वैलेन्टाइन डे पर महाकवि विद्यापतिक महान रचना – राधा विरह – प्रेमक पराकाष्ठाक दर्शन

वैलेन्टाइन डे विशेष – मैथिली भाव

क्रिश्चियन कल्चर केर महापर्व ‘वैलेन्टाइन डे’ केर असैर अपन हिन्दू सभ्यता पर पड़ैत देखि विद्यापतिक ई सुन्दर सन रचना कथित प्रेम दिवस पर राखि रहल छीः

 
कुञ्ज भवन सँ निकसल रे, रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे, जनि करू बटमारी॥
 
छोड़ू-छोड़ू कान्ह मोर आंचर रे, फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे, जनि करिअ उधारी॥
 
संगक सखि अगुआइलि रे, हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे, एक राति अन्हारी॥
 
भनहि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी।
हरि केर संग कछु डर नहि हे, तोंहे परम गमारी॥
 
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चानन भेल विसम सर रे भूसन भेल भारी।
सपनेहु हरि नहि आयल रे गोकुल गिरिधारी॥
 
एकसरि ठाढि कदम तर रे पथ हेरथि मुरारी।
हरि बिनु देह दगध भेल रे झामर भेल सारी॥
 
जाह जाह तोंहे उधो हे तोंहे मधुपुर जाह।
चन्द्र बदन नहि जीउति रे बध लागत काही॥
 
भनहि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी।
आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलू झटकारी॥
 
एक कवि तखन महाकवि बनि जाइत छथि जखन हुनक शब्द आ भाव एकाकार होइत हरेक पाठक केँ एकदम ओहि दृश्य धरि पहुँचा दैत छन्हि जतय कवि मन विचरण कय रहल छल। रचनाक सुन्दरता देखू – प्रेमक पराकाष्ठा देखू – आब जे राधा आ कृष्ण केर प्रेम सँ परिचिते नहि होयब तेकरा लेल कारी अक्षर महींस बरोबरि।
 
हरिः हरः!!
एतय वीडियो अछि, सुनू आ देखू सेहोः