लघुकथा
– वन्दना चौधरी
शुगनी दुए महीना के छेलै जखन ओकर पिता के देहांत भ गेलै अचानक। शुगनी के माय रधिया पर जेना पहाड़ टुइट पड़लै। कोना के अपना और अपना बच्चा के देखभाल करत आब अहि चिंता में छल, मुदा जीवन के ई कठोर सत्य छै और कहबी सेहो छै जे बड्ड दुःख में बड्ड भूख। ते आब ओ अपन जीविका चलबै के लेल गामे में लोक के अंगना सब मे काज केनाय शुरू क देलक और बेटी के सेहो खूब नीक स सम्हारै लागल। देखिते देखिते शुगनी स्कूल,और स्कूल स कॉलेज सेहो जाए लागल। आय बड्ड खुशी के दिन छल किये त शुगनी स्नातक उतीर्ण भ गेल। रधिया भैर गाम में लड्डू बैंट आओल। लेकिन गाम के बुजुर्ग सब रधिया के कहलखिन जे आब शुगनी के विवाह के सेहो समय भ गेलौ रधिया। रधिया कनि काल त चुप रहल फेर पता नहि कत स एते हिम्मत जुटेलक और कहलकै ओई बुजुर्ग सब के जे जाबे हम रधिया के अपन पैर पर ठाड़ नै क देबै ताबे ओकर विवाह नै करबै कक्का। ओ बुजुर्ग सब त अवाके रैह गेला। ओतबे नै, रधिया ईहो कहलकैक जे एकर विवाह ओहि घर मे कहियों नै करबै जे दहेज के लोभी हेतै। ओहि घर में करबै जता एकर गुण और विद्या के सम्मान हेतै, एतबा कहैत फेर ओ अपन घर दिस विदा भ गेल जत ओकर बेटी ओकर बाट तकै छेलै।