लोकपरंपरा-जीवनशैली
– प्रवीण नारायण चौधरी
हमर हमउमेर कतेको लोक गायनक एहि विशिष्ट विधा सँ सुपरिचित होयब – भोरे-सकाले (अन्हरभोरे – प्रातःकाल) ब्रह्ममुहूर्त मे नींद टूटब आ जगलाक बादो किछु काल बिछाउने पर बैसल-बैसल ईश्वरक विशेष नामजप तथा भजन-सुमिरन गेबाक एकटा अनुपम जीवनशैली मिथिला मे भेटैत छल। खासकय गामक जीवन मे बुढ-पुरान लोक एहि तरहें जियैत देखाइत छलाह। हमरा गोटेक बाबा आ बाबी लोकनिक पराती गायन मोन पड़ैत अछि। कियो जोर-जोर सँ सीताराम केर नाम लेथि, कियो रामायणक चौपाई लयबद्ध गायल करथि, मुदा ताहि सब मे पराती गायन केर विलक्षणता मधुरतम होइत छल। पराती मे मानवीय संवेदना केँ जगाबयवला पंक्ति सभक गान कयल जाइत छल। हमर माय सेहो गायल करय, “उठहु हे नन्दलाल, भोरे, उठहु हे नन्दलाल”। माने जे ई सुनैत देरी हमरा अपना एना बुझाइत छल कि माय इशारा मे हमरे कहि रहल अछि जे आब उठि जो। एहि मे आर कतेको लाइन छलैक जाहि मे सन्देश भरल बुझाइत छल। हम अपन जीवनक लगभग ५ दशक पूरा करयवला छी आर आइ करीब ४ दशक उपरान्त ओहि स्मृति सँ पर्यन्त एतेक ऊर्जा भेटि रहल अछि जे शब्द मे वर्णन करब कठिन अछि। एहि बीच स्नेहा झा (नेपालक एक चर्चित विदुषी संचारकर्मी) “प्राण सँ प्रिय राम हमरो प्राण सँ प्रिय राम” बोलक परातीक मुखड़ा शेयर कएने छलीह। हुनका सँ पूर्ण पाठ मांग कयल। ओ पठौलीह। पुनः भारती बहिन द्वारा एकटा आर महत्वपूर्ण “जुनि करू राम वियोग, हे जानकी, जुनि करू राम वियोग”, जाहि मे त्रिजटा जखन जानकी जी केँ अपहृता अवस्था मे लंकाक अशोक वाटिका मे बुझायल करथिन ताहि भाव केँ राखल गेल अछि, तहिना एक प्राप्ति भरद्वाज जी सेहो फेसबुक पर श्रीराम केँ वनवास जायकाल मे लोक-समाज द्वारा राजमहल सँ बाहर हुनकहि ओतय रुकबाक भाव केर पराती पठायल गेल अछि। हम एखन धरिक संकलन अहाँ सभक लेल सेहो राखि रहल छी। ई विधा एखन कम सुनय लेल भेटैत अछि। लगैत अछि जे बाबा-बाबी संग ई परम्परा सेहो लुप्त भऽ गेल। लेकिन, ई जियय, यैह अपील करब सब सँ।
१.पराती
प्राण सँ प्रिय राम,
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम
बकसर सँ एक मुनिवर आयल, आयल अयोध्या धाम
देहु राजा राम-लक्ष्मण, जाहि सँ मोहि काम
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम…
लेहु मुनिवर तुरंग गजरथ, वसन भूषण धाम
आउर इच्छा होए मुनिवर, लेहु अयोध्या धाम
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम….
नहि हम लेब तुरंग गजरथ, वसन भूषण धाम
लेब हम बस राम-लक्ष्मण, ताहि सँ मोहि काम
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम….
ताड़का खल अधम निसचर, देहु यज्ञ मे भंग
राम विनु बध करत के तैँ, देहु नृप मोहि संग
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम….
मन मे तर्क करे राजा दशरथ, मुनि तप अग्नि समान
जो कदापी मोहि श्राप देता, जरत धन ओ धाम
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम….
राम-लक्ष्मण के कहल राजा, जाउ मुनिजी के ग्राम
ताड़िका के मारि प्रभु पुनि, पलटि आउ निज धाम
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम…
करी प्रणाम पितु मातु मुनि संग चलल लक्ष्मण राम,
तुलसीदास प्रभु तुम्हरे दरशके रहत नित दिन ध्यान,
हमरो, प्राण सँ प्रिय राम….
सुश्री Sneha जी द्वारा ई पराती उपलब्ध भेल अछि, भेटबो कयल प्रातःकाल केर समय मे। हार्दिक आभार स्नेहा जी! भगवती अहाँ केँ सदिखन प्रसन्न आ सफल राखथि।
अपन माय, काकी, बाबी लोकनिक मुंह सँ ई पराती बाल्यकालहि सँ सुनैत रहल छी। जेँ एहेन महत्वपूर्ण आध्यात्मिक भजन-कीर्तन-गायन केर अभ्यास पूर्वज लोकनि कयलनि तेँ हमरो मे किछु वैह अन्तर्शक्ति निहित अछि। आइ बड दिनक बाद बाबी आ माँ केर मुक्तकंठ पराती गायन स्वयं सेहो कयल। पुनः आभार स्नेहा जी!
हरिः हरः!!
जुनि करू राम वियोग
सुतल छलहुँ हम, सपन एक देखल
देखल अबध केर लोक
हे जानकी, जुनि करू राम वियोग….
दुइ परुष हम, आबैत देखल
एक श्यामल एक गोर
हे जानकी, जुनि करू राम वियोग…
लंकापुरी हम, जरैत देखल
निसिचर करय किलोल
हे जानकी, जुनि करू राम वियोग….
सेतु प्रबल हम, बान्हैत देखल
समुन्द्र मे उठय हिलोर
हे जानकी, जुनि करू राम वियोग….
तुलसीदास प्रभु, तुम्हरे दरस को
मारल रावण चोर
हे जानकी, जुनि करू राम वियोग…
आइ पुनः दोसर अनुपम पराती लिखिकय पठेलिह भारती आ से मानू हमरा फेर अपन बाल्यकाल में लय कय चलि गेल अछि, सोझाँ बाबी केँ गबैत देखि रहल छियनि, सुनैत सुनैत रियाज एतेक भ गेल अछि जे अपनो गुनगुना रहल छी।
हरिः हरः!!
होइत प्रात ओहि वन जायब, जाहां सीता राम
हे जननी हम ने जियब बिनु राम…….
हे जननी हम ने जियब बिनु राम……..
हे जननी हम ने जियब बिनु राम…….
हे जननी हम ने जियब बिनु राम…….
हे जननी हम ने जियब बिनु राम…….