हनुमानजी द्वारा जानकीजी सँ प्रथम भेंट
महावीर हनुमान जी जखन लंकाक अशोक वाटिका जानकी जी केँ खोज-पुछाड़ि करैत पहुँचला त देखलनि जे दसानन रावण अनेकों राक्षस गण-गणिका संग हुनका बहुतो प्रकार सँ अपना दिश एक बेर निहारबाक लेल कहैत अछि, धरि जानकी जी सिर्फ एकटक ध्यान सँ जमीनक घास केँ निहारैत ओहि दुष्ट राक्षस केँ अपन स्वामी राघव (रामचन्द्रजी) केर बाहुबल आ तेकर दंड केर ध्यान दियबैत कहैत छथिन जे कतय करोड़ों सूर्यक आभा सँ सम्पन्न हमर स्वामी आ कतय तूँ खद्योत-प्रकाशा… यानि भगजोगनीक प्रकाश जेहेन तुच्छ दुर्जन! रावण तिलमिला उठैत अछि एहि उपमा सँ, तथापि ओ धमकी दैत अपन कृपाण-कटार चमकाबैत हिन्सात्मक स्वर मे जानकी जी सँ सम्हारिकय किछु बजबाक बात सब कहैत हारि-थाकिकय अपन गण-गणिका सँ जानकी जी केँ अपन वीरगाथा आदिक महिमामंडन करैत बुझेबाक बात कहि अपन तुष्टीकरण करैत ओतय सँ चलि जाइत अछि। तदोपरान्त राक्षसी गणिका लोकनि जानकी जी सँ बहुतो तरहें प्रस्तुत होइत अछि, कियो हुनका भयभीत करय लेल माया उत्पन्न करैत अछि, त कियो आर किछु। लेकिन जानकी जी अपन पति प्रति पूर्ण परायण केकरो कोनो बात नहि सुनैत सिर्फ रामचन्द्र जी केँ सुमिरैत रहैत छथि। रामचन्द्र जी सँ बिछोह हुनका एतेक पीड़ा दय रहल छन्हि जे आब ओ अशोक सँ शोक हरण वास्ते विनती करैत छथि। आकाश केर तारा केँ अंगार (आगि) बुझि हुनका एहि बिछोहक अग्नि सँ तपैत रहबाक बदला यथार्थक अग्नि प्रकट कय पूर्णरूपेण जीवनलीला समाप्त करबाक हिसाबे जरा देबाक विनती करैत छथि। काफी विलाप कय रहली अछि। एम्हर राक्षसी सब अपन राजा रावणक आदेश निभा रहल अछि। हनुमान जी लेल ई क्षण केना बीति रहल छलन्हि ई हम-अहाँ स्वयं अन्दाज लगा सकैत छी।
खैर! जखन त्रिजटा नामक राक्षसी केँ जानकी जी केर दारुण वर्दाश्त नहि भेलैक तऽ ओ अन्य राक्षसी केँ बुझा-सुझा शान्त कयलक आ फेर बड़ा करुणा भरल स्वर मे अपन देखल सपना अत्यन्त सुन्दर ढंग सँ वर्णन करैत जानकी जी केँ बोल-भरोस दैत कहलक जे ओ सपना मे लंका मे एक बानरक प्रवेश आ रावण केर मृत्यु तक केर दृश्य सब देखलक अछि। रामचन्द्र जी सच मे लंका औता आ जानकी जी केँ सुरक्षित वापस लय जेता। जानकी जी लेल ई शब्द जरूर कनेक ठंढक अनने छलन्हि। कियो विपत्ति मे रहैत अछि तखन ओकरा प्रति सहानुभूति आ संवेदनाक हरेक स्वर एकटा नव ऊर्जा जेकाँ काजक आ प्रभावकारी जरूर सिद्ध होइत छैक। जानकी जी केर ई मानुषिक लीला ‘रामचरितमानस’ मे बड़ा रोचक ढंग सँ तुलसीदास जी लिखलनि अछि। एम्हर वाल्मीकि रामायण मे एतय एक गोट अति महत्वपूर्ण आख्यान केर चर्चा भेटैत अछि। जखन राक्षसी सब सेहो आराम करय चलि जाइत अछि, जानकी जी असगर ओतय शोक मे डूबल रामचन्द्र जी केँ सुमिरि रहली अछि, तखन हनुमान जी मनहि-मन सोचैत छथि जे आब सही समय अछि हिनका सँ भेंट कय प्रभु रामचन्द्र जी केर समाद सुनेबाक। मुदा हिनका संग कोन भाषा मे बात करी ताहि लेल ओ दुविधा मे पड़ि जाइत छथि। कनेकाल ओ सोचैत रहैत छथि जे जँ संस्कृत (देवभाषा) मे बात करब तऽ लंकाक लोक बात पकड़ि लेत… स्वयं जानकी जी सेहो शंका-आशंका मे विश्वास करती कि नहि करती…. तखन सब सँ सुन्दर होयत जे जानकी जी सँ हिनकहि क्षेत्र मे बाजल आ बुझल जायवला भाषा मे बात करी जाहि सँ हिनका ई लगतनि जे हम हिनकहि लोक छी। आर, एहि तरहें मानुषिक भाषा जे जानकी जी केर क्षेत्र मे प्रयोग कयल जाइत छल यानि मैथिली मे ओ वार्ता कयलनि। प्रभुजीक देल स्नेहक चिह्न मुन्द्रिका देखैत देरी जानकी जी सोचब शुरू कय देने छलीह, परन्तु राक्षसक माया त नहि से सोचि दुविधा मे रहबाक चलते हनुमान जी द्वारा मैथिली मे अपन लोक बनिकय सब बात-समाद सुनेलाक बाद जानकी जी प्रसन्न भेलीह जे कम सँ कम हमर सुधि प्रभु रामचन्द्र लेलनि। आर जल्दिये सब किछु नीक होयत। तदोपरान्त हनुमान जी केँ खूब आशीर्वाद सेहो देलनि। भुखायल हनुमान जी द्वारा आदेश मंगला पर ओहि वाटिकाक फल खेबाक लेल कहलखिन जे बौआ, एतय त बड़का-बड़का भट्ट सब पहरेदारी पर अछि, अहाँ एक छोट बालकरूपी बानर केँ ई सब मारि-पीट नहि करय… तखन हनुमानजी अपन विशालकाय रूप प्रकट कय जानकी जी केँ भरोस देलखिन जे हे जननी, जखन अहाँक कृपा, प्रभुजीक कृपाक पात्र हम छी, तखन ई भट्ट-फट्ट कथी छी! आर फेर, सब केँ बुझले अछि जे कि-कि भेल।
क्रमशः…. फेर कहियो! हमरा ई प्रसंग एतेक प्रिय लगैत अछि जे बेर-बेर किछु न किछु लिखैत रहैत छी। आइ साक्षात् दर्शन पाबि ई लिखि सकलहुँ, आशा अछि, अपने लोकनि पसीन करब। अस्तु!
हरिः हरः!!