कथा
– डा. लीना चौधरी
बाबूजी और बाबूजी के किछ दोस्त संग परममित्र बच्चुबाबू ओही साल मैट्रिक के परीक्षा देने छला। परीक्षा के बाद सब मित्र खाली छला, कोनो काज छलैन नइ आ ताही समय में ओते कैरियर के लेल लोग परेशान नइ रहइ छल। सब मित्र मिल गांव में खुब मस्ती करइ छला । कखनो ई गाछी त कखनो उ गाछी। कखनो पोखर त कखनो इनार पर सब मित्र मिल मजा करइ छला। बाबूजी के मां यानी हमर सभक दादी बाबूजी के बड़ मानथीन त बाबूजी कनी ज्यादा लापरवाह भ गेल छलखिन्ह। सोचथिन बाद में जमीन्दारी ये त संभालबा के अछि। विवाह भ गेल छलैन हमर सासु मां नवादा के छलखिन्ह। वो बहुत समझाबथिन पढ़ऽ लेल । खैर गर्मी के मौसम छल सब मित्र मिल लीची के गाछी में लीची तोड़ि क खाय लेल जमा करइ छला। ताही समय में लोक धोती ज्यादा पहिरय, पेंट बुर्शट खाली स्कूल आ ऑफिस में पहिरय। बाबूजी के परम मित्र सेहो धोती पहिरने छला आ धोती के झोला बना लीची जमा केने छला। तखने गांव तरफ से एकटा मित्र हल्ला करैत एला, परीक्षाक परिणाम आबि गेलय।सब मित्र पुछय लगलखिन अपन अपन परिणाम। ताही समय में सेंकेड डिवीजन सेहो बहुत महत्व राखैत छल। ओ मित्र सभक रिज्लट बतबय लगलखिन। हमर बाबूजी सेहो पुछलखिन्ह त ओ कहलखिन सेंकेड डीविजन आयल अछि। आब बारी एलनि परममित्र के सब पुछय लगला ” बच्चू बाबू के की रिजल्ट?”। ताही पर वो मित्र बड़ा टोन में रुकिकय कहलखिन… “बच्चु फैल क गेलइ।” ई खिस्सा बाबूजी हमरा सब केँ सुनाबथिन आ कहथिन … “कनियां! फेल नइ, फैल क गेलइ हमर दोस्त।” बाबूजी बहुत दुलार सँ हुनका कहथिन “दोस्त यौ” और ओतबे दुलार सँ ओहो कहथिन “हां यौ दोस्त”।