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दिल्लीक सुधीरा दाय ऊर्फ दीपक चौरसियाक खिस्सा

लघुकथा

– रूबी झा

कहल गेल छै सैंग (थोड़) लोक अपने संतान स होययै। एकटा छली सुधीरा दाय। अपन घरक ख्याल राखैय स ज्यादा दोसरे के घरक कहानी सुनैय-सुनाबै में मोन लागैय छलैन। अपन बच्चा स ज्यादा दोसरे के बाल-बच्चा पर आँखि गड़ेने रहै छलैथ। पूरा मुहल्ला में ककरा घर में कि भेलैक नै भेलैक से सब केँ खाली बतेने फिरैत छलैथ। सब हुनका पीठ पीछा दीपक चौरसिया (पत्रकार) कहैय छलैन। अपन बच्चा सब पर बिल्कुले ध्यान नैह रहैय छलैन। अगर अपना बच्चा पर ध्यान दैतथिन्ह त दोसरक बच्चा के बारे में कोना बुझतथिन! एकर परिणाम देखू जे समय बितल, पाँचटा बच्चा में स एकोटा नैह मनुख बनि सकलैन। दिल्ली सनक महानगर में रहला के बावजूद एकोटा बच्चा केँ मैट्रिको पास नहि करा सकली। सबसँ पैघ बेटा एक नम्बर के नशेरी-गजेरी बनि गेलैन, छिन-झप्पट्टा करैत एक दिन पुलिस के हत्था चढि गेलैन, आय तक जेले में छैन।ओहि स छोट बेटी कतय गेलैन से आय तक नैह लोक के पता चलि सकलैक। अहि नस्ल-कदमीं पर बाँकियो तीनू संतान चैल रहल छैन। सुधीरा दाय के मोन कने थोड़ भेलैन्हे कि किछु बाँकि छैन। लेकिन स्वभाव एखनहुँ नैह बदललैन। एखनहुँ दोसर के घर में ताका-झाँकी करैत रहैत छथि। सीख अपना सब लेल अछि, बाल-बच्चा, घर, परिवार पर ध्यान दैय जाय-जाउ। अपन बाल-बच्चा सम्हारू। नीक इंसान बनाबू। शिक्षित करू, संतान केँ टोला-मुहल्ला, नगर, देश अपने सुधैर जेतैक। दोसरक घर पर ध्यान देबैक त अपन घर तबाह होयत, जेना सुधीराक घर तबाह भ गेलैन।

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