इतिहास
– डा. उपेन्द्र ठाकुर
“प्रारम्भिक राजतंत्रः विदेह”
(मिथिलाक इतिहास, लेखकः डा. उपेन्द्र ठाकुर)

किन्तु मनुक अनुसार “वैश्यद्वारा ब्राह्मणीक गर्भसँ उत्पन्न सन्तान वैदेह कहबैत अछि जे विदेहक अर्थात् उत्तरी बिहारक आवासी अछि। ओ सभ राजान्तःपुरक पहरा क’ क’ अपन जीविका चलबैत अछि।”*३ बुझाइत अछि जे मनुक समय मे जैन आ बौद्ध धर्मक प्रसारक कारणे जाति सम्बन्धी आचार-विचार शिथिल भ’ जयबाक फलस्वरूप विदेह लोकनिक समादरक दृष्टि सँ नहि देखल जाइत छलनि। मनुस्मृतिक*४ अनुसार ब्रह्मर्षिदेश धार्मिक भरत लोकनिक निवासस्थल छल तथा पुरु-पंचाल लोकनिक आर्यावर्तक निवासी छलाह जे राजनीतिक तथा सांस्कृतिक उपलब्धिमे अग्रणी छलाह।
ऐतरेय ब्राह्मणमे परवर्ती वैदिक युगमे उत्तर भारतमे बसनिहार विभिन्न जनकक उल्लेख भेटैत अछि।*५ एकर अनुसार मध्यप्रदेशमे पुरु-पंचाल वंश तथा उशीनगरक राज्य छल। मध्यप्रदेशक दक्षिणमे सात्वतलोकनि रहैत छलाह तथा प्राच्यलोकनि एकर पूर्व मे बसल छलाह।
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सन्दर्भः
*१. ला, क्षत्रिय ट्राइब्स, पृष्ठ १२६
*२. सै. बू. ई. १२, भूमिका XLII-XLIII
*३. मनुस्मृति १०.२; १०.२६; तु. १०.१७.१९, ३३, ४७, बार्नेट, एन्टीक्विटीज ओफ इंडिया, पृष्ठ १३३, गौतम, ४१७
*४. मनुस्मृति १०२; १७-२२
*५. ८.३.१४ तु. शत. पथ. ५-१; १२-१३
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ई प्राच्य काशी, कोशल, विदेह तथा मगधजन छलाह। ब्रह्मर्षिदेशमे कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पञ्चाल तथा शूरसेन राज्य सम्मिलित छल। ऐतरेय ब्राह्मणमे एहि भूमिकेँ मध्यमादिक कहल गेलैक।*१ किन्तु, ऐतरेय ब्राह्मणमे पूर्वप्रदेशक रूपमे गृहीत काशी, कोशल, विदेह तथा मगधसँ पूर्वमे स्थित जनसभ मनुस्मृतिमे ब्रह्मर्षिदेशसँ बहिष्कृत अछि। ई स्थिति वस्तुतः आर्य संस्कृति वाहक होयबाक दावा कयनिहार आर्यलोकनिक तथा उक्त आर्यजन द्वारा हेय बूझल गेल प्राच्यदेशीय आर्य जनमे स्पष्ट विभेदकेँ प्रदर्शित करैत अछि।
विदेह तथा लिच्छविक व्रात्यक रूपमे वर्गीकरण ई सूचित करैत अछि जे ब्राह्मणधर्मक प्रमुख प्रतिनिधिक रूपमे वैदेहलोकनिकेँ उपस्थापित कर’ बला शतपथब्राह्मणसँ मनुस्मृति पर्याप्त परवर्ती रचना थिक।*२ एहि ग्रन्थमे उक्त जातिकेँ प्रदत्त स्थान प्रायः एहि तथ्यसँ सम्बद्ध अछि जे विदेहजन, विशेषतः एकर लिच्छवी शाखा, बौद्धधर्मक विकासमे महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कयलक। ई महत्वपूर्ण विषय अछि जे जैन तथा बौद्धधर्मक उद्भव ओही प्रदेशमे भेल जतय शतपथब्राह्मणक रचना भेल छल।*३
कतिपय विद्वानक अनुसार विदेघ माधव तथा हुनकर पुरोहित गोतम रहुगणक उपाख्यान आर्यसभ्यताक पूर्वाभिमुख प्रसारक प्रमाण थिक।*४ ऋग्वेद कालमे आर्यसभ्यताक केन्द्र पाँचटा नदीक प्रदेश – पश्चिमसँ सरस्वती तथा दृषद्वती नदीक मध्यमे स्थित भरतजनक भूमि दिस घसकि रहल छल। आर्यसभ्यताक एहि पूर्वाभिमुख प्रसारसँ प्रतीत होइत अछि जे ब्राह्मणकालमे कुरु-पंचालदेशसँ क्षेत्र, विशेषतः काशी, कोशल तथा विदेह विशिष्टता प्राप्त क’ चुकल छल।*५
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*१. २.१७-२१
*२. डा. सुनीतिकुमार चटर्जी विदेह तथा लिच्छवीकेँ भारत-मङ्गोल शाखाक मानैत छथि (द्रष्टव्य – किरात-जन-कीर्ति, ज. रो. सो. बं. भाग, १६, १९५०, स. २, पृष्ठ १६९-१७९)। अस्पष्ट अछिजे डा. चटर्जीक उक्त धारणाक आधार मनु एवं अन्य विद्वान लोकनिक उपर्युक्त कथन अछि जकर अनुसार विदेह तथा लिच्छवि व्रात्य छलाह।
*३. वेबर, हिस्ट्री ओफ इण्डियन लिटरेचर, पृ. २७६-७७, २८४
*४. सै. बु. ई. १२, पृष्ठ १०
*५. कै. हि. इ. भाग १, पृ. ११६-१७; डी. आर. भण्डारकर, वाल्यूम ला, पृष्ठ २, वैद्य हि. सं लि. भाग १, पृ. १६; दी वेदिक एज पृ. २२७-३७
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क्रमशः….
नोटः बहुत रास सन्दर्भ वस्तुक वृहत् नाम केँ हम स्वयं खोजि रहल छी। पढैत-लिखैत बाद मे पता लागत तऽ स्पष्ट करब।
हरिः हरः!!