअय – श्री धर्मेन्द्र झाक एहि प्रेरणाक वाक्य सँ प्रभावित भऽ अपन सर्वोत्तम देबाक प्रयास कय रहल छी। काफी समय सँ लम्बित ई लेख लिखय सँ पहिने कतराइत रहलहुँ लेकिन अन्ततोगत्वा उचित स्रोत व्यक्तिक खोज आ जिम्मेदारी वहन करबाक लेल योग्य व्यक्तिक अभावक कारण ई भार स्वयं स्वीकार करय पड़ल अछि।

एहि लेख केँ एकटा शुभारंभ मात्र मानल जाय, कारण खोज-शोधक प्राथमिक पैरामीटर (मापदंड) केँ पूर्णरूप सँ समयाभाव मे हम पूरा नहि कय सकल छी, केवल सेकेन्डरी डेटाक आधार पर ई लेख पाठकक सोझाँ राखि रहल छी। तथापि, एतेक आत्मविश्वासक संग ई लेख राखि रहल छी जे आगाँ जे कियो आरो गहींर शोध-खोज करता तिनकर मार्गदर्शन निश्चित एहि लेख सँ हेतनि आर वर्णित क्षेत्र धरि पहुँचिकय प्राइमरी डेटा संकलन करैत आरो नीक सँ विश्लेषणात्मक शोधालेख लिखि सकताह। संगहि अत्यधिक विश्लेषणात्मक अथवा समीक्षात्मक तथ्य एहि लेख मे नहि समेटि रहल छी, कारण वैचारिक सम्प्रेषण बेसी भेला सँ लेख अपन दिशा सँ इतर भावनात्मक सन्देश दिश बहकि जायत तेकर डर अछि। बहुत रास प्रकाशित सामग्री सेहो प्रत्यक्ष दर्शन लेल नहि भेटि पेबाक कारण ओहि पर टिप्पणी वा अपन विचार राखब हमरा लेल दूभर अछि। तेँ समग्र मे मैथिली भाषाक स्थिति संचारक दृष्टि सँ केहेन रहल ताहि पर एक नजरि दौड़ेबाक कार्य मात्र करत ई लेख। एकर तैयारी मे जानकारी जुटेबाक स्रोत व्यक्ति लोकनि वरेण्य स्रष्टा सब छथि जिनका प्रति आभार केर शब्द राखब आवश्यक अछि – राना सुधाकर, रामरिझन यादव, कर्ण संजय, नवीन कर्ण, प्रदीप विहारी, रामनारायण देव, अरविन्द मेहता, लक्ष्मी नारायण झा; अपने सभ सँ एहि सन्दर्भ मे वार्ता मार्फत सूचना संकलन कय सकल छी। प्रकाशनकाल वा तारीख आदिक उल्लेख मे सामग्री अनुपलब्धताक कारण त्रुटि संभव अछि। लेकिन स्रोत व्यक्ति स्वयं एहि संचारकर्म सँ जुड़ल रहबाक कारण त्रुटिक संभावना अत्यल्प होयत से विश्वासक संग कहि सकैत छी। आगामी समय मे कोनो भूल-सुधार लेल विज्ञ सुझाव अनुरूप उपस्थित रहब। अस्तु!

भाषा आ संचार

विदिते अछि जे अपन अभिव्यक्ति केँ दोसरक समक्ष व्यक्त करबाक माध्यम केँ भाषा कहल जाइछ, जखन कि विचार, समाचार, सूचना आ पठन-पाठन योग्य सामग्री आदिक प्रवाह केँ संचार मानल जाइत अछि। नेपालक पूर्वी भूभाग आ खास कय तराई-मधेशक भूभाग मे मैथिली भाषा प्राचीनकाल सँ सर्वोपरि रहल से स्पष्ट अछि। कालान्तर मे राजा महेन्द्रक कालखंड सँ बसाई-सराई (पहाड़ सँ तराई-मधेश भूभाग मे नीतिगत आप्रवासन) तथा एकल भाषा नीति लागू कयला उपरान्त मैथिली भाषा प्रथम सँ दोसर भाषाक रूप मे परिणत भेल जे एहि अवस्था मे आइ धरि प्रचलित अछि। परञ्च शिक्षा-दीक्षाक भाषा मे मैथिलीक प्रवेश व पहुँच नहि बनि पेबाक कारण संचारक भाषा मे नेपालीक प्रचलन मात्र बहुल्य रहल अछि। अंग्रेजी आ सीमा पार सँ भारतीय पत्र-पत्रिकाक उल्लेख्य मांग तथा पाठ्य-सामग्री मे सेहो हिन्दीक प्रचुरता सँ एहि क्षेत्र मे रहबाक तथ्य भेटैत अछि।

डा. अवध नारायण लाल, पंडित मेघराज शर्मा आदिक समय मे ‘हिन्दी आन्दोलन’ केर चर्चा विराटनगर मे कतेको सभा-समारोह मे सुनल अछि जे नेपाली भाषाक एकल अधिकार सँ अन्य भाषाक अधिकार क्षीण होयबाक विरोध मे छल, संगहि गैर-नेपाली भाषाभाषी केर पठन-पाठन तथा सूचना प्रवाह संग सरकारी कामकाज मे कठिनाईक सामना करबाक प्राकृतिक बुनियाद पर आधारित रहल ईहो बुझल जा सकैत अछि। परञ्च शिक्षा, सरकारी कामकाज, अदालती कामकाज, संचार क्षेत्र आदि मे नेपालक एकल भाषा नीति हावी रहल जाहि सँ मैथिली सहित अन्य मातृभाषाक उल्लेख्य विकास संभव नहि भेल। नहिये संचार क्षेत्र मे ई सब भाषा कोनो उल्लेख्य कार्य कय सकल। तथापि, छिटफुट काज सब मैथिली भाषा मे होयबाक प्रमाण भेटैत अछि। जे दीर्घकालिक नहि भऽ सकल। आर नहिये वृहत् सर्कुलेशन प्राप्त कय सकल। जेकरा आधार पर जनभाषा मे संचार केर सफलता होयबाक कोनो तथ्यगत आधार राखल जा सकैत अछि। एहि लेख मे तीन जिला मोरंग, झापा आ सुनसरी मे मैथिली संचार पर फोकस राखल जा रहल अछि।

पूर्वाञ्चल मे मैथिलीक इतिहास

प्राचीनकाल सँ मैथिलीक इतिहास ताकब वर्तमान लेख केर अभिप्राय नहि अछि। मोरंग केर ऐतिहासिक स्वरूप मे जहिना मिथिलाक चर्चित कइएक राजा-महाराजा आ लोकपुरुष लोकनिक जुड़ाव केर श्रुति इतिहास भेटैत अछि तहिना मैथिली भाषाक जन-जन केर भाषा आ संचार संग कामकाजी भाषाक रूप मे प्रचलनक इतिहास मोरंग सँ सेहो प्राप्त होइत अछि। भेड़ियारी (बुधनगरा) सँ प्राप्त ऐतिहासिक अवशेष सँ सेहो मिथिलाक जीवन प्रणालीक पुरातात्विक खोज एहि ठाम भेल अछि।

मोरंग केर पूर्व मुख्यालय रंगेली मे मैथिली भाषाभाषीक संख्या उल्लेख्य रहितो सामाजिक संचार केर मौखिक भाषा धरि सीमित देखाइत अछि मैथिली। शिक्षक, चिकित्सक, व्यवसायी, सरकारी कामकाजी अड्डा आदि मे मैथिलीभाषीक संख्यात्मक उपस्थिति त रहबे कयल, सामान्य कृषक आ श्रमिक सेहो मैथिलीभाषीक संख्या ओतबे उल्लेख्य रहल एहि ठाम। मोरंग केर छोट-छोट बाजार आ ग्रामीण क्षेत्र सब मे मैथिली भाषाभाषीक प्रचुर उपस्थिति आइयो उल्लेख्य अछि। तहिना विद्यापति समान महाकविक जनप्रिय पदावली केँ गायन एवं अभिनय संग ‘विदापत नाच’ मार्फत आम समाज केँ देखेनिहार एक अत्यन्त प्राचीन विशिष्ट जनसमुदाय ‘गन्गाईं’ केर उपस्थिति मोरंग मे उल्लेख्य अछि। दोसर आदिवासी-मूलवासी राजवंशी समुदाय सेहो एहि क्षेत्र मे उल्लेख्य संख्या मे भेटैत अछि। राजवंशी भाषा मे मैथिली आ बंगालीक मिश्रण देखल जाइछ। वर्तमान झापा जिलाक सीमा भारतक पश्चिम बंगाल सँ लगैत अछि, दक्षिणी सीमा किशनगंज आ अररिया जिला सँ लगैत अछि। बंगाली भाषाक प्रभाव एहि क्षेत्रक प्राचीन वासिन्दा जनसमुदाय राजवंशी लोकनिक भाषा पर होयब स्वाभाविक अछि, तहिना मैथिलीक सेहो। जेना-जेना पूब सँ पश्चिम दिशा मे आयब, एहि जनसमुदायक भाषा मे मैथिली शब्दक बाहुल्यता आ बजबाक शैली अधिक प्रभावित होइत देखल जाइछ।

भाषा-भाषिका पर विज्ञजनक राय

झापा जिलाक पृथ्वीनगर केर हिमाली माध्यमिक विद्यालय एवं शिवगंज केर माध्यमिक विद्यालय मे अध्यापक रहल मैथिली भाषा-साहित्यक प्रतिष्ठित सर्जक (इतिहासविद्) रामनारायण देव कहैत छथि जे रतुवा नदीक पूब राजवंशी भाषा मे मैथिली संग बंगाली बोलीक प्रभाव सेहो अछि, जखन कि एहि नदीक पश्चिम मे मैथिलीक एकछत्र प्रभाव देखल जाइत अछि। स्वयं राजवंशी समुदायक लोकगीत पर शोधकार्य कयनिहार देवजी मैथिलीक सीमा रतुवा धरि निर्बाध रूप मे देखैत छथि। रतुवाक पूब मे बंगाली भाषाक प्रभावक कारण बोली मे आर बेसी अन्तर पड़ैत देखि रहला अछि मूलनिवासी (आदिवासी) राजवंशी जनसमुदायक भाषा मे। मौखिक संचारक भाषा मैथिलीक मिश्रित प्रभाव मेची नदी सँ आरो पूब पश्चिम बंगाल आर बंगलादेशक किछु भूभाग धरि रहबाक बात कहैत छथि इतिहासविद् देवजी।

हिनकर मत छन्हि जे साविक मे मोरंग जिला अन्तर्गत झापा, सुनसरी आ आजुक मोरंग क्षेत्र समाहित छल। मैथिली लिखित संचार भाषा भले विकसित नहि भऽ सकल कारण ता धरि नेपाल मे राजा महेन्द्र केर नीति अनुसार एकल भाषा नीति केर प्रभाव सरकारी कामकाज, शिक्षा आ संचार केर भाषा बनि गेल छल। तथापि, मैथिली भाषाभाषी समाज आपसी व्यवहार आ जीवनशैली मे अपन भाषाक संग अनवरत चलैत रहल, बीच-बीच मे गोटेक बुद्धिजीवी लोकनि साहित्यिक संचार मे मैथिलीक प्रयोग सेहो कयलनि।

मैथिलीक लिखित संचारकर्मक आरम्भ

बुद्धिजीवी द्वारा लिखित संचार मे मैथिली लेल प्रथम प्रयास करैत प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन केँ मोन पाड़ैत इतिहासविद् देवजी कहैत छथि जे १९६२ ई. सँ मोरंग कैम्पस केर हिन्दीक प्राध्यापक रहितो मौनजी मातृभाषा मैथिली मे बहुत गहींर आ गम्भीर काज सब कयलनि। स्वयं केँ मौनजीक शिष्य आ प्रेरणापुरुष मानैत ओ आगू कहैत छथि जे १९६२ सँ १९७८ ई. केर अपन १६ वर्षक कार्यकाल मे मौनजीक सम्पादन मे साहित्यिक पत्रिका “मैथिली” केर प्रकाशन भेल। एहि त्रैमासिक साहित्यिक संचार पत्रिका ‘मैथिली’ मे डा. ब्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’, लक्ष्मण शास्त्री, डा. जयकान्त मिश्र, जयमन्त मिश्र, डा. धीरेश्वर झा धीरेन्द्र, अयोध्यानाथ चौधरी, राम नारायण सुधाकर व स्वयं राम नारायण देवहु केर अनेकों लेख-रचना सब प्रकाशित भेल छल। ई एक शोधपत्रिकाक रूप मे बेस चर्चित भेल छल। मैथिली भाषा-साहित्य मे रुचि रखनिहार लेल नव ऊर्जाक संचरण मे ‘मैथिली’ केर भूमिका अविस्मरणीय रहत। विराटनगर केर तत्कालीन बुद्धिजीवी मे ध्रुव नारायण लाल, बद्री नारायण कंठ, अरुण कुमार दास, काली कुमार लाल, रमाकान्त झा, गुणानन्द ठाकुर, गणेश लाल कर्ण, नन्दलाल मंडल, राम बदन खड्का आदिक भूमिका लेखन, प्रकाशन आ सामाजिक संचार मे मैथिलीक संवर्धन-प्रवर्धन मे मुख्य होइत छलन्हि।

झापाक ईंटाभट्टा माध्यमिक विद्यालय मे विज्ञानक शिक्षक प्रदीप विहारी भद्रपुरहि सँ पढेबाक लेल आओल-गेल करथि। भद्रपुर मे व्यवसायिक गतिविधि आ मैथिलीभाषाभाषीक उल्लेख्य संख्याक मोन पाड़ैत ओ कहैत छथि जे अपन अढाइ वर्षक प्रवासकाल मे मैथिली भाषा-साहित्य संग लगाव रहबाक कारण स्थानीय मैथिलीभाषी लोकनि संग विमर्श करैत ‘हिलकोर’ नाम सँ मैथिली पत्रिकाक प्रकाशन आरम्भ कयलहुँ। तत्कालीन समाजक विभिन्न परिस्थिति केँ कथा मार्फत उकेरबाक अनेकहुँ कार्य एहि समय मे करबाक आख्यान मोन पाड़ैत ताहि समय झापाक मैथिली गतिविधि संग विराटनगर आ जनकपुर केर भाषा-साहित्य-संचार संग जोड़बाक स्थिति पर सेहो प्रकाश देलनि श्री प्रदीप विहारी। मैथिलीक सुप्रसिद्ध स्रष्टा एवं शिक्षक डा. धीरेश्वर झा धीरेन्द्र संग अन्य महत्वपूर्ण नाम सभ मे जीतेन्द्र जीत, रामनारायण सुधाकर, डा. रामभरोस कापड़ि भ्रमर व हुनका लोकनिक सहयोग एवं सम्पादनक गुर आदि सिखेबाक बात सेहो मोन पाड़लनि। मैथिली संचारक प्रभाव ताहि समयक झापा जिलाक मैथिलीभाषी पर कतेक पड़ल जे किछुए समय बाद महाकवि विद्यापतिक स्मृति उत्सव आ भाषिक एकजुटताक माहौल भद्रपुर मे बनैत देखल गेल। जनकपुर सँ प्रकाशित आंजुड़ एवं गामघर मैथिली पत्रिका ताहि समय मे करीब २५ गोटे ग्राहक शुल्क भुगतान कय कीनिकय पढल करथि। स्वयं प्रदीप विहारी अपन निजी उपन्यास आ कथा लेखनक अभ्यास झापाक जीवनशैली केँ समेटिकय लिखलनि, संगहि साहित्यिक गुरु जीवकान्त केर मार्गदर्शन अनुसार नेपाली जीवनशैली सँ मैथिली भाषी केँ कि सब प्रेरणा देल जा सकैत छैक, ताहि कथ्य केँ सेहो समेटलनि। महेन्द्र राजमार्ग आ ओकर दुनू कातक झोपड़ीनुमा दोकान मे व्यापार-‍व्यवसाय सँ बढैत जीवन संग मैथिली समाजक अवस्था केँ बेसी समेटल गेल छल। ‘हिलकोर’ केर कुल ४ अंक मात्र प्रकाशित भऽ सकल, ओ कहैत छथि। एकर प्रकाशन काल १९८१ सँ १९८३ ई. रहल छल।

पूर्व प्रधानमंत्री मातृका बाबूक सहयोग आ नेपालीभाषी विद्वान् लक्ष्मण शास्त्रीक योगदान सँ मैथिली संचार आरम्भ भेल

पूर्व प्रधानमंत्री मातृका प्रसाद कोइराला सब सँ पैघ प्रेरणापुरुष भेलाह जे मैथिली केँ नेपालक सब सँ प्राचीन आ समृद्ध भाषा कहिकय अपन ओजस्वी संबोधन सँ युवा सब केँ मैथिली मे लिखबाक, पढबाक आ काज करबाक लेल प्रेरणा देल करथि। स्वयं नेपालीभाषी रहितो ओ जतेक शुद्ध, सुसंस्कृत आ ओजपूर्ण शैली मे मैथिली बाजथि से बहुतो लोक केँ अत्यधिक आकर्षित करैत छलैक। लेखन मे सेहो मातृका बाबूक बहुत पैघ योगदान रहलनि अछि। हुनकर प्रकाशित पुस्तक व आलेख संग अप्रकाशित सामग्री सभ लेल कतेको प्रयास कयलाक बादहु परिवारक लोक द्वारा सहयोग नहि भेटबाक कारण सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहि कय सकबाक दुःख व्यक्त कयलनि देव।

मैथिली भाषाक संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धन मे मोरंग कैम्पस केर दोसर प्राध्यापक लक्ष्मण शास्त्री (पूरा नाम लक्ष्मण आचार्य ‘शास्त्री’) केर योगदान काफी महत्वपूर्ण रहल। प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन केर समकालीन तथा स्वयं नेपाली भाषाक प्राध्यापक रहैत मैथिली केँ आमजनक भाषा मानैत शास्त्री जी निरन्तर लेखन-प्रकाशन मे सहयोगीक भूमिका निभौलनि, संगहि मैथिलीभाषी समुदाय सँ एहि भाषाक भविष्य लेल सदिखन प्रेरणा संचरण करबाक काज सेहो कयलनि। पंचायती सरकार आ अंचलाधीशक सशक्त हस्तक्षेपकारी भूमिका केँ मोन पाड़ैत देव कहैत छथि जे ताहि समयक अंचलाधीश बलराम प्याकुरेल द्वारा आरम्भिक काल मे किछु व्यवधान उत्पन्न करबाक प्रयास भेल छल। परञ्च पूर्व प्रधानमंत्री मातृका प्रसाद कोइराला द्वारा नेपालक स्वर्णिम भविष्य लेल मैथिली भाषाक महत्व पर हुनका संग आपसी विमर्श उपरान्त दोबारा कोनो तरहक व्यवधान-बाधाक बात अंचलाधीश प्याकुरेल केर तरफ सँ कहियो नहि भेल। निष्कर्षतः ई कहल जा सकैत अछि जे मैथिली भाषा लेल गैर-मैथिलीभाषी विद्वान् सेहो महत्वपूर्ण योगदान करैत रहला अछि।

मैथिलीभाषीक बहुल्यता आ आम संचारक भाषा मैथिली

मैथिली आम संचार केर महत्वपूर्ण भाषा अदौकाल सँ रहल अछि। खेत पर मालिक आ मजदूर बीच केर भाषाक रूप मे, कारखाना-मिल आदिक कर्मचारी-कामदार केर भाषाक रूप मे, विद्यालय-महाविद्यालयक शिक्षक आ छात्र केर बीच मे, अस्पतालक चिकित्सक आ रोगी अथवा रोगीक कुरुवा (सेवक-सहायक) केर बीच मे, सरकारी कार्यालयक मौखिक वार्तालाप मे, जमीन्दार आ कमतिया (रैयत) केर बीच मे, कला-संस्कृति आ आम जनजीवन मे – मोरंग केर मुख्य भाषा मैथिलीक इतिहास विलक्षण रहल अछि। श्री देव केर निजी शोध, अध्ययन व लेखन मे झापाक कीचकवध स्थान जे भद्रपुर सँ कनेक दक्षिण मे अवस्थित अछि ताहि पर, राजवंशी लोकभाषा, सुनसरीक बराहक्षेत्र, विजयपुर राजाक लालमोहरक भाषा मैथिली सहित मोरंग सहित समस्त मिथिलाक इतिहास सँ जुड़ल अनेकों कार्य सम्मिलित छन्हि। अपन समकालीन लेखक आ मैथिली संचारक योगदानकर्मी मे राना सुधाकर, उमाशंकर कर्ण, रमाशंकर कर्ण सहित सैकड़ों मैथिलीभाषी युवा सब केँ सेहो मोन पाड़ैत कहलनि अछि जे आइ एहि भाषा संग शत्रुतापूर्ण व्यवहार जाहि मे जातिक नाम पर बोली-शैली केर फराक होयबाक बात केँ भाषाक नामहि बदलबाक दुष्प्रचार कयल जा रहल अछि ई अक्षम्य अपराध थिक।

मैथिली संचार – लिखित प्रकाशन

सर्वप्रथम “मैथिली” नाम सँ साहित्यिक मैथिली पत्रिका प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ केर संपादन मे २०२७ वि.सं. साल ‘विवाह पंचमी’ केर दिन पूर्व प्रधानमंत्री मातृका प्रसाद कोइरालाक हाथ सँ विमोचित-प्रकाशित भेल। एहि पत्रिकाक कय गोट अंक प्रकाशित भेल एकर सही तथ्यांक नहि भेटि पाबि रहल अछि, लेकिन ताहि समय मैथिली लेखन मे रुचि रखनिहार तथा उपरोक्त पत्रिका मे पर्यन्त अपन रचना-लेख प्रकाशित कयनिहार चर्चित कथाकार-लेखक राम नारायण सुधाकर (लोकप्रिय नाम – राना सुधाकर) कहैत छथि जे ‘मैथिली’ केर कुल ५ गोट अंक प्रकाशित भऽ सकल छल। दोसर दिश इतिहासविद् राम नारायण देव कहैत छथि जे ई एक त्रैमासिक पत्रिका छल। १९६२ सँ १९७८ ई. केर कार्यकाल रहलनि मौनजीक, आर १९७०-७१ ई. मे प्रथम प्रकाशित पत्रिका १९७८ धरि रुकि-रुकिकय प्रकाशित होइत रहल छल।

स्पष्ट अछि जे पंचायती व्यवस्था मे नेपाली भाषा छोड़ि आन कोनो भाषाक प्रकाशन ततेक सहज नहि छल होयत आर लेख-सामग्री सभक संकलन लेल पोस्टल मार्गक निर्भरता आदिक कारण प्रकाशन निर्बाध गति सँ नहि भेल होयत। तथापि, ‘मैथिली’ पत्रिकाक चर्चा बहुत उच्चस्तर पर आइयो कयल जाइत अछि। एहि मे प्रकाशित लेख-रचनाक महत्ता केँ प्रा. रामरिझन यादव सेहो स्वयं लेल प्रेरणाक विषय मानैत छथि जे स्वयं २०४८ वि.सं. साल सँ ‘मिथिला टाइम्स’ केर प्रकाशन विराटनगर सँ कयलनि।

बहुदलीय प्रजातंत्र उपरान्त ‘मिथिला टाइम्स’ पहिल समाचारमूलक संचार पत्रिका

विदित हो जे रामरिझन यादव सेहो मोरंग कैम्पस केर प्राध्यापक रहलाह आर मैथिली पाक्षिक पत्रिका ‘मिथिला टाइम्स’ केर कतेको रास अंक प्रकाशित करैत रहला अछि। बीच मे किछु वर्ष ई बाधित रहलनि, कारण ओ राष्ट्रीय राजनीति मे काफी व्यस्त भऽ गेलाह जाहि कारण प्रकाशन केँ निरन्तरता नहि दय सकल छथि।

नेपाल मे बहुदल प्रजातंत्र केर शुरुआत १९९० ई. (२०४७ वि.सं. साल) मे भेलैक। एकर बाद नेपाली भाषाक अतिरिक्त आनहु भाषा सभक प्रकाशन व प्रचार-प्रसार संग सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान संचालित करबाक वातावरण बनलैक। हिसाब सँ देखल जाय तऽ आधुनिककाल मे १९९० ई. केर बादहि सँ मैथिलीक गतिविधि क्रमिक रूप सँ गति प्राप्त कयलक। एहि तरहें पहिल समाचार पत्रिकाक रूप मे ‘मिथिला टाइम्स’ केँ श्रेय देल जा सकैत अछि, कारण ई पत्रिका समाचारमूलक प्रकाशन केँ बेस समावेश करैत जन-जन मे मैथिली भाषाक लोकप्रियता केँ स्थापित करबाक सोच संग आगू बढल छल।

श्री यादव द्वारा समाचारमूलक लेख केँ प्रधानता दैत मैथिली भाषा सँ रोजगार, पत्रकारिता आदिक माहौल बनाकय ब्राह्मणेतर मैथिलजन केँ सेहो आगू अनबाक अनुपम प्रयास कयल गेल छल। शिक्षाविद् जवाहर भंडारी व बिक्रम साह हिनकर अभियान केँ काफी सहयोग कयलनि। संगहि छात्रवर्ग बीच सेहो मैथिली मातृभाषाक नाम पर संगठित होयबाक एकटा नीक परम्परा केर शुरुआत होयबाक श्रेय ‘मिथिला टाइम्स’ केँ भेटैत अछि।

एक त बहुदलीय व्यवस्थाक प्रजातंत्र केर आरम्भ आ दोसर भाषाक आधार पर एकजुटताक भावनाक विकास – एहि सँ मैथिली भाषाभाषी मधेशी सहित थारु, राजवंशी, गन्गाईं, दलित आदि आम जनसमुदाय मे एक अलग निजताक बोध भाषाक आधार पर होइ से महत्वपूर्ण लक्ष्यक पाछाँ बढबाक काज ‘मिथिला टाइम्स’ केर माध्यम सँ रामरिझन यादव द्वारा भेल।

भाषा-संचार आ साहित्यक विकास लेल संस्थागत आ व्यक्तिगत प्रयास – समग्र प्रकाशन स्थितिक एक झलक

२०२७ वि.सं. साल मे स्थापित मैथिली साहित्य परिषद् तथा २०४२ वि. सं. साल मे स्थापित ‘मैथिली सेवा समिति’ सेहो सरकारी ऐन अनुसार पंजीकृत २०४८ वि.सं. सालहि मे भऽ सकल। तदनुसार २०५० वि. सं. साल मे ‘मिथिला दीप’ नामक पत्रिकाक दर्ता भेल। एकर संपादक मैथिलीक एक समर्पित आ प्रतिष्ठित स्वयंसेवी सृजनकर्मी भूषण झा छलाह। एहि पत्रिकाक सेहो किछु अंक मात्र प्रकाशित भऽ सकल छल। भूषण झा जा धरि विराटनगर मे रहलाह ता धरि ई पत्रिका रुकि-रुकिकय प्रकाशित होइत रहल। रमानन्द झा एकर संस्थापक-प्रकाशक छलाह आर आब ई पत्रिका मैथिली सेवा समिति केर वर्तमान अध्यक्ष डा. एस. एन. झा केर सम्पादन मे पुनर्प्रकाशित कयल जेबाक चर्चा टा सुनल जाइत अछि, धरि एखन तक कोनो अंकक प्रकाशन संभव नहि भऽ सकल अछि।

मैथिली साहित्य परिषद् सँ आबद्ध प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन केर ‘मैथिली’ केर प्रकाशन आर मौनजी नेपाल छोड़ि भारत चलि गेलाक बाद पछातिक नेतृत्व द्वारा प्रकाशनक कार्य केँ निरन्तरता नहि देबाक रिक्तता केँ पुनः बहुदलीय प्रजातंत्रक संविधान लागू भेलाक बाद परिषदक नेतृत्व सम्हारनिहार मोरंग कैम्पस केर प्राध्यापक गणेश लाल कर्ण लगभग २०५६-५७ वि.सं. साल मे ‘मैथिली जागरण’ नाम सँ प्रारंभ कयलनि। मुदा फेर एहि संस्थाक नेतृत्व परिवर्तन होइते पुनः एकर प्रकाशन बन्द भऽ गेल। अहु पत्रिकाक प्रकाशन मात्र किछेक अंक भऽ सकल स्मृति मे अनैत छथि राना सुधाकर।

एहि सँ पूर्व एकटा आरो साहित्यिक पत्रिका ‘प्रभात’ नाम सँ २०४७-४८ केर आसपास प्रकाशित कयल गेल। एकर संपादक आ प्रकाशक क्रमशः राना सुधाकर तथा जीतेन्द्र जीत (मूल नाम – उमाशंकर लाल कर्ण) छलाह हालांकि एकर प्रकाशन मे विनोद चन्द्र झा, बद्रीनारायण वर्मा सहितक टोली सक्रिय रहल छल। विनोद चन्द्र झा एकर २ अंक केर प्रकाशन मोन पाड़ैत कहलनि अछि जे हुनक दुइ कथा ‘घोघापुल चौक’ एवं ‘श्रीमतीजी’ एहि मे प्रकाशित होयबाक बात कहलनि अछि। हुनकर हिसाब सँ विराटनगर सँ प्युठान मे जागिर स्थानान्तरणक बाद ई पत्रिका आगाँ काज नहि कय सकल। एहि पत्रिका मे सेहो साहित्यिक आ वैचारिक लेख सभ केँ समावेश कयल जाइत छल। विराटनगरक एक्सडेल (एक्सप्रेस डेलिवरी) नाम सँ संचालित कुरियर कम्पनीक मालिक उमाशंकर लाल कर्ण एवं रमाशंकर लाल कर्ण दुइ सहोदर भाइ छलाह। स्वयं सृजनकर्मी सेहो रहथि। मैथिली भाषा-साहित्य जगत मे जीतेन्द्र जीत केर नाम काफी प्रख्यात अछि। मोरंग केर मुख्यालय विराटनगर केन्द्रित मात्र नहि बल्कि नेपाल आ भारत केर मैथिली भाषाभाषी बीच हुनकर चर्चा लेखक, संचारकर्मी आ अभियानीक रूप मे काफी होइत रहैत अछि।

कमला – मैथिलीक फोल्डिंग पत्रिका केर प्रकाशन जीतेन्द्र जीत केर सम्पादन मे भेल, ईहो किछेक अंक मात्र प्रकाशित भऽ सकल।

नेपालक राजनीतिक स्वरूप मे परिवर्तनक संग मैथिली संचारक विकासक्रम

नेपाल मे राजनीतिक परिवर्तन मे जेना-जेना एकल भाषा सँ इतर अन्य भाषा व संस्कृति-पहिचान केर संरक्षण-संवर्धन लेल माहौल बनैत गेल तेना-तेना मैथिलीक भाग्योदय होयबाक बाट खुजैत गेल देखाइत अछि। तथापि, बिना कोनो राज्यपक्षक वित्तीय सम्पोषणक मैथिली पत्र-पत्रिका वा संचारक भाषाक रूप मे कोनो उद्यम दीर्घकालिक रूप सँ स्थापित होइत नहि देखायल।

पूर्वहु केर वर्णित व्योरा सँ स्पष्ट अछि जे पंचायती व्यवस्था मे केवल साहित्यिक संचारकर्म पर बुद्धिजीवी समाज मैथिली भाषा केँ बचेबाक लेल प्रयास कयलनि। नेपालीभाषी विद्वान अथवा हिन्दी भाषाक प्राध्यापक आ कि नेपाल सरकारक पैघ-पैघ परियोजना व प्रशासनिक कार्यालयक पदाधिकारी वर्गक योगदानदाता, चिकित्सक, अभियांत्रिकी सँ जुड़ल एलिट्स आदिक प्रयास सँ नेपालक दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषा आ विशेष रूप सँ बौद्धिक योगदान मे सभक लेल नेतृत्व प्रदान करयवला मैथिली मातृभाषीक भाषिक अस्तित्वक संरक्षणार्थ पूर्व प्रधानमंत्री धरिक योगदान सँ टुघरैत रहल मैथिली बहुदल प्रजातंत्रक बाद अपन पहुँच केँ आर विस्तार कय केँ आम भाषाभाषी बीच पहुँचबाक यत्न केलक। तदोपरान्त २०६२ वि.सं. साल केर जनआन्दोलन २ पछाति नेपाल मे बनल अन्तरिम संविधान आर ताहि सँ प्राप्त अधिकार केँ पुनः मैथिलीभाषी युवा सर्जक लोकनि अपना तरहें उपयोग करबाक भरपूर चेष्टा करैत देखाइत छथि।

प्रयास आ योगदानक संग महत्वपूर्ण संचार विकास पर एक नजरि

एहि क्रम मे अरविन्द मेहता, नवीन कर्ण, विनोद साह, राजकुमार मेहता सहित कुल ५ गोट संचारक्षेत्रक मैथिलीभाषी चेहरा केर संयुक्त प्रयास सँ ‘सौभाग्य मिथिला’ नाम सँ मैथिली साप्ताहिक पत्रिकाक प्रकाशन प्रारम्भ कयल गेल। कुल ६ पृष्ठ केर ई साप्ताहिक अन्य नेपाली साप्ताहिक समान मैथिली भाषाक संचारकर्म केँ २०६४-६५ वि.सं. साल मे आरम्भ कयलक। एहि मे दर्जनों युवा संचारकर्मी केँ विभिन्न ग्रामीण इलाका व मुख्य शहर केर भितरी भाग सँ जोड़िकय मौलिक समाचार केर संचरण सेहो शुरू कयल गेल। एकर सर्कुलेशन आ बाजार व्यवस्थापन संग-संग विज्ञापन आदि लेल सेहो ई युवा संचार उद्यमी लोकनि अथक चेष्टा कएने छलाह।

विनोद साह केर आर्थिक सहयोग मे एहि पत्रिकाक सम्पादन नवीन कर्ण करैत छलाह। प्रकाशन व्यवस्थापन अरविन्द मेहता देखल करथि। बाजार-वितरण आ सर्कुलेशन पर विनोद साह एवं शंकर पासवान केर व्यवस्थापन छल। ३ मास धरि ई पत्रिका निःशुल्क वितरण करैत मैथिली भाषाभाषी मे अपन भाषाक महत्व सँ परिचित करबाक आ पत्रिकाक प्रचार-प्रसार करबाक कार्य कयल गेल छल। राजकिशोर मेहता आ अरुण यादव प्रचार-प्रसार मे काफी उल्लेखनीय भूमिका निभेलनि। एहि पत्रिका केँ जखन पूंजीक अभाव होवय लागल तखन एहि मे अजित झा अपन वित्तीय सहयोग सँ संचालन आरम्भ कयलनि, तथापि एकरो आयु दीर्घ नहि भऽ सकल। किछुए मास मे ई बन्द भऽ गेल।

मोरंग कैम्पस केर छात्र सभक संग आरम्भ भेल पूर्वाञ्चल मैथिल युवा संजाल जाहि मे सुनीता साह, दिनेश राज लवट, चन्दन साह, दयासागर साह, अरविन्द मेहता, पुष्पेन्द्र जायसवाल आदि अनेकों विद्यार्थी सब सक्रिय रहि मातृभाषाक विकास संग मिथिलाक मौलिक संस्कृतिक संरक्षण-संवर्धन लेल कार्य करैत छलाह, हुनके लोकनिक चिन्तन आ समर्पण सँ मैथिली संचार मे ‘सौभाग्य मिथिला’ समान सकारात्मक प्रयास संभव भऽ सकल छल। तहिना मैथिली सेवा समिति द्वारा भाषा-साहित्य केन्द्रित वृहत् आयोजन आ झाँकी-प्रदर्शनी सँ भाषाभाषी बीच एकटा सकारात्मक ऊर्जाक संचरण संग मैथिली भाषा लेल बहुत सार्थक माहौल बनि सकल। एहि महत्वपूर्ण कार्य लेल संस्थाक संस्थापक अध्यक्ष डा. सुरेन्द्र नारायण मिश्र सहित नवगठित कार्यसमिति आ विशेष रूप सँ अध्यक्ष डा. एस. एन. झा, उपाध्यक्ष फूल कुमार देव, डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव लगायतक समितिक योगदान अविस्मरणीय भूमिका अदा कयलनि।

पुनः ‘मैथिल के हँकार’ नाम सँ दोसर साप्ताहिक कर्ण संजय केर सम्पादन आ नवीन कर्ण केर प्रकाशन सँ आरम्भ कयल गेल। ४ मार्च २०१३ केर पहिल अंक केर प्रकाशन कयल गेल जे २० अक्टुबर २०१३ धरि करीब १२ अंक केर प्रकाशन कयलक, मोन पाड़ैत जानकारी देलनि कर्ण संजय। विराटनगर महानगरपालिका क्षेत्रक लगभग सब टोल मे एकर सब्सक्रिप्शन केर विशेष अभियान संचालित करैत हजारों ग्राहक बनेलाक बादो अन्य व्यवस्थापन खर्च आ निरन्तर प्रकाशन लेल वांछित वित्तीय अवस्था अनुकूल नहि बनि पेबाक कारण आखिरकार ईहो साप्ताहिक अल्पायु मे बन्द भऽ गेल अछि। आइ धरि पुनर्प्रकाशन लेल प्रयास मे रहितो बेर-बेरक असफलता सँ डरायल-ठमकल अवस्था मे उपरोक्त वर्णित लगभग सब पत्रिका अछि ई कहय मे कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत।

ओम्हर झापाक भद्रपुर सँ पुनः घनश्याम लाल दास केर सम्पादन मे ‘तिलकोर’ नामक मासिक मैथिली पत्रिकाक प्रकाशन २०६६-६७ वि.सं. साल मे आरम्भ कयल गेल, परञ्च ई मात्र प्रवेशांक धरि सीमित रहल।

रेडियो आ टेलिविजन केर युगारम्भ मे राष्ट्रीय स्तर पर जतेक स्वीकार्यता मैथिली केँ भेटल शायद ओतबे मे सिमटल रहल। मोरंग मे आमजनक भाषा मैथिली बुझि किछु २०६०-६१ वि.सं. साल सँ एफएम संचालक द्वारा मैथिली मे कार्यक्रम लेल शिवनन्दन कुशवाहा सन प्रखर रेडियो उद्घोषक संग नव परम्पराक आरम्भ करैत बेसी सँ बेसी श्रोता बनेबाक अभियान चलेलनि। कनिये दिन मे एफएम रेडियो पर मैथिली कार्यक्रमक लोकप्रियता एतेक बढि गेल जे दर्जनों युवा सब केँ एहि दिशा मे आकर्षित कयलक।

संचारक्षेत्रक कतेको नामी व्यक्तित्व यथा नवीन कर्ण, नवीन झा, अरविन्द मेहता, राधा मंडल, प्रियंका यादव आदिक संचारकर्मक यात्रा मैथिली आ एफएम सँ बनलनि।

२०६३-६४ केर आसपास कोसी एफएम सँ अरविन्द मेहताक कार्यकाल आरम्भ भेल जे आइ के दिन मैथिली केँ सम्पूर्ण समर्पित ‘नागरिक एफएम’ विराटनगर केर स्वयं संचालन करैत छथि। तहिना अंजना कर्ण व नवीन कर्ण सेहो एहि कालक्रम सँ स्काई एफएम सँ रेडियो पत्रकारिता मे प्रवेश करैत छथि। २०७० सँ नागरिक एफएम लीड लेलक आर आइ सर्वाधिक मैथिली कार्यक्रमक रेकर्ड एहि एफएम केर नाम सुरक्षित छैक।

मकालू रेडियो, सप्तकोशी (इटहरी), पोपुलर एफएम (इनरुवा), पूर्वेली एफएम विराटनगर, हेल्लो एफएम, बी एफएम व अन्य कतेको नाम सँ संचालित एफएम मे आइ मैथिली कार्यक्रम अनिवार्य रूप सँ संचालित भऽ रहल अछि। मैथिली संचारक सब सँ प्रखर स्वरूप एफएम मे मात्र जिवैत अछि। जखन कि मकालू टेलिविजन, हिमशिखर, एरिना आदि क्षेत्रीय टेलिविजन चैनल सभ मे सेहो समाचार, सीरियल व अन्य प्रारूपक कार्यक्रम मैथिली मे संचालित कयल जाइत रहल अछि।

नेपाली भाषाक संचारकर्म संग मैथिली लेल प्रयासक विलक्षण योगदान

तहिना मुख्य भाषा नेपाली रहितो मैथिली लेख, कविता आदिक प्रकाशन करबाक कार्य गोटेक नेपाली पत्रिका द्वारा कयल जाइत रहल अछि। लेकिन एहि सब छिटफुट प्रकाशनक कोनो सुव्यवस्थित जानकारी संकलन करब कठिन कार्य बुझाइत अछि। समयाभाव मे पूर्वकालक तथ्यांक समेटनाय संभव नहि देखाइछ, लेकिन नागरिक केर पूर्वेली परिशिष्ट मे स्थानीय भाषा व कथ्य आदि केँ अजित तिवारीक सम्पादन मे प्रकाशन होइत देखने छी। तहिना ब्लास्ट, दर्शन, उद्घोष, आभूषण, क्राइम रिपोर्टर, आदि विभिन्न क्षेत्रीय एवं स्थानीय पत्र-पत्रिका मे मैथिली साहित्यिक सामग्रीक समय-समय पर प्रकाशन कयल गेल एहि तरहक सूचना सुनबाक लेल भेटैत अछि। बाद मे त न्यु सृष्टि दैनिक केर ‘हिपमत’ परिशिष्ट मे निरन्तर एक सौ अंकक प्रकाशन कयल गेल जाहि मे मैथिली, भोजपुरी, मारवाड़ी, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषा मे निरन्तर प्रकाशन कयल गेल। एहि परिशिष्टक संयोजक नवीन कर्ण छलाह। गणतंत्र नेपाल केर समावेशिकता केँ हिपमत मे स्थापित करबाक नीक प्रयास कहि सकैत छी। हिपमत केर प्रकाशन २०७४ विसं साल केर सावन मास सँ २०७६ केर कार्तिक मास धरि लगभग कयल गेल, कुल १०० अंक। हाल हिपमत वेब टेलिविजन केर रूप मे संचारकर्मी वीरेन्द्र साह द्वारा संचालित कयल जा रहल अछि, जाहि मे मैथिलीक आनलाइन समाचार सब प्रकाशित कयल जाइत अछि।

आनलाइन वेब पत्रिका आ मैथिली – मैथिली जिन्दाबाद केर लोकप्रियता

२०७० वि.सं. साल केर आसपास सँ नेपाल मे आनलाइन पत्रिका (ब्लौग पेज) केर लोकप्रियता बढैत गेलाक कारण मैथिली भाषा मे सेहो विराटनगर सँ ‘मैथिली जिन्दाबाद’ नामक ब्लौग पेज आरम्भ कयल गेल। नागरिक पत्रकारिता मार्फत समाचार संकलन आ संगहि साहित्यिक कृति सभक सम्मिलित प्रकाशनक लक्ष्य मे नेपाल आ भारत सहित देश-विदेश मे रहि रहल मैथिली भाषी समुदाय केँ जोड़बाक लेल ई वेब न्युज पोर्टल काफी लोकप्रिय बनल। सामाजिक संजाल मे एकर सराहना लाखों पाठक द्वारा होबय लागल। अन्ततः अप्रैल २०१५ मे एकर स्वतंत्र वेबसाइट ‘www.maithilijindabaad.com’ केर डोमेन सहित प्रकाशन निरन्तरता मे अछि।

जनकपुर, राजविराज, लहान, वीरगंज, काठमांडू सहित भारतक विभिन्न स्थान पर उल्लेख्य यूजर संग आइ मैथिली जिन्दाबाद विशाल कन्टेन्ट्स उपलब्ध करेबाक लेल सन्दर्भित स्रोतक काज सेहो करैत अछि। ‘मिथिला डट कम’ नामक जनकपुर सँ प्रकाशित मैथिलीक दैनिक समाचारपत्र मे मैथिली जिन्दाबाद केर विचारमूलक आलेख निरन्तर प्रकाशित कयल जाइत रहल अछि। तदनुसार अन्य-अन्य स्थान पर सेहो मैथिली जिन्दाबाद केर पेज सँ समाचार-विचार आदान-प्रदान कयल जाइत अछि। एहि वेब न्यूज पोर्टल केर सम्पादक हम आ व्यवस्थापन लेल नेपाल-भारत केर विभिन्न विज्ञजनक एक टोली संग कार्यरत छी। समुचित आय स्रोतक कमीक कारण एखन धरि एकरा विस्तार नहि देल जा सकल छैक, जखन कि संभावना परिपूर्ण छैक, आवश्यकता आ मांग सेहो ओतबे अधिक।

मीडियाक नव आयाम – यूट्यूब चैनल आ विजुअल लेल आनलाइन टेलिविजनक आरम्भ आ मैथिली

हालहि हिपमत मीडिया केर पेज सँ समावेशी भाषा मे कार्य करबाक एक नव प्रयास मुन्धड़ा ग्रुप (औद्योगिक समूह) केर लगानी मे आरम्भ भेल अछि। वीरेन्द्र कुमार साह केर व्यवस्थापन तथा प्रकाश झा ‘प्रेमी’ केर सम्पादन मे हिपमत मीडिया द्वारा आनलाइन टेक्स्ट समाचार संग-संग बेसीतर विजुअल मोड केर समाचार संचार पर ध्यान केन्द्रित कयल जाइत देखल जाइछ। आजुक समावेशिकता संस्कृति मे मैथिली संचार लेल विकल्प काफी वृहत् स्तर पर उपलब्ध रहितो एहि दिशा मे कमजोर इच्छाशक्ति व नैराश्यताक संग राजनीतिक तौर पर मैथिली केँ कमजोर करबाक प्रायोजित अभियान सभक कारण माहौल काफी निराशाजनक बनल देखाइत अछि। तथापि आजुक इन्टरनेट क्रान्तिक लाभ उठबैत गाम-गाम आ ठाम-ठाम केर सक्रिय युवा सब अपन समाचार चैनल आदिक पेज संग मनोरंजन व गीत-संगीतक वीडियो सब आम मैथिली श्रोता-दर्शक लेल प्रशस्त उपलब्ध करा रहल अछि। सामाजिक संजाल – सोशल मीडिया केर एहि क्रान्ति सँ मैथिली भाषा संचार केँ बहुत बेसी लाभ भेटि रहलैक अछि। कम पूँजी मे बहुत बेसी निर्माण कार्य जन-जन केँ प्रेरित करैत विलक्षण कार्य होइत देखल जाइत छैक। एहि सँ नवतुरिया मे भाषा सेवा आ सृजन दुनूक अवस्था काफी विकासशील बनबाक अवस्था आइ प्रशस्त भेलैक अछि।

मैथिली केँ कमजोर करबाक प्रायोजित षड्यन्त्र

किछु निहित स्वार्थ सँ प्रेरित तथाकथित भाषा अभियन्ता जेकरा भाषा विज्ञान सँ दूर-दूर तक कोनो सम्बन्ध नहि छैक, जे सिर्फ उन्मादी आ जातीय आधारित विखंडनकारी सोच रखैत अछि, एहेन लोक द्वारा मैथिलीक बोलीक विविधता केर बारे आमजन मे भ्रम सृजन करैत गंगा ओहि पारक मगह क्षेत्रक भाषा ‘मगही’ होयबाक दुष्प्रचार पसारल जा रहल छैक। मैथिली भाषाक पढाई तक नहि कएने आमजन मे बोलीक विविधता स्वाभाविक छैक। भाषिक शुद्धता या अशुद्धता लेल व्याकरणक मानदंड व भाषाक मानक शैली कतहु कोनो व्यवस्थित व आधिकारिक वातावरण तक नव संघीय नेपाल मे शुरू नहि भऽ सकलैक अछि, नहिये कोनो तरहक आमजन केर पहुँच धरि शैक्षणिक व्यवस्थाक इतिहास भेटैत छैक, लेकिन सरकारी निकाय सँ मगही भाषाक नाम पर किछु पैसा ऐँठिकय अपन स्वार्थक लिप्सा पूर्ति कयनिहार व्यक्ति किंवा संस्था द्वारा एहि तरहक कुप्रचार करैत आगामी जनगणना मे पर्यन्त मैथिली सँ इतर अपन भाषा ‘मगही’ लिखेबाक सामाजिक-भाषिक विखंडनकारी अभियान खुलेआम चलायल जा रहलैक अछि। एहि तरहक अभियान संचालन कयनिहार द्वारा प्रारम्भिक शिक्षा, पूर्ण साक्षरता वा भाषासेवा-साहित्यसेवा लेल सृजनकर्मक त बात दूर बस जाति-जाति मे लड़ाई फँसेबाक विषैला बिया बाउग कयल जा रहलैक अछि जाहि पर राज्य व समस्त सरोकारवालाक ध्यान समय पर नहि जायत त एकर दुष्परिणाम सेहो वैह वर्ग केँ भोगय पड़तैक जे स्वयं केँ पिछड़ा सेहो मानैत अछि आर स्वयं एहि उन्मादी बात-विचार मे फँसैत अछि। कारण भाषा आधारित शिक्षा सँ सृजनक कलासम्पन्नता धरिक विकास मे ओ वर्ग बहुत पाछाँ छुटि जायत, मगही भाषाक स्थापित स्वरूप गंगा दक्षिण जे प्रचलित अछि ताहि सँ मैथिलीक ठेंठ बोली काफी भिन्न छैक आर पाठ्यक्रम सँ लैत साहित्य निर्माण मे सदियों लागि जेतैक तैयो संभवतः मैथिलीक बराबरी करब ओहि वर्ग लेल संभव नहि भऽ सकतैक।

एफएम थिक मैथिली संचारक मूल प्राणतत्त्व

मैथिली संचारक प्राणवायु एफएम मे सप्तकोशी एफएम इटहरी केर लोकप्रिय मैथिली कार्यक्रम नवीन झा द्वारा संचालित भेल। इनरुवाक पोपुलर एफएम पर अजित झा समान संचारकर्मीक योगदान काफी सराहनीय अछि, ओ आइ धरि एकरा निरन्तरता मे रखने छथि। समाचार, राजनीतिक विमर्श व गीत-संगीतक कार्यक्रम सब केँ समेटिकय इनरुवा व आसपास केर क्षेत्र मे मैथिली भाषा केँ जिवन्त रखबाक कार्य मे हिनकर भूमिका बहुत महत्वपूर्ण अछि। तहिना नागरिक टाइम्स केर प्रिन्ट एवं विजुअल संचारक्षेत्र मे सेहो मैथिली मे नीक कार्य कयल जा रहल अछि। पवन रौनियार द्वारा भाषा-विमर्श, फिल्म व गीत-संगीत सँ जुड़ल समाचार आदिक संग कलाकर्म केँ आगाँ बढेबाक दिशा मे निरन्तर इन्टरनेट व सामाजिक संजाल केन्द्रित संचार कार्य कयल जा रहल अछि। आजुक समय मे दर्जनों भाषाकर्मी केँ संचारक्षेत्र सँ जीविकोपार्जनक माध्यम बनि सकल अछि पोपुलर एफएम।

मैथिली संचार लेल बहुमुखी प्रयासक एक विशिष्ट चेहरा ‘नवीन कर्ण’

बाल्यकालहि सँ मातृभाषा मैथिली मे अनेकों सृजनकार्य कयनिहार बहुप्रतिभावान छविक संचारकर्मी नवीन कर्ण आइ धरि मैथिली लेल प्रयासरत देखाइत छथि। संचारक्षेत्र मे हिनकर यात्रा बड़ा अलौकिक देखल जाइछ। राना सुधाकर, जीतेन्द्र जीत, बद्रीनाराण वर्मा लगायतक संगति सँ लेखन क्षेत्रमे प्रवेश कएने छलाह। रामरिझन यादव द्वारा प्रकाशित सम्पादित मिथिला टाइम्स मे (वर्ष १ अंक १) २०४८ साल मे ‘घटा’ शीर्षक मे पहिल मैथिली कविता प्रकाशन भेल छलन्हि। २०४८ सालमें कलकत्ता सँ प्रकासित होमयवला प्रवासक भेट मे ‘मैथिलीक अभिलाषा’ शीर्षक केर कविता सहित अन्य रचना सब प्रकाशित भेल छलन्हि। विराटनगरसँ प्रकाशित होमयवला जीतेन्द्र जीत, राना सुधाकर सम्पादक रहल ‘प्रभात’ नामक त्रैमासिक मैथिली पत्रिका मे दृष्टिकोण शीर्षक केर दीर्घ कथा प्रकाशित भेलनि। यैह कथा नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानद्वारा प्रकाशित होमएवला समकालीन साहित्य मे मनु ब्राजाकी नेपाली भाषा मे रुपान्तरण कय प्रकाशित कएने छलाह। धीरेन्द्र प्रेमर्षि द्वारा प्रकाशित पल्लव (विसं २०५१) नामक अन्तरदेशीय पत्रिका मे एक्सीडेन्ट (२०५१ अगहन–पुष, वर्ष २ अंक १८, १९, सन्तोष, इमर्जेन्सी (२०५१ अषाढ, साओन वर्ष २ अंक १३, १४), सफलताक प्रतिक (२०५० आसिन, वर्ष १ अंक ४) तथा अन्य रचना सब सेहो प्रकाशित भेल छलन्हि। मैथिली विकास अभियान (स्थापित २०६१ माघ १८ गते) नामक संस्थामें आबद्ध भ भाषिक उन्नयनके अभियान शुरु कयलाह। मैथिली विकास अभियानक बैनर मे कार्यक्रम संयोजकक हैसियत सँ झुमैत मिथिला, गाबैत मिथिला २०६१ चैत महिनामे नेपालक सुप्रसिद्ध सितारा सबके (धीरेन्द्र प्रेमर्षि, आभाष लाभ, सुनिल मल्लिक) लगायतक सुपरिचित कलाकार-चेहरा सब केँ समेटिकय विरेन्द्र सभागृह मे मैथिली भाषाक संवर्धन लेल भव्य आयोजन सेहो करौने छलाह। ‘नव घर उठय, पुरान घर खसय’ मैथिली गीति संग्रह केर निर्देशन एवम निर्माण हिनके द्वारा भेल अछि। एहि एल्बमकेर माध्यम सँ प्रबलदीप विश्वास, अनु कर्ण, रंजन राउत, संगीता कर्ण आ लेखनमे कर्ण संजय केर गीतकारक रूप मे पहिचान बनेबाक महत्वपूर्ण कार्य भेल अछि। अभिनय क्षेत्र मे सेहो नवीन कर्ण अपन योगदान दैत मैथिली फिल्म लुत्ती (निर्देशक इन्द्र परियार), सेनुर साजन कें (निर्देशक सन्तोष सरकार), नेपाली टेलीचलचित्र सुगन्धपुर (निर्देशक मह जोडी) तथा सुमित खडका, प्रबलदिप विश्वासक अनेकों सांगीतिक भिडियो विजुअल मे अभिनय कएने छथि। प्लान नेपालक लेल सचेतनामुलक मैथिली श्रब्यदृष्य विज्ञापन निर्माण मे सेहो हिनकर योगदान केँ नहि बिसरल जा सकैत अछि।

२०६३ साल सँ स्काइ एफएम मे प्रवेश करैत हिनकर ठोस संचारयात्रा आ सेहो मैथिली भाषा केँ आगू बढेबाक दिशा मे होइत अछि। ओहिठाम मोनक मीत, जीवन तरंग, मिक्स मेलोडी नामक मैथिली कार्यक्रम सब संचालन करैत रहथि आर २०६८ साल धरि निरन्तरता बनौने रहलाह।  मैथिली पत्रिका ‘मैथिलके हँकार’ दर्ता कय प्रकाशन आरम्भ करैत कुला १२ अंक धरि प्रकाशन कयलनि जेकर चर्चा पहिनहुँ लेख मे कयल गेल अछि। टीम केर अभाव मे समुचित व्यवस्थापन मे पड़ि रहल व्यवधानक कारण बन्द करबाक बात कहैत छथि। ताहि सँ पहिने अरविन्द मेहता लगायतक संग मिलिकय मैथिली पत्रिका ‘सौभाग्य मिथिला’ केर प्रकाशन सेहो कएने छलाह। मैथिली संचारकर्मक यात्रा मे नवीन कर्ण द्वारा बहुतो रास युवा सब केँ जोड़बाक कार्य सेहो कयल गेल अछि जाहि मे मुख्य रूप सँ प्रियंका यादव, सोनू दास, मीना साह, धीरेन्द्र मंडल, प्रकाश प्रेमी, सन्तोष मेहता, प्रियंका कामत आदिक नाम अबैत अछि। हिनकर समकालीन आरो किछु गोटेक योगदान महत्वपूर्ण रहल – यथा डिम्पल देव, लक्ष्मी साह, पिंकी मेहता, राधा मंडल, जागेश्वर ठाकुर, बैद्यनाथ ठाकुर, आदि।

प्रिन्ट आ श्रव्य मीडिया सँ दृश्य मीडिया मे नवीन कर्ण केर प्रवेश विराटनगर केर लोकप्रिय टेलिविजन चैनल मकालू सँ होइत छन्हि। २०६८ साल सँ मकालु टेलिभिजन मे प्रवेश, मकालु मे मैथिली भाषाक न्यूज डेस्कक जिम्मेदारी लय कय बढोत्तरी करैत समाचारक संख्या दुइ टा कयलाह, भोर १० बजे आधा घन्टा आ रातिक १० बजे आधा घन्टा। २०७४ साल साओन महीना सँ विराटनगर सँ प्रकाशित होमएवला न्यू सृष्टि दैनिक मे पृष्ठ संयोजकक रूप मे मैथिली केँ प्राथमिकता मे रखैत ‘हिपमत’ पृष्ठक साप्ताहिक संयोजन कयलनि, जेकर १ सय अंक पूरा कय केँ विराम देबाक जानकारी दैत छथि नवीन कर्ण। तहिना २०७४ साल मे विराटनगर सँ प्रसारण होमएवला रेडियो नागरिक मे आबद्ध भऽ प्राइम टाइम मे मैथिली भाषाक दुइ गोट बूलेटिन संचालन एक समाचार प्रमुख केर हैसियत सँ कयलाह। ओहि रेडियो मे ६ महीनाधरि समाचार चलल छल। मकालु टेलिविजन मे मैथिली विषयवस्तु समेटिकय अनेकौं महत्वपूर्ण रिपोर्ट सब तयार करबाक श्रेय हिनकहि भेटैत छन्हि। सिक्की कला, मिथिला चित्रकला, पमरिया नाच, मौर केर बनेबाक कला आ उपयोगिता, बथनिया नाच लगायत विभिन्न मैथिल जातीय समुदायक रिपोर्टिङ करैत मैथिली भाषाक गहिंराई केँ जन-जन मे स्थापित करबाक संचारकर्म संग विगत ९ वर्षक अवधि मे नेपाली तथा मैथिलीक सम्मिलित करीब १ हजार सँ बेसी वीडियो रिपोर्ट तथा १० हजार सँ बेसी समाचार संकलन करबाक विशाल योगदान केर कदर स्वरूप हिनका कइएक महत्वपूर्ण सम्मान सँ सम्मानित सेहो कयल गेलनि अछि।

मैथिलेतर विद्वान् संग मैथिलीभाषी सृजनकर्मीक योगदान

लेखन आ प्रकाशन – एहि दुनू कार्य लेल आरो कइएक व्यक्तित्वक नाम उच्च स्थान पर गानल जाइत छन्हि। एहि मे गैर-मैथिलीभाषी लक्ष्मीकान्त नेवटियाक नाम सेहो मुख्य रूप सँ लेल जाइत छन्हि। स्वयं मारवाड़ीभाषी रहितो नेपाली आ हिन्दीक संग मैथिली मे निरन्तर लिखबाक आ प्रकाशित करबाक कार्य नेवटियाजी द्वारा होइत रहल अछि। ‘कारी सुरुज’ (नेपाली सँ मैथिली मे अनुवाद) केर लेखक शिव नारायण पन्डित ‘सिंगल’, भगवान झा, सुरेन्द्र सिंह ठाकुर, कुमुद रंजन झा, कुमार पृथु, कुमारी श्रेया, प्रेम नारायण झा, वसुन्धरा झा, वन्दना चौधरी, शिवम मिश्रा प्रशान्त, दीपेन्द्र यादव मैथिल, विद्यानन्द बेदर्दी, दयानन्द दिक्पाल यदुवंशी, आदि अनेकों सर्जक मैथिली भाषाक साहित्य, संचार व समग्रता केँ रक्षा लेल निरन्तर अपन योगदान दैत रहैत छथि।

समग्रता मे मैथिली संचारक संभावना आ भविष्य स्वर्णिम

पूर्वी नेपाल मे मैथिलीक स्थान सर्वाधिक बाजल जायवला नेपाली पछाति दोसर प्रमुख स्थान पर अछि। लगभग ५ लाख ३५ हजार केर जनसंख्या २०६७ सालकेर जनगणना सँ देखल जाइत अछि। मोरंग मे लगभग ३५% सर्वाधिक जनसंख्याक भाषा, सुनसरी मे नेपालीक २९% आ मैथिलीक २८% लगभग समान-समान संख्याक भाषा, झापा नेपाली, राजवंशी, लिम्बू पछाति मैथिलीक ५.५% संख्या – एहि तरहें डेमोग्राफिक कैपिसिटीक हिसाब सँ सेहो मैथिली भाषा मे संचार केर भविष्य मे संभावनाक प्रचुरता छैक। राष्ट्रक भाषा नीति मे संघक बाद प्रदेश द्वारा देल जायवला अधिकार मे मैथिली केँ दोसर राजकाजक भाषाक मान्यता देला सँ संविधानप्रदत्त न्याय प्राप्त हेतैक। एहि तरहें शिक्षा सँ लैत रोजगार धरिक भाषा मैथिली बनिकय एकटा स्वर्णिम भविष्य निर्माण करतैक से अपेक्षा कयल जाइत अछि।
हरिः हरः!!

Related Articles