धनरोपनी सँ जुड़ल मिथिलाक साहित्य-संस्कारः गभ लेनाइ आ धनखेती लेल डाक-वचन

आलेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

धनरोपनी सँ जुड़ल मिथिलाक साहित्य-संस्कार

 
के नहि जनैत छी जे बिना अन्न-पानि मानव जीवन किंवा सम्पूर्ण पर्यावरणीय संतुलन, हर जीव-जन्तु आ जीवन पद्धति स्वयं असंभव अछि। हम-अहाँ जे मिथिलाक लोक थिकहुँ एतय सेहो खेती-पाती आ घर-गृहस्थी संग जीवनचर्याक अपन एक अलग विशिष्ट परम्परा सुस्थापित अछि। हालांकि ई परम्परा आजुक समय मे लोकपलायन केर चलते काफी आहत आ बेपटरी होइत देखल जाइछ। तथापि, जतय कतहु मिथिलाक लोक रहैत छथि, ओ आइयो एहि उच्च परम्परा आ समृद्ध जीवन-प्रणाली केँ अपना ढंग सँ ओहिना जीबि रहल छथि।
 
आउ, आइ बात करी धनरोपनी सँ जुड़ल किछु विशेष जीवनचर्या आर लोकसाहित्य पर। प्रसंगवश चर्चा कय रहल छी विद्वान् पंडित महेन्द्र ठाकुर संग। जानय चाहि रहल छी अपना ओतुका खेती परम्परा मे धनखेती सँ जुड़ल किछु विशिष्ट बात।
 
पंडित ठाकुर ‘गभ लेबाक’ आवश्यकता आ विधान पर सब सँ पहिने लिखि लेबाक लेल कहैत छथि। ई ‘गभ लेनाय’ कि भेल? धनरोपनी प्रारम्भ करबाक लेल मिथिलाक लोकपद्धति मे सर्वप्रथम देवता, ऋषि, पितर, अतिथि, पशु-पक्षी आदि केँ सुमिरन करैत ५-५ गोट धानक गाछ स्वयं गृहस्थ (खेतक मालिक) द्वारा रोपबाक विधान केँ ‘गभ लेनाय’ कहल गेल अछि। पंडित ठाकुर कहैत छथि जे नवान्नक वास्ते जे चुड़ा कुटल जाइत अछि ताहि मे सँ थोड़ेक रास चुड़ा ऐगला सालक धनखेती वास्ते धरती पूजा (खेतक पूजा) लेल राखल जाइत अछि। यैह चुड़ा संग दही, गुड़ (चीनी), अम्मट, केला ओ अन्य फल आदिक संग अरिकंचनक पात पर लैत अरिकंचनक गाछ सेहो संग मे लय माटिक तर मे गाड़ि देल जाइछ। कामना ई रहैत अछि जे अरिकंचनक गाछ जेकाँ हरियर आ अमर हमर ई खेत रहय, यैह सोचि अरिकंचनक पात पर प्रसादक भोग धरती माता (खेत) केँ लगबैत प्रार्थनापूर्वक एकटा अरिकंचनक गाछो रोपि दैछ गृहस्थ।
 
तदोपरान्त ५ गोट धानक गाछ देवताक भाग मे हुनकहि लोकनि केँ सुमिरन करैत गृहस्थ (खेतक मालिक) स्वयं रोपैत अछि। पुनः ५ गोट गाछ ऋषि लोकनि केँ सुमिरन करैत हुनकर भाग मे रोपल जाइत अछि। फेर ५ गोट गाछ पितर, ५ गोट गाछ अतिथि आर ५ गोट गाछ पौस प्राणी एवं पशु-पक्षी व हरेक जीव लोकनिक भाग मे अपन राज्य-राष्ट्रक समृद्धिक निमित्त रोपल जाइत अछि। आर एहि सम्पूर्ण प्रक्रिया केँ ‘गभ लेबाक’ क्रम मे पूरा कयल जाइछ। ताहि उपरान्त धनरोपनीक प्रक्रिया सामूहिक रूप सँ आरम्भ कयल जाइछ।
 

गभ लेबाक लेल लोकसाहित्य मे प्रचलित मंत्र एना अछिः

 
खेखनापुरी पवन के धारी
लागे फूल करे केलवारी
सोभरन फूले मोती झबरे
मोती मूंगा झबरलाल
लक्ष्मी केर दुइ पूत
धनसुख आ धनपाल
जा हे लक्ष्मी चारू आरि
बीच्चे कित्ता थीर होउ!!
 
एहि मंत्रक उच्चारण करैत गभ लैत देवता, ऋषि, पितर ओ समस्त लोक केँ सुमिरन करैत गृहस्थ (खेतक मालिक) धनरोपनी आरम्भ करबैत पुनः अपन घर वापस जाइत छथि। घर वापसी केलाक बाद ताहि दिन उत्सवमय माहौल रहैत अछि। सब कियो भोजन मे खीर आ पुरी ग्रहण करैत छथि। माल-जाल सभ केँ सेहो नवीन घास आदिक भोग प्रदान करैत छथि। बरद केँ सेहो महादेव बुझि दण्डवत् प्रणाम करैत छथि। हरक लागन सहित हर मे बसनिहार शिव आ विष्णु केर समस्त परिवार केँ गृहस्थ प्रणाम करैत अपन खेती-पाती आ उपजा नीको सँ नीक होयबाक विनती बेर-बेर करैत छथि।
 
एतय एक गोट बात आरो बहुत प्रासंगिक आ सारगर्भित ई अछि जे गृहस्थक हर मे शिव आ विष्णुक परिवार कोन रूप मे बसैत छथि। पंडित ठाकुर कहैत छथि जे हरक स्वरूप पर ध्यानपूर्वक मनन कयला उत्तर शिव आ विष्णु केर परिवार सहित मानव धर्मक आरो अनेकों पक्ष केर दर्शन होइत अछि। सब सँ पहिने हरक हरीश मे ५ गोट खत्ती केँ ओ पंचमहायज्ञ सँ तुलना करैत मानवोचित धर्म-निर्दिष्ट पाँच कर्म जे हरेक मनुष्य केँ जीवनोपार्जन लेल आवश्यक अछि तेकर परिचायक थिक। यानि बिना कर्म कएने कोनो जीव लेल जीवन अनुकूल परिणाम नहि दय सकैछ। कर्मरूपी यज्ञ करब जरूरी अछि।
 
हरीश उपरान्त ताहि सँ जुड़यवला पालो, जेकर केन्द्रमे ऊँच लिंगाकार स्वरूप स्वयं महादेव केर प्रतीक अछि। दुनू बगल बरदक कान्ह केर अन्तिम छोर पर लागयवला २ गोट कनैल क्रमशः कार्तिक ओ गणेश केर प्रतीक चिह्न थिक। एम्हर लागन जेकरा हरवाह हाथ सँ पकड़ने रहैत अछि तेकरा तोतारूपी कहल गेल अछि। शूक रूपी लागन शुकदेव ऋषि केँ मानल जाइछ। ओ हरवाह केँ प्रेरणा दैत रहैत छथि जे हरक चास केना-केना कयल जाय। नीचाँ खेत जोतय लेल प्रयुक्त हरक अग्रभाग केँ सीत मानल गेल अछि। यैह सीत सँ अवतरित भेल छलीह जानकी, जिनका सीता नाम पड़ल। यानि स्वयं लक्ष्मीक प्रतिक चिह्न भेल सीत। तदोपरान्त जाहि ठाम फार केँ लगायल जाइछ ओ ‘नास’ कहाइछ, ओ शक्तिस्वरूपा पार्वतीक प्रतिक चिह्न भेल। हरीश मे लगैत अछि एकटा बरैण – हिनका विष्णु केर प्रतिक मानल गेल अछि। यैह सभ केँ एकसूत्र मे बन्हने रहैत छथि। बिना बरैण हरक कोनो भाग सन्तुलित नहि रहि सकैत अछि। एहेन उच्च परिकल्पनाक संग मिथिलाक हर विश्वक अन्य कोनो भाग मे प्रयुक्त हर सँ भिन्न होइछ जेकरा ‘कटही हर’ लोकभाषा मे कहल गेल अछि।
 

उपरोक्त गभ लेबाक मंत्र केर व्याख्या

 
खेखनापुरी पवन के धारी – अर्थात् ‘ख’ आकाश केर परिचायक आकाशपुरी सँ हवा सहित वर्षा निरन्तर होइत रहबाक कामना कयल गेल अछि।
 
लागे फूल करे केलवारी – यानि हरियर-झबरल धानक खेत मे खूब लहगर फूल लागय जतय भँवरा आ अन्य चिड़ै-चुनमुनी कलरव करैत नृत्यगान करैत रहत।
 
सोभरण फूले मोती झबरे – धानक फूल उज्जर होइत अछि, से झबरिकय मोती समान शोभित हुअय।
 
मोती मूंगा झबरलाल – धानरूपी फल मोती, मूंगा समान खूब झबरल रहय।
 
लक्ष्मीक दुइ पूत – धनसुख आ धनपाल – अर्थात् लक्ष्मीक दुनू पुत्र धनसुख आ धनपाल केर कृपा बनल रहय। कुबेर केर कृपा बनल रहय।
 

आर, एहि लेखक अन्त मे धनरोपनी लेल डाक-वचन पर गौर करूः

 
आषाढ रोपी तान-वितान
सावन रोपी लबिकय धान
काँसी-कुसी चौठी चान
आब कि रोपबह हे किसान!
 
डाक वचन अनुरूप आषाढ मास मे धनरोपनी केला सँ परिणाम बहुत उत्कृष्ट भेटैत अछि। अहाँ जँ एको हाथ पर एक टाक गाछ रोपि दैत छी तैयो अहाँ केँ नीक उपजा भेटबाक संभावना रहैत अछि। सावन मे रोपनी करबाक लेल डाक वचन कहैत अछि जे एक बीत पर रोपू। तखनहि अनुकूल परिणाम भेटत। तदोपरान्त खेत मे आपरूपी कतेको तरहक कास-कुश आदिक प्रादुर्भाव होयब आरम्भ भऽ जाइत अछि। ई सब चौठी-चान यानि चौरचन पाबनि धरि अपन स्वरूप मे आबि जाइत अछि। अतः डाक किसान सँ कहैत छथि जे आब रोपनी कयलो पर कोनो लाभ नहि भेटत।
 
हम मिथिलावासी आइ तीव्रता सँ दोसरक सभ्यता दिश झुकल जा रहल छी। अपन अनमोल सभ्यता केँ छोड़ि विदेशिया नाच मे मस्त भेल जा रहल छी। आजुक पीढी केँ हर केर अर्थ सेहो नहि पता। ट्रैक्टर सँ खेत जोति कोहुना कृषिकर्म केँ बढा रहल छी। लेकिन हर केर महत्व केँ कम आँकि सेहो भूल कय रहल छी, से आजुक आर्गेनिक खेतीक बात विश्व परिवेश मे चलब शुरू भेला सँ जरूर अवगत होइत होयत। ताहि सँ एखन एतबे कहब जे अपन पूर्ण समृद्ध संस्कृति आ लोकाचार केँ हम सब बचेबाक लेल अपन-अपन स्तर पर किछु न किछु जरूर करी।
 
हरिः हरः!!