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लोभी ससुर केर एहने हाल होइत छैक – रीना अपन बदला अपनहि लय लेलीह

लघुकथा

– रूबी झा

सीताराम बाबू (काल्पनीक नाम) गाम में प्रतिष्ठित व्यक्ति में गिनल जाय छलैथ, जरुरी नैह छै जे व्यक्ति बाहर स देखा रहल छैथ नीक ओ अंदरो स ओतबे नीक हेता। हुनक किरदानी हमर जुबानी सुनू, बिल्कुल सत्य अछि कहानी। ओ दुनू प्राणी मिल क रीना (पुतोहु) केँ दहेज लेल बहुत प्रताड़ित करैइत छलखिन्ह। जतेक सक (सामर्थ्य) पहुँचैत छलन्हि रीनाक माय-बाप केँ ओ सब ओतेक हुनक मुँह भैरतहु छलखिन्ह, ताकि हमर बेटी केर घर बैस जाय, आ हमर बेटी सुख सँ रहै। दिन-ब-दिन मांग बढल गेलैन रीना के सासु-ससुर केर, आब रीना के माय-बाप हुनका सब के मांग पूरा करै में असर्मथ भ गेलाह। रीना के विवाह भेला करीब पाँच साल भ गेल छलैन, आ दुइ सालक एकटा ननकिरवी (बेटी) सेहो छलन्हि। एक दिन सीताराम बाबू दुनू प्राणी बैसि कय विचार केलनि। सीताराम बाबू अपन घरवाली सँ कहलखिन्ह, “अहाँ बौआ (रीना के बेटी) केँ ल’ क’ चलि जायब दोसरा आंगन बुलैय लेल आ हम ताबैत अहि घटना केँ अंजाम द देबैक आर एकरा हादसाक नाम द देबैक। लोक सब केँ कहबैक हम जे दुनू प्राणी अंगना में नहि छलौं। सैह भेल। रीना केर साउस पोती केँ लय कय चलि गेलीह बुलैय लेल आ ताबे ससूर रीना केर देह पर मटिया तेल ढारि सलाई (माचीस) मारि देलखिन्ह आ केवाड़ बंद कय देलखिन्ह। बीच में ससूर केँ जिज्ञासा भेलैन जे देखियै कते जरल आ कते बचल अछि, केवाड़ खोलि ओ हुलकी मारलाह। लपैक कय रीना पापा-पापा कैह ससूर केर देह में चिपैक गेलखिन। कतबो छोड़ेबाक कोशिश केला ससुर मुदा पुतोहु गरदैन नहि छोड़लखिन। रीना त ओहि दिन जरि कय मरि गेली, लेकिन सीताराम बाबू करीब एक हप्ता अपन कर्मक फल भोगैत जीबैत रहलाह। सीताराम बाबू केँ पंचायत या कचहरी कि सजा दितैन, रीना स्वयं अपन बदला ल चलि गेली एहि दुनिया सँ। एहेन वीरांगना बेटी के हमरा सब केर तरफ सँ सलाम। जय हो मिथिला के बेटी, अहाँक आत्मा केँ चिर शान्ति भेटय। अहाँ सँ बहुतो बेटी केँ एकटा सम्बल भेटलैक। आर बहुते दुष्ट सीताराम बाबू केँ आब एहेन जघन्य अपराध सँ पहिने १० बेर सोचय पड़तैक। दहेज पीड़िता नारी केँ अपन जानक रक्षा स्वयं करबाक लेल बरु पहिनहि सँ सतर्क, सजग आ सशक्त रहबाक जरूरत अछि।

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