गृहस्थ लेल साधारण नियम
(स्रोत: कल्याण)
१. प्रातकाल सूर्योदयसँ पहिले उठू।
२. उठिते भगवान् केर स्मरण करू।
३. शौच-स्नान आदि सँ निवृत होइत भगवान् केर उपासना, सन्ध्या, तर्पण आदि करू।
४. बलिवैश्वदेव (नमकरहित पाकल भोजनसँ अग्निकेँ हवन) केलाके बाद समयपर भोजन करू।
५. रोज प्रातकाल माता, पिता आ गुरु आदि श्रेष्ठजनकेँ प्रणाम करू।
६. इन्द्रियकेर वश नहि भऽ, ओकरा ऊपर नियंत्रण करैत यथायोग्य काज लियौक।
७. धन कमाइ लेल छल, कपट, चोरी, असत्य आ बेईमानीकेर तयाग करू। अपन कमाइकेर धनमें यथायोग्य सभक हक बुझू।
८. माय-बाप, भाइ-भौजाइ, बहिन-बुआ, स्त्री-पुत्र आदि परिवारकेर आदर आ प्रेमसँ पालन करू।
९. अतिथिकेर सत्य मनसँ सत्कार करू।
१०. अपन हैसियत अनुसार दान करू। पडोसी आ गामवासीकेर सत्कारपूर्ण सेवा सदिखन करू।
११. सभ कर्मकेँ पैघ सुन्दरता, सफाइ आ नेकनीयतीसँ करू।
१२. केकरो अपमान, तिरस्कार आ अहित नहि करू।
१३. अपन कोनो कर्मसँ समाजमें विश्रृंखलता आ प्रमाद उत्पन्न नहि करू।
१४. मन, वचन आ शरीरसँ पवित्र, विनयशील आ परोपकारी बनू।
१५. सभ कर्म नाटकक पात्रक समान अपन नहि मानि करू, लेकिन करू ठीक सावधानीक संग।
१६. विलासिता सँ बचल रहू – अपना लेल खर्च कम लगाउ। बचतकेर पैसासँ गरीबक सेवामें खर्च करू।
१७. स्वाबलंबी बनिकय रहू – दोसरपर अपन जीवनक भार नहि डालू।
१८. निकम्मा कहियो नहि रहू।
१९. एहि बात केर पूरा ध्यान राखू – अन्यायकेर पैसा, दोसरक हककेर पैसा घरमें कहियो नहि आबय।
२०. सभ कर्मकेँ भगवान् केर सेवाक भावसँ – निष्कामभावसँ करबाक चेष्टा करू।
२१. जीवनक लक्ष्य भगवत्प्राप्ति होइछ, भोग कथमपि नहि – एहि निश्चयसँ कखनहु नहि टरू आ सभ काज एहि लक्ष्यकेर साधना हेतु करू।
ॐ तत्सत्!
हरि: हर:!!