बाढि आ काव्य – कमला नदीक ओ जबानीकाल

साहित्य

– सत्य नारायण झा

हमरा गामक पूब कमलाक धार छैक । आब त एहि धारक कोनो अस्तित्व नहि छैक मुदा हम जखन नेना रही तखन एहि धारक बाढ़ि सँ लोक त्रस्त रहैत छल । ओ भीषण क्षण एखनो केखनो कय मोन परि जाइत अछि त देह सिहरि जाइत अछि । चारि मास लोक एहि बाढ़ि सँ आक्रान्त रहैत छल । मुदा 1954-55 मे धार बलान मे मिलि कय एखन झंझारपुर दय बहैत अछि । हमरा गामक धार मे लोक सभ कतेको घर बना कय रहैत अछि । ओही धार कमला पर हम ई कविता 2011 मे लिखल आओर विदेह मे इ छपल सेहो छैक ।

मरलाहा धार

धारक कछेर मे बैसल टुकुर टुकुर तकइत छी,
तकइ छी एहि धार क’, तकइ छी ओहि पार कs
ई यैह ओ धार छैक,
सभक करेज पर छुरी चलबैत छलै
जवानों क’ दिल धरकबैत छलै ।
एकर जखन जवानी रहैक,
कतेक उफनैत छलै, कतेक फनकैत छलै
जेना एकरा आगा कियो नहि छै ?
एकरा डरे कियो सुतैत नहि छल
ई कखन की करत, एकर कोनो ठेकान नहि ।
गामक गाम सुन्न क’ देलक,
पोखरि, इनार, गाछी विरछी सभ नाश केलक,
ई गामक जेठरैयत छल, गामक पटवारी छल
एकर आगमने सुनि लोक कपैत छल ।
बाप रे फेर डकुबा एतैक,
एहिबेर नहि जानि की करतैक ?
समूचा गाम क’ सुड्डाह केलक,
घर, आँगन, दलान तोरलक ।
धीयापूता कलोल करैत छल,
भूखे पेटकान धेने, बेजान रहैत छल ।
मुदा, एहि डकुबा कए कनेको दया नहि विवेक नहि,
निष्ठुर हिरदय, कर्कश स्वर,
अगिया बेताल छल, ई धारे नहि, महाकाल छल ।
कतेक कए मांग पोछलक, कतेक कए लहठी तोरलक।
कतेक कए कोखि उजारलक,
ई राक्षसे नहि, पैघ भक्षक छल ।
एकर प्रवाह तेज होयते, लोक सिहरि जाइ छल,
केखनो सीधा दौडइत छल, पाछू घुमैत छल,
चक्कर कटैत छल,
विकराले नहि, भयानक लगैत छल ।
समय चक्र उनटलइ, एकरो अंत एलइ
एकरा बुझल नहि छलैक, एकरो काल घेरतइक,
इहो एक दिन निष्प्राण हेतैक ।
एकरा करेज पर लोक घर बान्हि देलकै,
ई निर्जीव भेल परल, नंगटे ओंघरायल छैक,
जतेक पाप केलक, सभक फल पेलक ।
एकर हाल भिखमंगनी जकाँ छैक,
एकरा देह पर गुदरी लादल छैक,
हुक हुकी छैक, मगर टुकुर टुकुर तकइ छैक हमरे जकाँ,
जेना हम तकइ छी एखन एकरे जकाँ!