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बेटीक ब्याह अमेरिका वला ओझा सँ

लघुकथा

– वंदना चौधरी

कखनो क माय बाप अपने स अपन संतान के दुश्मन भ जाइत छैथ। एहने एकटा कथा अछि प्रकाश बाबू केर जे कि एकटा प्रख्यात डॉक्टर छलाह। बेटी सेहो डिप्लोमा कय लेने छलखिन। एक स एक योग्य लड़का केर कथा अबैत छलन्हि मुदा डॉ साहब केँ विदेश में सेटल लड़काक खोज छलन्हि। आखिर में एकटा बहुत सुंदर इंजीनियरिंग केने लड़का जे अमेरिका में रहैत छल ओकरा सँ अपन बेटी केर विवाह कय देलखिन, जमाय केँ छुट्टी केर अभाव छलैन तेँ विवाह केर पराते बेटी और जमाय दुनू अमेरिका चलि गेलखिन। आब फोन पर रोज बेटी सँ बात भ जाय छलन्हि। जखन छः मास दिन बीत गेल त डॉ साहब बेटी केँ कहलखिन जे अहाँ हमरा कखनो ओझा जी सँ बाते नै करबैत छी, जखन पुछैत छी त इहे कहिकय अहाँ फोन राखि दैत छियैक जे एखन ओ ऑफिस में छथि, से नै! आय अहाँ हमरा बात करा देब जखन ओ ऑफिस सँ आबि जेता। बेटी पिता केँ बेर-बेर जीद्द केला पर फोने पर जोर-जोर सँ कानय लगलीह। पिता केर शरीर त बेटी के रुदन सुनि कय पहिनहि काँपय लगलनि। जखन बेटी ई बात कहलखिन जे, “पापा, हम जहिया सऽ विवाह कय केँ एलहुँ, तहिया स एतय असगरे रहैत छी। ओ हमरा एहेन घर में कनिया बना क़ ल गेला जतय पहिने सँ हुनकर विवाहिता पत्नी रहैत छलखिन, जे कि एकटा विदेशी महिला छथिन। किछ दिन त हम हुनके सब लग हुनकर घरक नोकरानी बनि रहलहुँ, तकर बाद हम एकटा कंपनी में अपने काज करय लगलहुँ और अपन अलग रहय लगलहुँ। ई सब सुनिते डॉ साहब घायल हाथी जेकाँ जमीन पर खसि पड़लाह और फोन हाथ स छुटिकय टुकड़ी-टुकड़ी भऽ गेलनि। आब ई पाठक स्वयं तय कय सकैत छथि जे जीवन मे कोनो निर्णय आ बात-विचार, सख-सोगारथ, मनोरथ, कि सही और कि गलत होइछ।

 — feeling thoughtful.

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