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मृत्युक बाद लोह आ पाथर छुबाक मानवीय मर्म पर वाणीक आवाज

विचार-विमर्श

– वाणी भारद्वाज

जेना कहल गेल छैक जे कोनो तरहक अनुभव अपना पर बीतत तखने होयत. पिताजीक अचानक मृत्यु हमरा सब केँ शून्य क देने छल. एकदम हस्तप्रत छलहुँ. ऐतेक जिन्दादिल इन्सान एना कोना जा सकैत छैथ? प्रकृति के नियम छैक. तथापि, संस्कार मे जाय सं पहिने गामक काका सब कहि गेलाह, जखन कर्त्ता घुरि क औता तखन लेल लौह, पाथर आ आगि सामने रखने रहब कियैक तऽ घुरि क अयला पर ओ पहिल काज ई वस्तु सबकेँ छूता. कनी आश्चर्य, कनी जिज्ञासा बनले रहल. मैथिल कर्मकाण्ड मे ई सब की? खैर! काज सँ निवृत्त भेलाक उपरान्त एक टा काका साँझ खन अओलाह, बोल भरोस दैत हमरा सब केँ, ओना त सब भाइ-बहिन व्याहल छलहुँ, मुदा पिताक स्थान त रिक्त भ गेल छल. बातहि कहलाह मैथिल कर्मकाण्ड मे बहुत शक्ति दै के सामर्थ छैक, जेना संस्कार के बाद कर्ता यानी जे जेठ भेला हुनका पर पूर्ण घरक भार आबि जायत छैन्ह तेँ लौह छूला के बाद ओ लौह जेकाँ मजबूत भऽ जाइत छथि. घरक रक्षा लेल पाथर बनि जेबाक छैक. कियैक त अपन परिजन केर गेलाक दुःख सँ निबारन लेल ई सब छुआयल जाइत छैक. समय बीतल, ओना त बढई केर काज करैत कतेको बेर देखने होयब, मुदा एहि बेर बढई केर रंदा आ तेग जीवन केर यथार्थ बुझा देलक. ओना आब हमरो उमर आधा दशक केर ओर क्रमशः बढल जा रहल अछि. बहुतो तरहक नीक बेजाय बात सं सामना करय पड़ल ताहि क्रम मे ई सोचलहुँ, जेना बढई लकड़ी के बराबर करय लेल किछेक देर पर पाथर ल बैसिकय अपन तेग केँ चोख करय लागैत अछि. चोखगर होइते ओ लकड़ी सन सख्त वस्तु केँ बराबर कय दैत छैक. तेग आ पाथर केँ यदि मानव जीवन सं जोड़ल जाय त सच बुझना जायत. मनुष्य जतेक बेसी संघर्ष अपन जीवन मे केने रहैत अछि ओतबहि कठोर कहू वा धरगर – चोखगर भ जायत अछि. आ चोखगर शब्द सँ सामने वाला बहुत आहत होइत अछि. परिवार वा समाज के  व्यवहार सं मनुष्य पाथर बनि जाइत अछि. त पाथर आ चोखगर प्रहार लेल परिवार वा समाज तैयारो त रहैथ!

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