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भैयाक नामे एक महत्वपूर्ण चिट्ठी

प्रिय भैया,
 
एहि बेर अहाँक घर आयल छलहुँ त एक बातक बहुत छगुनता लागल। भाभीजी बेर-बेर अपन धियापुता संग हिन्दी बाजि रहल छलीह। चूँकि एहेन अवस्था केँ हम घोर दरिद्रता मानैत छी, ताहि सँ मोनहि-मोन सोचिये टा कय रहि गेलहुँ…. हम किछु कहय नहि चाहैत छी एहेन व्यक्ति केँ, कारण सभक अपन-अपन जीवन होइत छैक, ओकरा जाहि कोनो शैली मे जीवन निर्वाह करबाक इच्छा हेतैक ओ वैह टा करत। लेकिन अहाँ सब दिन हमर प्रिय भाइ आ मित्रवत् रहलहुँ, तेँ ई चिट्ठी चुपचाप लिखि रहल छी।
 
हँ यौ! एहेन आदमी भरल अछि अपन मिथिला मे जेकरा अपनहि मातृभाषा बाजय मे लज्जाबोध होइत छैक। आर, एहेन लोक अपना केँ आन भाषा बाजिकय बौंसैत रहैत अछि।
 
बाहरी आवरण सुन्दर आ मजबूत देखेबाक प्रवृत्ति जेकरा पर हावी भऽ जाइत छैक वैह अपन मौलिकता सँ हँटबाक कुचेष्टा करैत रहैत अछि। लेकिन एहेन व्यक्ति अन्त-अन्त धरि कमजोर आ निरीह बनल रहैत अछि।
 
आइ धरि जे अपन मौलिकता (निज भाषा, निज धर्म, निज परम्परा आ निजत्व) केँ छोड़लक – ओकर अन्त भय आ त्रास मे भेलैक। एतेक तक कि मृत्युक बादहु ओकर अवस्था भयावह होइत छैक। गीता मे प्रामाणिक वचन छैकः
 
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥ ३-३५ ॥
 
बड़ा नीक जेकाँ आचरण मे अनलाक बादहु दोसरक धर्म सँ बेस अपन गुणहीन धर्म होइत अछि। अपनहि धर्मक निर्वाह करैत मरैयो मे कल्याण अछि। परधर्म भयावह होइत अछि।
 
आब अहाँ केँ उदाहरण हम दी से हमरा किछु दिन बेसिये सूर्य उदय आ अस्त होइत अहाँ देखैत रहल छी। फल्लाँ काका वला खिस्सा याद अछि कि नहि, ओ ग्रेजुएट काकी? केना जखन बियाह कय केँ एलाह त भैर गामक सोझाँ अपन घरवाली ग्रेजुएट होयबाक बात केँ देखाबय लेल हिन्दी-अंग्रेजी झारैत छलाह….? याद अछि कि नहि? आइ देख लियौन। ओ कनी टा के देखाबा हुनका लोकनि केँ अपनहि माटि-पानि सँ दूर कय देलक। धियापुता हुनको लोकनि सँ बीस निकलल। आर, आब हुनकर घरक भाषा छन्हि अंग्रेजी, हाई-फाई ततबा बेसी बढि गेल छन्हि जे के कतय रहता तेकर कोनो ठेकाने नहि रहि गेल। गाम पर जे घर छन्हि ताहि मे मकड़ध्वज लोकनि बड़का-बड़का जाला बुनिकय मस्ती मे राज कय रहला अछि।
 
आइ-काल्हि समाचार पढय छी न… ओ यौ… अरे वैह जे फल्लाँक लहास सड़ल-गलल अवस्था मे ३ हप्ता बाद घर सँ निकालल गेल जखन पड़ोसी केँ दुर्गन्धक एहसास भेलैक…. जनैत छी कियैक? ओ यैह कारण जे भाषा बदलल, संस्कार बदैल गेल, सन्तति बदैल गेल। आर आब माय-बाप प्रति आ कि कुल-मर्यादा आ पुरुखा-पितर प्रति सब आश-विश्वास बर्बाद भऽ गेल। जैड़ सँ कटि गेलहुँ। आर जे गाछ जैड़ सँ कटि जायत ओ कतेक दिन जियत? विचार करू गम्भीरता सँ। हम दोसर बेर कोनो पत्र-फत्र नहि लिखब आ नहिये भाभीक मुंहों देखब सही मानब। बात जानू साफ।
 
एक बात आर! ओ स्टेज पर चढिकय लोक सब सँ हाथ जोड़ि ई नहि कहियो कहैत छी जे ‘अपने लोकनि घर मे बच्चा सब संग मैथिली बाजू।’ – ई बात दोसरो जे कियो बजैत अछि त हमरा बड़ी रंज चढि जाइत अछि। बान्चो! कियो केकरो ठेका नहि लेने छैक। जे गूढ रहस्यक बात छैक ततबे टा हम कहल, बाकी अहाँ बुझू आ जानथि नगरइजोतो भाउज!
 
ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!

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