लघुकथा
– रूबी झा
कहल गेल छै “घरक औजार भोथे नीक” और ई कहावत बहुत जगह सच होइत सेहो अपना सब देखने हेबै। लाल काकी के जाउत पुतोहु सँ बराबर कहा-कही होइत रहैत छलैन। “किछु लोहो के दोख किछु लोहारो के दोख” गोटेके दिन बितैत हेतै जै दिन पितिया सासु और जाउत पुतोहु में एक टक्कर नैं होइत छलैन। समय बितल। लाल काकी के अपन बेटा के सेहो विवाह-दुरागमन भेलैन, भरफोड़ीयो नैं बितलैन कि पुतोहु के सब कहानी कैह सुनेलैन।
लाल काकी – आब अहाँ आबि गेलौं लाल कुमैर (लाल काकी के अपन पुतोहु केर नाम लाल कुमैर रखलनि)। अपन घर सम्हारू। ई बेलोना बाली (लाल काकी के जाउत पुतोहु केर नाम बेलोना वाली रखने छलीह) सब दिन क हमरा सँ झगड़ा करैत छल, हम त छोड़ि दै छलियै लाल कुमैर, अहाँ नै छोड़ब। अहाँ के पीठ पर त हम छीहे।
लाल कुमैर – माय! अहाँ चुप्पे रहब, हम नै छोड़बनि बेलोना बाली के, ओ छैथ बेलोना के त हमहुँ छी भट्ट-सिम्मैर के।
लाल काकी बड खुश भेली। अय अंगना ओय अंगना बाजल फिरलैथ। बड़ जे दाबी छैन बेलोना बाली के त आब हमरा स लड़ौथ। हमर लाल कुमैर छोड़थिन नै। टोल में छलखिन्ह एकटा बड़की काकी बहुत समझदार और सोइच-विचैर क बाजय-बाली।
बड़की काकी – यै बौआसिन (लाल काकी)! अहाँ अते खुश कियै होय छी। आय बेलोना बाली के कहतै, कैल्ह अहाँ के कहत।
लाल काकी – यै बहिन! हमरा स लाल कुमैर कियै लड़ती? हम कुनू हुनकर हाथ-बाट जेबैन रोकै लेल?
समय बीतल। लाल कुमैर बेलोना बाली के त चुप करेबे केली, संग-संग लाल काकी के एकटा खबासनीयों स बत्तर जीबन कऽ देलखिन्ह। एतहि कहल गेल छै “घरक औजार भोथे नीक”।