बेटी पुछलनि बाप सँ – हमर कोन गाम थिक (लघुकथा)

लघुकथा

– रूबी झा

सासूर सँ दुइ-चारि बेर रैस-बइस कँ आयला के बाद बहुत दुःखी भऽ पुछलखिन्ह अन्नपूर्णा अपन पिता सँ – बताऊ, हम कोन गामक छी आ हमर घर कतय अछि? अचंभित भय बजलाह नेन कान्त जी (अन्नपूर्णा के पिता) – ई की तोँ पुछैय छैं एखन, ई सवाल पूछैय के कि परोजन? अन्नपूर्णा भाव-विभोर भय कहय लगलीह – बाबूजी! हमरा सासूर में सब अहि गाम (नैहर) के नाम लय संबोधित करैय छथि, छोटो-छिन गलती भेला पर सासु ननैद कहैय छथि अपन घर सँ जैह सीखि कँ आयल रहतैक सैह ने करतैक। और आय बुलय लेल लाल काकी आंगन गेल छलौंह तँ हुनक नवकी पुतोहु पूछलखिन्ह हमरा लेल जे ई के छथिन तँ लाल काकी कहलखिन्ह ई नेन कान्त बौआ के चम्पा वाली बेटी छैक। लाले काकी नहि, सब अहिना कहैत अछि, आय तँ माँओ कैह देलक अपन घर जहिहें तँ काज करिहें, दुइ-चारि दिन लेल एलौं हें नैहर, तोँ तऽ पाहुन छैँ। नेन कान्त जी बेटी केँ कहैय लगलाह – तोहर इहो घर अपने घर छौ, तोँ दुःखी कियैक भऽ रहल छैँ। अन्नपूर्णा बजलीह – बाबूजी! पहचान-पत्र आ आधार-कार्ड पर तँ सेहो आब हमर पता बदैल गेल, तँहन हमर ई घर केना भेल? कि बेटी केर कोनो गाम आ कोनो घर अपन नहि होय छै? एक दिन अहाँक जमाय कुनो बात पर खीसिया गेलाह तँ कहला जो अपन घर। बाबूजी बताउ ना! हमर अपन घर कोन अछि, कतय अछि, हम कोन गामक छी? नेन कान्त जी अपन बेटी केँ भरि पाँज पकड़िकय कहय लगलाह, अहाँ के दुनू घर अछि, अहाँ एना कियैक बजैय छी? हमरा हिसाबे लगभग सब बेटी के अपन पिता सँ इहे प्रश्न हेतैन।