स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
सीताजी हनुमानजीक मार्फत पठेलनि सन्देश

एहि क्रम मे हुनका सँ किछु निशानी सेहो मंगैत ओ कहैत छथिन, “हे माता! अहाँ अपन किछु निशानी दितहुँ जेना भगवान राम जी देने छलाह।” सीता जी हुनका चुड़ामणि दैत कहैत छथिन – हे हनुमान! श्रीराम जी सँ हमर प्रणाम निवेदन करब आर कहबनि –
हे प्रभु! हलांकि अहाँ सब तरहें पूर्ण काम छी, अहाँ केँ कोनो प्रकारक कामना नहि अछि, तैयो दीन (दुःखी) पर दया केनाय अहाँक महिमा रहल अछि। ताहि महिमा (यश, प्रतिष्ठा) केँ स्मरण कय केँ हमर भारी संकट केँ दूर करू।
कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥
हे हनुमान! श्री राम केँ इंद्रपुत्र जयंत केर कथा (घटना) सुनेबनि आर प्रभु केँ हुनकर बाण केर प्रताप स्मरण करेबनि। जँ मास भरि मे नाथ नहि औता तऽ फेर हमरा जिबैत ओ नहि देखि पेता।
हे हनुमान! कहू, हम कोन तरहें अपन प्राण केर रक्षा करू! अहाँ सेहो आब जेबाक बात कहि रहलहुँ अछि। अहाँ केँ देखिकय छाती मे ठंढक भेटल छल। फेर तऽ हमरा लेल वैह दिन आ वैह राति!
हनुमान जी तखन जानकी जी केँ बुझा-सुझा बहुतो तरहें धीरज दैत छथि आर हुनकर चरणकमल मे माथ नवाकय श्री राम जीक पास जाय लेल चलि पड़ैत छथि।
सीताराम सीताराम सीताराम
सीताराम सीताराम सीताराम
सीताराम सीताराम सीताराम
सीताराम
हरिः हरः!!