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आशीर्वाद किनका-किनका सँ लेबाक चाही

हरिहर काका आ आशीर्वादक महत्व
 
आइ बेटी भावनाक जन्मदिन पर किछु विशेष बात मोन पड़ि गेल अछि। आशीर्वादक महत्व मोन पड़ि गेल अछि विशेष रूप सँ। हरिहर काका मोन पड़ि गेला अछि। लिखयवला केँ कोनो गहींर बात जखन मोन पड़ि जाइछ त स्वाभाविके रूप सँ ओ अपन मोन मे उचरल बात कतहु लिखिकय पाठक धरि पहुँचेबाक लेल बेहाल भऽ जाइत अछि। ओकरा मोन मे ई भावना अबैत छैक जे कहीं ई बात आरो केँ प्रेरणा दय सकत की! प्रेरणा लेबाक लेल हर तथ्य-कथ्य मे दम हेबाक चाही। ताहि सँ हम जे आइ हरिहर काका केर बहाने हुनकर फोटो रखैत किछु बात अहाँ सभक सोझाँ राखब तेकरा ठीक सँ मनन कयल जेबाक अन्तर्भाव अछि।
 
हरिहर कामत – हिनकर पूरा नाम छलन्हि। एकदम सत्य, सरल, ईमानदार आ सदिखन एकरूप भाव मे नहिये कोनो बेसी हर्ष आ न कोनो बेसी विस्मय । हिनकर सजीव छवि हम कहियो नहि बिसैर सकैत छी। हमरा अपन पिताक बाद जँ कियो खूब मानलनि तऽ ओ छलाह ‘हरिहर काका’। हमर पिताक लंगोटिया मित्र छलाह। दुनू गोटा मे बड पैघ मित्रता रहनि। सदिखन ‘डाक्टर साहेब’ कहिकय हमर पिता केँ संबोधन करथि। अन्यत्र केकरो सँ किछु सन्देश अथवा उपदेश वा सीख-शिक्षा किछु देबाक होइन त ‘डाक्टर’ सँ सेहो पुछू, हुनकर सलाह लिअ, आदि कहिकय सौंसे गामक लोक केँ सही आ सटीक मार्गदर्शन लेल जानल जाइथ हरिहर काका।
 
कतेको लोक हुनका ‘मैनजन’ सेहो कहैत छलन्हि, कारण सभक वास्ते सही मार्गदर्शक वैह छलखिन। केकरो कोनो गलत शिक्षा या कुटिल मार्गदर्शन ओ नहि कयलनि। कतेको लोक हुनका ‘मालिक’ सेहो कहैत छलन्हि, कारण कतेको परिवार केर भरण-पोषण करबाक लेल वैह सम्बल बनथिन। गाम मे जमीन्दारी प्रथा मे एक बड पैघ जमीन्दारक मैनेजर छलखिन हुनक पिता। हुनका अपनहुँ कोनो कमी नहि छलन्हि। लेकिन आम श्रमजीवी लोक प्रति हुनका मे दयाभाव कुटि-कुटिकय भरल रहबाक कारण गाम कि बहरियो लेल ओ प्रसिद्ध लोकनायक केर रूप मे सेहो जानल जाइत छलाह।
 
ताहि समय सोशलिस्ट आन्दोलन चलैत छलैक। भारत मे चाहे बिनोबा भावेक भूदान आन्दोलन होइक अथवा लोहिया-जेपीक जमीनी परिवर्तनक कतेको रास आन्दोलन – ई लोकनि गाँधीवादी विचारधाराक समर्थक लेकिन कांग्रेसी नीतिक धूर विरोधीक रूप मे जानल जायवला कामरेड्स सेहो रहथि। कर्पुरी ठाकुर, सूरज नारायण, रामकरण चौधरी, लक्ष्मण झा, चन्द्रकान्त झा आजाद, गजेन्द्र नारायण चौधरी, शशि नारायण चौधरी, लपकन मिश्र, आदि अनेकों नाम हमरा मोन पड़ैत अछि जे हिनका लोकनिक जुबानी कथा मे भिन्न-भिन्न आन्दोलनक नायक, सहयात्री, नीति निर्धारक, व्यवस्थापक आदि होइत छलाह। हमर पिता ‘रघू बाबू’ नाम सँ जानल जाइथ। हरिहर काका आ रघू बाबू सदिखन एकटा युगल अभियन्ताक रूप मे अन्त समय धरि संग-संग रहलथि।
 
आशीर्वादक महत्व
 
हरिहर काकाक पैर छुबि हम प्रणाम कयल करी। हमर पिता एहेन कतेको कथा हमरा सुनौने छलाह, माँ सेहो कहैत रहल छल, प्रणाम करबाक महत्ता बड पैघ होइत छैक। सभ श्रेष्ठ सँ आशीर्वाद ग्रहण कयला सँ आयु, विद्या, यश आ बल सभक वृद्धि होइत छैक। नीति वचन सेहो कहैत छैक –
 
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं॥
 
जाहि बातक गहींर छाप हम-अहाँ अपन धियापुता केँ प्रदान करब, वैह बात ओ अपन जीवन मे अपनाओत। कारण सब सँ सुरक्षित अनुभव लोक केँ अपन माता-पिता-अभिभावकक शरण मे होइत छैक। जीवनक कतेको खतरनाक पल ओ माता-पिताक रक्षा कवच भीतर बितौने रहैत अछि। ताहि सँ माता-पिता जेना चाहैत अछि, सन्तान मे वैह गुण केर भरमार लगैत रहैत छैक। अभिवादनशील बनबाक ई संस्कार माँ आ काका (पिताकेँ जेठ पितियौतक संग हमहुँ काका कहैत छलियन्हि) सँ हम सीख लेने रही। त, हरिहर काका केँ प्रणाम करैत रहियनि त किछु लोक (उच्च जातीयताक भान सँ) हमरा एहि लेल रोकल करथि। हमहुँ हुनकर बात केँ एक कान सँ सुनि हुनको दुःखी नहि बनेबाक हिसाब सँ मुरी डोलबैत अपन वृत्ति कायम कएने रहलहुँ।
 
आशीर्वाद लेबाक बहुत रास खास अवसर हमरा सब ओतय होइत छल। दुर्गा पूजाक जतरा (विजयादशमी) दिन, भगवती केँ जयन्ती चढेलाक बाद अपन जेठ-श्रेष्ठ केँ पैर छुबि प्रणाम करबाक संस्कृति छल। होली दिन पैर पर अबीर चढबैत प्रणाम करबाक मर्यादा निभायल जाय। तहिना, छठिक परना दिन छठि व्रतधारी केँ प्रणाम करबाक, कोनो विशेष अवसर पर विशेष प्रणाम कय आशीर्वाद ग्रहण करबाक सामान्य परम्परा देखैत छलहुँ। आर हरिहर काका हमरा लेल अतिप्रिय रहबाक कारण कहियो नहि छुटथि। बाद मे जखन परदेश रहय लगलहुँ तखनहुँ गाम घुरिकय जाय तँ सब केँ प्रणाम कयल करी। हरिहर काका केँ विशेष मनोयोग सँ प्रणाम करी, कारण ओ हमरा वास्ते एकटा ‘हिरो’ छलाह।
 
हम बहुत कमी मे रही। पढाई करय लेल अर्थक अभाव मे रही। जे लोक हमरा उच्च आ नीच जाति केर शिक्षा देलनि से कहियो ई नहि पुछलनि जे बौआ तोरा पढाई वास्ते किछु जरुरत होउक त कहिहें… मुदा हरिहर काका हमरा बिना पुछने डाँर्ह मे सँ किछु कैञ्चा निकालिकय देल करथि जे ई पैसा राखि लिअ, पढाई करय मे शहर मे रहयकाल आवश्यकता होइत हैत त ई सहयोग देत। किताब कीनि लेब, मेस मे भुगतान कय देबैक, लौज केर सीटक पैसा दय देबैक, परीक्षाक फीस भुगतान कय लेब… विद्यार्थीक खर्चा यैह सब होइक आर एहि सभक वास्ते हरिहर काका हमरा परोक्ष मे सब सँ नुकाकय, काका तक केँ नहि बुझय दैत किछु न किछु कैञ्चा धरा देल करथि।
 
काकाक अचानक स्वर्गवास भऽ गेलाक बाद करीब १० वर्ष धरि हरिहर काका केँ देखि पिताक कमी केँ पूरा कयल करी। अन्तिम मे एहेन दोस्त जेकाँ व्यवहार करथि जे अपना संगे घुमाबय सेहो लय जाइथ। दुर्गास्थान जे हुनका संग मे जाय त लागय जेना पिताक संग घुमि रहल छी। पानक दोकान पर ठाढ भऽ पुछि दियनि जे कि खायब… पान या खैनीक पुड़िया लेब। हँसिकय पीठ ठोकिकय किछु न किछु लय लेल करथि। हमहुँ जखन लायक भऽ गेलहुँ त काका केँ किछु न किछु खर्च लेल पाय दय दियनि जबरदस्ती। ओ कानय लागथि। आँखि सँ नोर बहि जाइत छलन्हि। हमहुँ खूब कानल करी। काका मोन पड़ि जाइथ। काका नहि रहलाह जे हुनको संग एना मित्रतापूर्वक हम व्यवहार करैत एक पुत्रक धर्म निभबितहुँ… मुदा हरिहर काका संग ई सब व्यवहार कयला सँ एना लागय जेना पिताक संग व्यवहार कय रहल होइ! एखनहूँ आँखि ढबढबा रहल य।
 
आइ दुनू गोटे अवश्य संगे हेताह। जे ताउम्र एहि मनुष्यलोक मे संग रहलाह, ओ दुइ आत्मा पुनः कतहु न कतहु संगे हेताह। हमर प्रणाम स्वीकार करता। हम जा धरि जीबी ता धरि हुनका लोकनिक आशीर्वाद हमरा प्राप्त होइत रहय। सब श्रेष्ठ प्रति हमर समर्पण सदिखन बनल रहय। हुनका लोकनिक देखाओल ओ अलौकिक बाट पर हम निरन्तर बढैत रही। हमरा मे रहल दुर्गुण जे हुनका सभक सोझाँ मे सेहो छल, कहियो संगे भांग सेहो खा लेल करी, ओ हुनकहि सभक कहना मुताबिक ‘बढने दो, मुड़ जायेगा’ केर हिसाब सँ स्वतः दूर होइत जा रहल अछि। किछु आरो अछि, सेहो दूर होयत। धरि चोरा-नुकाकय डबल पाप नहि करी… ई शिक्षा आरो प्रभावी बनि रहल अछि।
 
अन्त मे, ओ खिस्सा जे एक गोटाक आयु समाप्त भऽ गेल रहैक आर अन्तिम दिन ओ सब केँ प्रणाम करबाक लेल गामक चौराहा पर बैसि गेल। छोट-पैघ सब केँ प्रणाम करैत सब केँ एतबे कहय जे आइ हमर अन्तिम प्रणाम लय लिअ। मुदा सब कियो ‘अन्तिम’ शब्द सुनि ओकरा सँ यैह कहलकैक जे अन्तिम हेतौक तोहर दुश्मन केर… तोरा त हमरो और्दा लागि जाय… खूब जीबे, सुखी रहे…! आर से जखन साँझ धरि नहि मरल त फेर गेल ओ ज्योतिषी लग… ज्योतिषी जी ओकर कुण्डली उल्टौलनि देखय लेल, देखलनि जे ओकर और्दा आइये आरो २५ वर्ष बढि गेलैक। त आशीर्वाद लेला सँ कतेक लाभ भेटैत छैक, एकर वर्णन बेसी कि करू…! एतबे कहब जे मनुष्य श्रेष्ठ अपन कर्म सँ होइत अछि, जाति मात्र सँ नहि। जातिक उच्च आ कर्मक बुच्च – तखन कि मजा भेल जीवन केर। अस्तु! लेख लम्बा भऽ गेल, आशा करैत छी जे किछु त भेटल होयत हमर एहि अन्तर्मनक भाव सँ।
 
हरिः हरः!!

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