लेख
– वाणी भारद्वाज
दुर्गापूजा आ हरश्रृंगार फूलक सुगंध
आइ भोर पार्क मे टहलय काल मे हरश्रृंगार गाछ मे फूल लागल आ जमीन पर खसल देखिकय मोन विचलित कऽ देलक. अपन नेनपन केर दुर्गापूजा धक् सं मोन पड़ि गेल. कोइलख गामक भगवती स्थान, मा भद्रकाली प्रांगण मोन पड़ि गेलीह. ओना आन गाम जेकाँ कोइलख मे दुर्गा मा केर मूर्ति नहि बनैत छैन्ह. कियैक तँ मा भद्रकाली जेना अपन भव्य छवि सं दसो दिशा मे अपन भव्यता पसारने रहैत छलथिन्ह. आइयो दुर्गापूजा सुनिते भगवती स्थान केर दृश्य घुमय लगैत अछि. बहुतो जगहक दुर्गापूजा देखलहुँ मुदा कोइलख गाम सन नहि. कलस्थापन केर भोर सं गामक बच्चा सब दुर्गा चालिसा आ संगहि बुजुर्ग सब अपन हाथ मे दुर्गासप्तसतीक पोथी लय आ लोटा मे अछिञ्जल भरने भगवती स्थान चलि जायत छल. मंदिर केर बरामदाक चारूकात आमने-सामने बैसि पाठ करय लगैत छल. तहिना गामक बुजुर्ग महिला सब अपन पोती वा नातिन केँ संग लय भगवतीक पूजा करय जाइत छलीह. पहिलका समय छल जे प्रसाद मे अक्षत आ चीनी सब चढबैत छलीह आ भगवती ओतबो मे सब पर प्रसन्न रहैत छलथि. हमहूँ अपन माँ संग दसो दिन भगवती स्थान जाइत छलहुँ. एक दिन पहिने साँझ मे हरश्रृंगारक गाछक नीचाँ साफ सुथरा कय गोबर सं नीपिकय छोडि दैत रही आ भोरे-भोर पहिने भरि डाली फूल बिछैत रही. भरि डाली फूल भगवती केँ चढबैत छलहुँ. आ साँझ मे गामक कनियाँ सब दर्शन लेल जाइत छलीह. पूजा मे खास रौनक सप्तमी, अष्टमी आ नवमी केँ रहैत छल. तीनू दिन भोर सं बलिप्रदान होइत छल. भरि गामक लोक अपन छागर लय केँ भगवती मन्दिर अबैत छलथि, बलिप्रदान करवा सब गामपर जाइत छलाह. साँझ मे तीन बजे सं कुमारि-कन्या-पूजन होइत छल. भरि गामक कुमारि केँ नोत पड़ैत छलन्हि आर सामूहिक कुमारि-भोज होइत छल, कुमारि सबकेँ अंगोछा आ खोंइछ दय बिदाह कयल जाइत छलन्हि. फेर आठ बजे सं भव्य आरती होइत छल. तीनू दिनक प्रसाद तीन रंगक चढैत छलन्हि. कनिये मोन अछि, एक दिन चिक्कस वाला, एक दिन लड्डू आ एक दिनक मखानक खीर चढाओल जाइत छलन्हि. मजाक मे कहल जाइत छलैक जे धूल ढेला आ कादो. तीनो दिन आरती काल गामक नवकनिया सब अपन सासु मा दियादिनी संग आबैत छलीह. पूरा प्रांगण बौआसिन सब सं भरि जाइत छल. कनियाँ सब लंबा-लंबा घोघ तनने, आ घोघ तोर सं गप्प करैत! विहंगम दृश्य होइत छल. पता नहि कनियाँ सब घोघ तोर सं की देखैत हेथिन्ह. कोइलख मे तीन टा टोल छलैक, तीनू टोलक कनियाँ सब आबैत छलथिन्ह. भगवती स्थान ऐहन जगह जतय बिना काज परोजन के बिना लियौनक सब केँ सब सं भेटघाट होइन्ह. समूह-समूह मे बंटल लोक आ आपस मे सबकेँ हेम-छेम भऽ रहल अछि – बहुत सुन्दर दृश्य रहैत छल. कनियाँ सब कनी निश्चिन्त आ कनी हड़बड़ायल सेहो जे ‘कनिया आब चलू’. सासु माँ केर आदेशक जेना इन्तजार रहैत छलन्हि. आब त सबकिछु बदैल गेल अछि. तहिया कनिया सब अन्हारो मे घोघ तानि कऽ चलैत छलीह. बच्चा सब मे बेस उत्सुकता! हम घोघ तानल काकी केँ नीचा सं हुलकी मारिकय मुंह देखैत छलियन्हि. पहिने कनियाँ सब लजाइत छलीह. आब समय साल बदलि गेलैक अछि. आरतीक प्रसाद वितरणक बाद नाटक शुरू होइत छलैक. गामक बुजुर्ग पुरुष सब लीड रोल खेलाइत छलाह. किछु पात्र केर नाम एखनहुँ मोन अछि. गामक युवा माउथ ऑरगन बजा गीत सुनबैत छलाह. गामक पुरुष सब भरि राति बैसि नाटक देखैत छलाह. पहिने मनोरंजनक साधन यैह सब छल. कनीकाल हमहुँ सब अपन उम्रक बच्चा सभक संग बैसिकय देख लैत छलहुँ. आनो-आन गाम सं लोक सब आबैत छलखिन्ह. दशमी दिन सब ज्येष्ठ अपना सँ छोट केँ जयंती देलाह आ छोट अपना सं पैघ के पैर छूबिकय गोर लगैत छलाह. आइयो एहिना मोन पड़ैत अछि दुर्गापूजा. बलिप्रदान केर प्रसाद आठ दस बूट्टी प्रसाद, कोना बनत आ कोना छोड़ल जाय, एहि दुविधा मे. कनिये आर कियो द जइतय ई आस मे! आब बहुत किछु बदलि गेलैक. समय बदलि गेलैक. मुदा नेनपनक स्मृति ओहिना आँखिक सोझाँ घुमि जाइत अछि.